Wednesday, April 9, 2025
- Advertisement -

रिश्ते सुधारना चीन की मजबूरी

Samvad 46

arvind 1रूस में ब्रिक्स समिट से ठीक पहले भारत-चीन के बीच ईस्टर्न लद्दाख में एलएसी पर बनी सहमति दोनों देशों के लिए हितकारी है। दोनों देशों ने इस पर सहमति जताई है कि देपसांग और डेमचॉक क्षेत्र में जहां गश्त ब्लॉक है वहां सैनिक पीछे हटेंगे और गश्त फिर से शुरू होगी। अर्थात दोनों देशों की सेनाएं अब अपनी पुरानी पोजिशन पर लौट आएंगी, जैसा कि 2020 से पहले थी। याद होगा 2020 में गलवान में हुई झड़प के बाद से ही दोनों देशों के बीच रिश्ते तल्ख और असहज हुए थे। तब गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय जवानों पर हमला दोनों देशों के रिश्ते को दुश्मनी और नफरत में बदल दिया था। इस हमले में भारत के 20 जवान शहीद हुए थे वहीं चीन को भी अपने 43 जवानों की जिंदगी से हाथ धोना पड़ा था। इस हालात के लिए पूर्ण रुप से चीन ही जिम्मेदार था। अगर वह 1996 और 2005 में हुए समझौते का पालन किया होता तो यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति पैदा नहीं होती।

गलवान की घटना के बाद से ही देपसांग और डेमचॉक क्षेत्र में दोनों देशों ने एकदूसरे की पट्रोलिंग को बंद कर रखा था। अब सहमति के बाद गश्त की प्रक्रिया बहाल होने की राह खुल गई है। गौरतलब है कि गलवान की झड़प के बाद डेपसांग में जिन स्थानों पर भारतीय सैनिक पट्रोलिंग के लिए जाते थे उनमें से कई स्थानों पर चीनी सैनिकों ने रुकावटें पैदा कर दी थी। नतीजतन भारतीय सैनिकों को भी अपना कड़ा रुख अपनाना पड़ा। भारतीय सैनिकों ने उन स्थानों पर अपनी स्थिति मजबूत कर ली जहां चीनी सैनिक पट्रोलिंग के लिए जाते थे। लिहाजा चीनी सैनिकों की भी पट्रोलिंग थम गई। उल्लेखनीय है कि ईस्टर्न लद्दाख के पैगोग क्षेत्र, गलवान के पीपी-14, गोगरा और हॉटस्प्रिंग क्षेत्र में अभी भी तनाव बरकरार है। नतीजतन यह क्षेत्र अभी भी बफर जोन बना हुआ है। फिलहाल यहां दोनों देशों के सैनिक पट्रोलिंग नहीं कर रहे हैं।

चीन सामरिक रूप से अहम पैंगोंग त्सो झील के निकट एक और नए पुल का निर्माण करने जा रहा है। उसकी मंशा इस पुल के जरिए अपने सामरिक हथियारों को आसानी से भारतीय सीमा तक पहुंचाना है। इसका खुलासा सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से हो चुकी है। चीन की यह साजिश भारत के लिए चिंता का सबब इसलिए है कि यह नया पुल वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी से महज 20 किलोमीटर दूर है। उम्मीद किया जाना चाहिए कि भारत अपनी चिंता चीन से जरूर जताया होगा। चूंकि अब जब दोनों देशों के बीच रिश्तों में जमा बर्फ फिघल रही है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि बहुत जल्द ही इस क्षेत्र में भी शांति बहाल होगी और दोनों देशों के सैनिक पट्रोलिंग कर सकेंगे।

अभी पिछले अगस्त में ही दोनों देशों के वातार्कारों ने लाइन आॅफ एक्चुअल कंट्रोल अर्थात एलएसी के मसले पर चर्चा की थी। गौर करें तो सीमा विवाद से दोनों देशों के बीच न सिर्फ तनाव की स्थिति उपजती है बल्कि अर्थव्यवस्था को भी भारी नुकसान पहुंचता है। गलवान की घटना के बाद तो चीन को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था। याद होगा वर्ष 2021 में देश के करोड़ों खुदरा और थोक व्यापारियों ने चीन से आयातित माल का बहिष्कार करने का एलान कर दिया था। इस अभियान के तहत व्यापारियों की योजना वर्ष 2021 के अंत तक चीन से आयात बिल एक लाख करोड़ रुपए से घटाना था जिसमें काफी सफलता भी मिली। तब देश के व्यापारियों ने करीब 3000 ऐसी वस्तुओं की सूची बनायी थी जिनका बड़ा हिस्सा चीन से आयात किया जाता था। तब भारत सरकार ने भी चीन से आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाना शुरू कर दिया था। तब भारत द्वारा नए एफडीआई नियमों में परिवर्तन से चीन बौखला गया था। आज की तारीख में भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने से सर्वाधिक नुकसान चीन को ही उठाना पड़ता है। वैसे भी उसका घटिया प्रोडक्ट की पोल खुलती जा रही है। यह सच्चाई भी है कि चीन मैन्युफैक्चरिंग में घटिया कच्चे माल का इस्तेमाल कर उसे भारत में उतार रहा है। इस कारण उसके उत्पादों की मांग अब तेजी से घटनी शुरू हो गई है। ऊपर से सीमा पर उसका आक्रामक रवैया कोढ़ में खाज का काम सिद्ध कर रहा है।

दुनिया समझने लगी है कि चीन संसाधनों की सीमित उपलब्धता के कारण मैन्युफैक्चरिंग में घटिया कच्चे माल का इस्तेमाल कर रहा है और न्यूनतम मजदूरी के बूते अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपना घटिया व सस्ता माल उतार रहा है। उसके इस खेल से उसके उत्पादों की मांग तेजी से घटने लगी है। जबकि दूसरी ओर भारतीय उत्पाद अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण दुनिया भर में लोकप्रिय हो रहे हैं। भारतीय उत्पादों की मांग तेजी से बढ़ रही है। इसे लेकर चीन भारत से जलभुन रहा है। याद होगा गत वर्ष पहले यूरोपीय संघ और दुनिया के 49 बड़े देशों को लेकर जारी ‘मेड इन कंट्री इंडेक्स’ (एमआइसीआइ-2017) में उत्पादों की गुणवत्ता के मामले में चीन भारत से सात पायदान नीचे रहा। चीन भले ही अपनी इंजीनियरिंग कारीगरी से अपने उत्पादों को दुनिया के बाजारों में पाटकर फूले न समा रहा हो पर वह दिन दूर नहीं जब उसकी हालत 19वीं सदी के समापन के दौर की उस जर्मनी जैसी होगी जो अपने गुणवत्ताहीन उत्पादों के लिए दुनिया भर में बदनाम हुआ। तब जर्मनी भारी मात्रा में अपने घटिया और बड़े ब्रांडों की नकल करके बनाए गए उत्पादों को ब्रिटेन निर्यात करता था। इससे ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था चरमरा गयी और अंतत: ब्रिटेन को गुणवत्ताविहिन उत्पादों से बचने के लिए ‘मेड इन’ लेवल की शुरुआत करनी पड़ी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले दिनों में दुनिया के तमाम देश चीनी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाएंगे।

भारत ने 23 जनवरी, 2016 को चीनी खिलौने के आयात पर प्रतिबंध लगाया था। फिर चीन को विश्व व्यापार संगठन में अपने आंकड़ों के साथ हाजिर होना पड़ा था। दुनिया के अन्य देशों में भी चीन के घटिया उत्पादों पर प्रतिबंध लगना शुरू हो गया है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार विशेष रुप से अमेरिका, यूरोप में चीन के घटिया उत्पादों की बिक्री में तेजी से कमी आई है। स्वयं चीन के कारोबारियों का भी कहना है कि प्रतिस्पर्द्धा की वजह से पिछले पांच साल में उत्पादों की कीमत में करीब 90 प्रतिशत तक कटौती कर चुके हैं। अगर चीन उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान देता है तो स्वाभाविक रूप से उत्पादों की कीमत में वृद्धि होगी और कीमत बढ़ने से अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उनकी मांग प्रभावित होगी।

आंकड़ों पर गौर करें तो विगत दो दशकों में चीन का भारत में व्यापार कई गुना बढ़ा है। वर्ष 1984 में दोनों देशों द्वारा ‘सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र’ यानी एमएफएन पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद भारत की अपेक्षा चीन कई गुना ज्यादा फायदे में रहा है। 2000 में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2.9 अरब डॉलर था जो आज 2023-24 में बढ़कर 119 अरब डॉलर के पार पहुंच चुका है। इसमें चीन से आने वाला माल भारत के निर्यात से ज्यादा है। अगर आज चीन भारत से रिश्ते सुधारने के लिए आगे बढ़ा है तो उसमें भी उसी का फायदा है।

janwani address 4

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Budhwar Ke Upay: बुधवार के दिन ​करें ये काम, शिक्षा और करियर में मिलेगी सफलता

नमस्कर, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img