Friday, July 5, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादरविवाणीकांग्रेस की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा

कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा

- Advertisement -

Ravivani 33


2 27 ऐसे समय में, जब विपक्ष-मुक्त भारत को अहमियत देने वाले राजनेता केंद्र और कतिपय राज्यों की सत्ता पर काबिज हैं, प्रतिपक्ष की लोकतांत्रिक मौजूदगी साबित करना कठिन काम है। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोडो यात्रा’ की मार्फत यही करने निकले हैं, लेकिन क्या कांग्रेस की मौजूदा बदहाली उन्हें यह हासिल? करने देगी? चौक-चौबारों पर चौकड़ी जमाये बैठे लोगों और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से बात करने पर जो राय सामने आई है, उसे आधार बनाकर कांग्रेस की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा को कुछ नए तरीकों से देखा-समझा जा सकता है। अपने से कमजोर को स्नेह से चिपटा लेना, बराबर वाले को गले लगा लेना और बड़े के चरणों में झुककर अंगूठा छू लेना; दूसरे से पा लेने का यही विज्ञान है और हृदय की विशालता भी यही थी। आजादी वाली कांग्रेस याद कीजिए। मूल कांग्रेस ऐसी ही विशालहृदया थी; वामपंथी, दक्षिणपंथी, समाजवादी…भिन्न-भिन्न नई-पुरानी विचारधाराओं को अपने में समाहित कर लेने वाली एक बहुरंगी बागीची। यही कांग्रेस की भी शक्ति थी और भारत की भी। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निश्चित ही कई नयों को कांग्रेस से जोड़ेगी, किन्तु यदि कांग्रेस को आगे के चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करना है तो चुनावी जीत के नए औजारों को नियोजित और नियंत्रित करना सीखना होगा।

पहले से जुड़े कांग्रेसी न टूटें, इसके लिए भी प्रयास कम जरूरी नहीं। इसके लिए कांग्रेस संगठनकतार्ओं को खुद की आंतरिक कमजोरियों से उबरना ही होगा; वरना् वे कांग्रेस-मुक्त भारत के लिए सिर्फ मोदी-अमित शाह की कारगुजारियों को जिम्मेदार ठहराकर अपनी जिम्मेदारियों से भाग नहीं सकते। वैचारिक जुड़ाव के लिए साहित्य, सोशल-मीडिया, आयोजनों व अपने व्यवहार के जरिए और भी बहुत कुछ करने की जरूरत होती है।

आजकल जिस मानस के साथ कोई व्यक्ति किसी राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनता है या कहें कि जिस मानस वालों को राजनीतिक दल अपना पदाधिकारी बना रहे हैं उनकी और वोटरों की निजी परेशानी में कुछ मदद करना जरूरी है। यदि पार्टी यह नहीं कर पायेगी, तो वह उस पार्टी में क्यों नहीं चला जाएगा, जो सत्ता में है; खासकर, जब कोई वैचारिक-नैतिक जुड़ाव हो ही नहीं? कांग्रेस में कितने पदाधिकारी अथवा सांसद-विधायक हैं, जिन्होंने उनके रास्ते चलना तो दूर, गांधी, नेहरू, अम्बेडकर अथवा लोहिया को ठीक से पढ़ा भी है?

कांग्रेस को विचार करना चाहिए कि यदि वह केन्द्र अथवा ज्यादातर राज्यों में सरकार में नहीं है, तो क्या करे? क्या इंतजार करे? नहीं, जब आप केन्द्र अथवा राज्य सरकार में न हों तो कार्यकर्ता तथा वोटर को देने योग्य बनने की सबसे बड़ी संभावना ‘तीसरी सरकार’ यानी पंचायती व नगर सरकारों में हमेशा मौजूद रहती है। हालांकि, भारतीय लोकतंत्र के हित में तो यही है कि तीसरी सरकारों को दलमुक्त ही रहने दिया जाए; किन्तु क्या यह सिर्फ कांग्रेस के तटस्थ रहने से होगा? स्थानीय चुनावों को संजीदगी से लेने से बूथ लेवल कार्यकर्ता व वोटर…दोनों की मदद संभव है।

इसे और खोलकर समझें कि आम जिन्दगी में असल दिक्कतें तो स्कूल, अस्पताल, थाना, कचहरी, ब्लॉक व तहसीलों से जुड़ी होती हैं। जिस पार्टी का कार्यकर्ता इसमें जिसकी मदद करता है, वह वोटर उस कार्यकर्ता के साथ जुड़ जाता है। उस वोटर का किसी पार्टी से कोई वैचारिक जुड़ाव नहीं होता। वह वोटर, उस कार्यकर्ता विशेष से जुड़ाव के कारण उसकी पार्टी को वोट देता है। पार्टी सत्ता में न हो, तो भी यदि कार्यकर्ता सेवाभावी हो, तो वह मदद कर सकता है। आखिरकार, स्वयंसेवी संगठनों के लोग यही करते हैं। कांग्रेस में ‘सेवादल’ और ‘राजीव गांधी पंचायती राज संगठन’ की क्या भूमिका अथवा जिम्मेदारी होनी चाहिए?

लेन-देन के संतुलन को लेकर ‘भारत जोड़ो’ यात्रियों को भी रणनीतिक होने की जरूरत है। कोई यात्रा से क्यों जुडे़? यात्री क्या दे रहे हैं? ‘फेविकोल’ जोड़ कैसे होगा? यात्री तो विपक्षी राजनीतिक दल अथवा नागरिक संगठनों के नुमाइंदे हैं। वे कह रहे हैं कि सत्ता पक्ष और अधिक तानाशाह न हो जाए; इसके लिए जरूरी है कि प्रतिपक्ष और मतदाता भी मजबूत हों। प्रतिनिधि और मतदाता एक-दूसरे को पुष्ट करने की भूमिका के लिए जुटें। देश की आत्मा पर संकट है। संकट में एकता ही विकल्प है; इसलिए जुड़ें।

कह सकते हैं कि यात्री एक उम्मीद दे रहे हैं। किस बात की उम्मीद? वे सादगीपूर्ण यात्रा कर रहे हैं। नागरिक संगठनों ने ‘भारत जोड़ो’ यात्रा में साथ होते हुए भी कांग्रेस की रोटी न खाकर, अपनी रोटी और ठहराव का इंतजाम किया है। भारत-यात्रियों ने यात्रा के दौरान नशामुक्त होने का संकल्प लिया है। यात्री, यात्रा स्थल तक पहुंचने के इंतजाम खुद अपने संसाधनों से करेंगे। यात्री होटल में नहीं रुकेंगे।

अपने रुकने और खाने का बोझा किसी अन्य पर नहीं डालेंगे। अपना इंतजाम खुद करेंगे। कंटेनर में रुकेंगे। साझी रसोई साथ चलेगी। यात्रा के प्रतीक चिन्ह, प्रतीक गीत में कांग्रेस का कोई निशान नहीं होगा। कांग्रेस का ध्वज नहीं, बल्कि भारत का राष्ट्र ध्वज ही यात्रा का ध्वज होगा। वे बोलने से ज्यादा, सुन रहे हैं। इस सबसे उम्मीद जगती है कि ये सत्ता में आए तो भारत के जनमानस पर अपनी दलगत् विचारधारा थोपने के लिए दिमाग में सेंधमारी नहीं करेंगे; जनमानस की सुनेंगे।

‘भारत जोड़ो’ यात्रा का चुनावी फायदा होगा या नहीं? यह इस पर निर्भर करेगा कि सरकारों व विरोधी संगठनों द्वारा जो कुछ भी अनैतिक व जनविरोधी किया गया है; कांग्रेस, यात्रा से प्राप्त भिन्न-भिन्न ऊजार्ओं को उसके खिलाफ मौजूद आवेग को कितने बडे़ वेग में बदल पाती है? क्या हासिल ऊर्जा, वोटरों में यह भरोसा जगा पाएगी कि चुनावों में कांग्रेस आई तो विकास तो करेगी ही, कम-से-कम संप्रदायों में झगड़े तो नहीं कराएगी? वोटरों के मन में चुनाव से पहले ही एक धुंधला, किन्तु यह विचार अंकुरित कर पाएगी कि इस बार यूपीए गठबंधन सरकार में आ सकता है?

ऐसे जोड़क व फलदायी नतीजे सिर्फ यात्रा से पैदा नहीं होंगे। यात्रा प्रबंधकों को जनता के सामने ऐसे ठोस प्रस्ताव, दस्तावेज और उन्हें क्रियान्वित करने की योजना व माध्यम पेश करने होंगे, जो भारत में बढ़ रहे आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक अनाचार को खत्म करने तथा खाइयों को पाटने के व्यावहारिक व विश्वसनीय समाधान हों। ‘भारत जोड़ो’ यात्रा – ऐसे प्रस्तावों को पेश करने, रायशुमारी करने तथा उन्हें लागू कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाने का एक अच्छा माध्यम बन सकती है।

कुल मिलाकर यह यात्रा और इससे प्रसारित व प्राप्त ऊर्जा, कांग्रेस के लिए एक सुअवसर है कि वह अपने भीतर-बाहर जो कुछ बदलना चाहती है, बदल डाले। जैसी अंगड़ाई लेना चाहती है, ले सकती है। जैसी नई कांग्रेस बनाना चाहे, बना सकती है। वह नए पिण्ड में पुरानी आत्मा वाली कांग्रेस बनना चाहती है अथवा पुराने पिण्ड में नई आत्मा वाली कांग्रेस; यह कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के तय करने की बात है।


janwani address 9

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments