जब भी आना
आना
आना कि जैसे आती है गौरैया आंगन में
या कि
आता कोई झोंका भीनी मिट्टी की सुगंध का
जैसे कि आ जाते खिलखिलाते हुए बच्चे
जैसे कि बिटिया की कोई मुस्काती हुई छवि
आओ कि आसान हो जाएं मन की वीरानियाँ
आओ कि पूरी हो जाएं ये अनगिनत उदासियाँ
आओ कि हौसला हासिल हो मन को
आओ कि पाएँ अनगिनत स्नेहिल सुखन
आओ कि बोएं भरपूर जीने की लगन
आओ कि जी लें कुछ ही पलों में सारा जीवन
और जब जाओ…..
तो बरबस ही साथ हो आत्माओं की छुवन
जैसे तपती भूमि को मिले
पूर्णता का आभास
जैसे चातक की पूरी हो
जन्मों जन्मों की प्यास
जैसे कि चकोर की बरसों की तकन
को मिल जाये स्नेहिल चांद की छुवन
जैसे कागज़ पर उतरती कविता मोतियों सी
जैसे जिजीविषा को छूती जीवन की साँसे
आना कि स्वयं में ‘हम’को
ले जाने के लिए आना …
आना ….
डॉ सुधा शर्मा
प्रिंसीपल
वेदान्तिक इंटरनेशनल स्कूल
अमीनगर सराय
बागपत