महात्मा श्रीचंद्र जी, गुरु नानक देव जी के सबसे बड़े पुत्र थे। उन्होंने अपने पिता गुरु नानक देव जी से भगवत ज्ञान तथा भक्ति का मार्गदर्शन पाया था। महात्मा श्री चंद्र जंगल में रहा करते थे और धर्म का उपदेश दिया करते थे।
एक बार ध्यान से उठने के बाद, उन्होंने थोड़ा सा गुड़ खाने की इच्छा प्रकट की। शिष्य गुरु की इच्छा पूरी करने के लिए दौड़ता हुआ एक दुकानदार के पास पहुंचा और दुकानदार से कहा, भाई थोड़ा सा गुड दे दो, गुरु ने गुड़ खाने की इच्छा प्रकट की है।
दुकानदार ने सोचा कि यह मुफ्त का गुड़ लेने वाला है। अत: उसने कह दिया कि गुड नहीं है। गुड़ में मिट्टी मिली है। शिष्य महात्मा श्री चंद्र से दुकानदार की शिकायत करते हुए बोला, महाराज, दुकानदार के पास गुड़ था, लेकिन उसने ना देने के लिए झूठ बोल दिया और कहा कि उनमें तो मिट्टी भरी हुई है गुड नहीं है।
महात्मा श्री चंद्र ने शिष्य से पूछा, क्या तुमने उसका कोठा खोल कर देखा था? शिष्य ने कहा, नहीं महाराज। गुरु ने फिर कहा, तब तुम बिना देखे दुकानदार को झूठा कैसे कहते सकते हो? बिना प्रमाण के किसी को झूठा कहना शोभा नहीं देता।
जब अगले दिन उस दुकानदार ने गुड़ का कोठा खोला तो उसका सारा गुड खराब होकर मिट्टी हो गया था। दुकानदार ने अपना परिवार बुलाया और कहा अब इस गांव से चलो। यहां तो ऐसे योगी आ गए हैं कि वह जो कुछ कह देते हैं, वही हो जाता है।
दुकानदार गांव छोड़कर चला गया। महात्मा श्री चंद्र को जब पता चला तो वह बहुत दुखी हुए और बोले धिक्कार है मुझे जो मेरे कारण एक आदमी गांव छोड़ गया। अत: मनुष्य को सदैव सत्य बोलना चाहिए तथा ईमानदारी का आचरण करना चाहिए। पता नहीं किस समय, मुंह से निकली कौनसी बात सच हो जाए।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा
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