Saturday, June 29, 2024
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सत्ता के साथी, पूंजी के महाप्रभु

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01 7दस लाख करोड़ के दो ‘चोगे’ बने, एक राजा के लिए; दूसरा उसके खास कारोबारी के लिए! सब वाह-वाही में जुट गए। अखबार-दरबार-कारोबार सब जगह एक ही बात-वाह, क्या ‘चोगे’ बने हैं! पहले कारोबारी ‘चोगा’ पहनकर निकला। अभी थोड़ी दूर ही चला था कि कोई चिल्लाया: ‘अरे, ये तो नंगा है!! ‘चोगा’ तो है ही नहीं!’ राजा ने भी सारी चिल्ल-पौं सुनी; और सुनकर अनसुनी कर दी। वैसा एक ‘चोगा’ राजा के पास भी तो था। राजा ने सोचा, दस लाख करोड़ का ‘चोगा’ किसी एैरे-गैरे को थोड़े न दिखाई देगा ! बेशकीमती चीजें देखने के लिए बेशकीमती नजर भी तो चाहिए! दो-चार दिन बाद राजा का दस लाख करोड़ का ‘चोगा’ निकाला गया। सब दंग, सब हैरान!! तालियों की गड़गड़ाहट से दरबार गूंज उठा। अखबार-दरबार-कारोबार सब पर ‘चोगे’ का जादू सर चढ़कर बोलने लगा। सब कहने लगे : क्या ‘चोगा’ है! ऐसा करामाती ‘चोगा’ कि प्रजा की सारी परेशानी भुला दे; स्वर्ग की सैर करा दे! लेकिन बात फैलनी ही थी, फैली कि राजा का दस लाख करोड़ का ‘चोगा’ भी छलावा ही है! पर कौन कहे कि राजा नंगा है!

आपको लग रहा होगा कि मैं वही पुरानी कहानी फिर से आपको सुना रही हूं, लेकिन यह कहानी नहीं है। पिछले दिनों अडानी के खिलाफ हिंडनबर्ग रिसर्च नाम की एक अमेरिकन कम्पनी ने रिपोर्ट जारी की है। लिखा है कि अडानी का पूरा कारोबार दुनिया की सबसे बड़ी ठगी है ! हिंड़नबर्ग कंपनी खोजबीन के आधार पर ऐसी कंपनियों पर निशाना साधती है, जिनके कारोबार उसे फर्ज़ी लगते हैं।

शेयर बाजार में फर्जी लगने वाली कंपनी के शेयर ऊंचे दाम पर बेच देती है, फिर पूरे प्रमाण और तथ्यों के साथ अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक करती है। इससे बाजार में अफरा-तफरी मच जाती है और उस कम्पनी के शेयर गिर जाते हैं। गिरे हुए शेयरों को कौड़ियों के दाम खरीदकर वे लोग मुनाफा वसूली कर लेते हैं। यहां यह बताती चलूं कि शेयर बाजार में ऐसा करना गैर-कानूनी नहीं है।

अडानी के खिलाफ हिंड़नबर्ग कम्पनी ने रिपोर्ट तब जारी की जब वे बाजार में अपना 20,000 करोड़ का एफपीओ (फॉलो आॅन पब्लिक आॅफर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पहले से ही एक्सचेंज में सूचीबद्ध कंपनी निवेशकों या मौजूदा शेयरधारकों को नए शेयर जारी करती है।) ले आए थे। अडानी ने पहले से ही बैंक, जीवन बीमा (एलआईसी) आदि से दो लाख करोड़ रुपए से ऊपर का कर्ज उठा रखा है। दुनिया भर के धनपति व संस्थान अडानी जैसों को ऐसे बड़े-बड़े कर्ज इसलिए देते रहे हैं कि उसने दस लाख करोड़ का ‘चोगा’ पहन रखा है।

हिंडनबर्ग ने कह दिया : कारोबारी नंगा है! उसके कहने भर की देर थी अडानी के सारे शेयर बाजार में गिरने लगे। जब यह लेख लिखा जा रहा है, छह दिनों में दस लाख करोड़ की चपत अडानी के नाम पर लग चुकी है। इसके अलावा ‘एलआईसी,’ उन बैंकों के शेयर जिन्होंने अडानी को कर्ज दे रखा है, म्यूचुअल-फंड आदि के नुकसान का अंदाजा अभी लगाया जा रहा है। एक निजी अध्ययन कहता है कि भारतीय संस्थानों का, एक या दूसरे रूप में, कुल साढ़े आठ लाख करोड़ का निवेश अडानी कम्पनियों में है। उसका 50 प्रतिशत भी जोड़ें तो लगभग 4 लाख करोड़ का नुकसान! लेकिन इस नुकसान की बात पर फिर आती हूं।

हमारी वित्तमंत्री ने भी दस लाख करोड़ का एक ‘चोगा’ बजट में पेश किया। उन्होंने कहा कि सरकार ने पूंजीगत निवेश, जिसे कैपिटल-एक्स्पेंडिचर भी कहते हैं, बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपयों का कर दिया है, पिछले साल की तुलना में 33 प्रतिशत ज्यादा! फिर से दरबार-कारोबार-अखबार सब गदगद!! किसी ने भूले-भटके भी नहीं पूछा, मैडम, रोजगार का क्या? या महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (मनरेगा) का पैसा क्यों घटा? महंगाई से मर रहे गरीबों का सवाल भी किसी ने नहीं पूछा। कोई यह भी नहीं पूछ पाया कि इस साल भी आप जो 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज देने जा रहे हैं, उसका खर्च पिछले साल से कम कैसे हो गया?

आखिर दस लाख करोड़ का ‘चोगा’ बना कहां से? सरकार तो बता रही है कि आने वाले साल में खर्च पर काबू करेंगे, क्योंकि कमाई बढ़ने के आसार इस साल भी कम ही हैं। जब कुल खर्च पर काबू किया जा रहा है तो जाहिर है, खर्च की कटौती होगी। यह कटौती कहां हो रही है? इस ‘चोगे’ की सबसे बड़ी कीमत चुका रही हैं, सारी सरकारी कंपनियां! उन सबका कैपिटल-एक्स्पेंडिचर खत्म कर, उसे दूसरी तरफ मोड़ दिया गया है। अब इन कंपनियों का क्या होगा? सरकार उन्हें बेचने पर मजबूर हो जाएगी।

मनरेगा पर खर्च पिछले साल के मुकाबले 33 प्रतिशत कम होगा। खाद्यान्न-सब्सिडी में 31 प्रतिशत की, खाद पर 22 प्रतिशत की, पेट्रोल पर 75 प्रतिशत की कटौती हुई है। कुल मिलाकर लगभग 5 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी में 30 प्रतिशत की कटौती हो रही है। कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में स्वास्थ्य-बजट का हिस्सा पिछले साल से घट गया है।

लब्बो-लुआब यह कि कई तरह के खर्चों में कटौती करके बनाया गया है कैपिटल-एक्स्पेंडिचर का दस लाख करोड़ रुपयों का यह ‘चोगा’! कहां-कहां से कम किया गया है पैसा, यह अपने-आप में एक स्वतंत्र, लंबे लेख का विषय है। मोटा-मोटी कहूं तो गरीबों को सम्मानजनक रोजगार मिले, इसकी कोई सोच नहीं है।

लोगों को या तो बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है या फिर दो-कौड़ी की मुफ़्त रेवड़ी पकड़ा दी गई है। और बाजार भी कैसा-हाथ से काम करने वाले विश्वकर्मा को ‘थ्री-डी प्रिंटर’ से सीधी स्पर्धा में उतार दिया गया है। पैसा आ कहां से रहा है? अरे, वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के सरकारी आंकड़े नहीं देखे आपने? भर-भर कर पैसा आ रहा है! अब तो आटा, दही, छाछ तक पर जीएसटी लग गया है।

दो ही सवाल पूछती हूं: जब अडानी के शेयर गिरे और जो नुकसान हुआ, यह नुकसान किसका हुआ? अडानी का? गंवाने के लिए अडानी के पास इतना पैसा आया कहां से? 2020 में अडानी की एक कंपनी, एंटरप्राइज का शेयर 125 रुपयों का था जो 2022 में 4100 रुपयों का हो गया।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट’ के बाद वह गिरकर 1017 रुपयों का हो गया। अब आप देखिए कि शेयर ऊपर गया तो पैसा कहां गया? और शेयर नीचे गया तो पैसा कहां गया? जवाब है: अपनी बेहिसाब अमीरी को गिरवी रख उन्होंने लाखों-करोड़ों रुपयों का कर्ज देशी-विदेशी बाजार से उठाया था। दाम नीचे गिरा तो उन सबका नुकसान हुआ जिन्होंने यह कर्ज अडानी को दिया था।

बैंक, एलआईसी, म्यूच्युअल-फंड आदि में पैसा किसका है? अभी तक ऐसा तो नहीं हुआ है कि अडानी साहब को पैसा छापने के लिए निजी प्रेस लगाने की अनुमति मिल गई हो। तो पैसा तो हमारा ही है जो उद्योगपतियों का कहकर, उनकी जेब में डाला जा रहा है। अडानी कंपनी 1988 में बनी। भारतीय जनता पार्टी की गुजरात सरकार 1995 में बनी। 1996 में कंपनी ने पहली बार जनता से शेयर बाजार में आकर पैसा लिया। इसके बाद न अडानी समूह ने कभी पीछे मुड़कर देखा, न गुजरात की बीजेपी सरकार ने! यही है, गुजरात मॉडल! दुनिया में इसे ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ (याराना पूंजीवाद) कहते हैं।


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