Monday, July 1, 2024
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19 नवंबर को होगी छठ पूजा

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  • मुक्तिप्रदान करने वाली शुभदायी बेटी की कामना पूर्ति के लिए करती हैं व्रत और तप

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: 17 नवम्बर से 20 नवम्बर तक चार दिवसीय संतान कामना व रक्षा के लिए पर्व है। जिसमें सृष्टि की मूल प्रकृति छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण ग्रहराज सूर्य की बहन षष्ठी देवी कहलाती हैं। इसलिए स्त्रियां सूर्य जैसे तेजस्वी पुत्र एवं षष्ठी देवी जैसी आयु, विद्या, बल, तेज तथा मुक्तिप्रदान करने वाली शुभदायी बेटी की कामना पूर्ति के लिए व्रत, तप करती हैं।

भगवान श्री राम का राज्याभिषेक पश्चात माता सीता द्वारा तथा पांडवों के छीने राज-पाट की पुन: प्राप्ति के लिए द्रौपदी द्वारा इस षष्ठी व्रत का प्रारम्भ किया गया। जनवाणी ने इस पर्व से संबंधित भारत ज्योतिष शोध संस्था के एस्ट्रो साइंटिस्ट भारत ज्ञान भूषण जी से बातचीत की तो

उन्होंने बताया की कार्तिक शुक्ल मास की छठी तिथि इतनी पवित्र मानी जाती है कि दिवाली की साफ सफाई के बाद भी इस पर्व में पुन: घर, रसोई आदि को धोकर पवित्र किया जाता है। व्रत में उपयोग की जाने वाले पदार्थों की पवित्रता पर विषेष ध्यान दिया जाता है। जिससे व्रत, उपवास, पूजा, अर्ध्य आदि पवित्रतम हो जाते हैं।

चार दिवसीय संतान कामना और रक्षा के लिए पर्व

17 नवम्बर, शुक्रवार नहाय-खाय

18 नवम्बर, शनिवार खरना (लोहंडा)

19 नवम्बर, रविवार छठ पूजा, अस्ताचल सूर्य अर्घ्य

20 नवम्बर, सोमवार उदित सूर्य अर्घ्य, पारण सूर्योपासना का पर्व

करें प्राप्त भौतिक व आध्यात्मिक लाभ

वैसे भी वेदों में सूर्य की उत्पत्ति परमात्मा की आंखों से मानी गयी है। सूर्य देव जड़ एवं चेतन सभी सृष्टि की आत्मा हैं इसीलिए सूर्य को अर्ध्य देकर प्रणाम करने से सूर्य सहित अन्य ग्रह दोषों का भी निवारण होकर वरदान प्राप्त हो जाता है तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। भगवान श्री राम ने सूयोर्पासना कर के रावण रूपी अंधकार पर विजय प्राप्त की थी।

धर्मराज युधिष्ठिर ने अक्षय पात्र तथा महारथी कर्ण ने कवच कुंडल प्राप्त किये थे, यह माता कुंती की सूर्य उपासना का प्रतिफल रहा। इस प्रकार सर्व मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सूयोर्पासना प्रारम्भ करने का सबसे महत्वपूर्ण समय सूर्य षष्ठी है क्योंकि इस दिन से प्रारम्भ की सूयोर्पासना सूर्य देव की बहन षष्ठी देवी की कृपा भी प्राप्त होने के योग बनते हैं।

ऐसे करे छठ पूजन

प्राय: महिलायें छठ से दो दिन पूर्व चतुर्थी, पंचमी के दिन से ही उपवास रखती हैं। नहाए, खाए जिसका मतलब है नदी जाकर नहाइए तब घर आकर शुद्ध खाना पकाइए खाने में भेलिया, कुम्हड़ा, काषीफल के साथ चावल बनाये जाते हैं जिसे कद्दू भात कहते हैं। जो भी स्त्री, पुरुष उपवास रखते हैं वह जमीन पर ही सोते हैं। कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन तो व्रती महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं।

विश्व में एक मात्र यही ऐसा पर्व है जिसमें उदित होते सूर्य के साथ डूबते सूर्य को भी अर्घ्य एवं प्रसाद प्रदान करते हुए सूर्य भगवान को पूजा जाता है। सूर्य डूबते समय बुध ग्रह उदित होते हैं अत: डूबते सूर्य की पूजा ज्योतिषीय दृष्टि से बुधादित्य योग की पूजा है जो कि यशमान, कीर्ति के साथ बुद्धि, विवेक, निर्णय तथा व्यवसाय की स्थिति को सबलता प्रदान करती है। बहन षष्ठी देवी व भाई सूर्य देव को दूध व जल का अर्घ्य प्रदान करते हुए सूपों में मौसमी फलों के साथ गेहूं के आटे से बने ठेकुआ तथा चावल के आटे से बने लडूआ नाभि तक जल में खड़े होकर नवैद्य रूप में भोग लगाया जाता है

तथा यह प्रसाद घर के सदस्यों तथा आस पड़ोस में वितरित किया जाता है मान्यता है कि यदि मां अपने गीले आंचल से अपने बच्चों का बदन पौंछती है तो एक वर्ष तक बच्चों को त्वचा सम्बन्धी रोग नहीं होते हैं। व्रती सदस्यों के साथ पूरा परिवार व मित्रगण छठ पूजा में भजन कीर्तन के संग बड़े हर्षोल्लास के साथ भाग लेते हैं तथा जलाशयों के किनारे दीपों की श्रृंखला सादगी में आध्यात्मिक भव्यता प्रज्ज्वलित करती है। अधिकांश व्रती छठ की सांयकाल की पूजा के उपरान्त प्रसाद प्राप्त कर के व्रत खोलते हैं तथा कुछ अगले दिन प्रात: भगवान सूर्य को अर्ध्य प्रदान करने के पश्चात प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलते हैं। इसी प्रक्रिया को खरना कहा जाता है।

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