Saturday, May 10, 2025
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हिमालय क्षेत्र में मंडराता भूकंप का खतरा

Nazariya 22


ROHIT MAHESHWARIबीती 3 अक्तूबर, की दोपहर में अचानक धरती कांप उठी। उस दिन पृथ्वी के भीतर ऐसी हलचलें हुईं कि आधा घंटे के अंतराल पर दो भूकंप आए। बाद वाले भूकंप की तीव्रता 6.2 मापी गई। नेपाल का हिमालयीय क्षेत्र भूकंप का केंद्र था, लेकिन राजधानी दिल्ली समेत उत्तर भारत के कई शहरों ने कंपन और धक्के महसूस किए। भूकंप की यह तीव्रता भी खतरनाक और घातक है। ईश्वर की कृपा रही कि कहीं से जान-माल की त्रासद खबरें नहीं आईं। कुछ लोग नेपाल में घायल हुए हैं और एक पुराने भवन की दीवार ढही है। धरती मुख्य तौर पर चार परतों से बनी होती हैं। इनर कोर, आउटर कोर, मैनटल और क्रस्ट। क्रस्ट और ऊपरी मैन्टल कोर को लिथोस्फेयर कहते हैं। ये 50 किलोमीटर की मोटी परत कई वर्गों में बंटी हुई है जिसे टैकटोनिक प्लेट्स कहते हैं। ये टैकटोनिक प्लेट्स अपनी जगह पर कंपन करती रहती हैं और जब इस प्लेट में बहुत ज्यादा कंपन हो जाती हैं, तो भूकंप महसूस होता है। बहरहाल भूकंप विशेषज्ञ बार-बार आकलन करते हुए भविष्यवाणी करते रहे हैं कि ये भूकंप किसी ‘महाभूकंप’ की पदचाप हैं। ऐसा ‘महाभूकंप’ 50,100 या 200 सालों में कभी भी आ सकता है। उसके निश्चित समय का आकलन विशेषज्ञ भी नहीं कर पा रहे हैं। यदि ‘महाभूकंप’ आया, तो ‘महाप्रलय’ के हालात बनेंगे और तबाही, त्रासदियां व्यापक स्तर पर होंगी। तुर्किये के भूकंप संभावित महाप्रलय की बानगी माने जा सकते हैं। यदि भूकंप की तीव्रता 7 को पार कर गई और करीब 8 हुई, तो राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्र की आधे से अधिक इमारतें वे भूकंपीय कंपन झेल नहीं पाएंगी। इसी साल अगस्त में 6 तीव्रता से अधिक के भूकंप हमने आधा दर्जन बार महसूस किए हैं। अलबत्ता भूकंपों की संख्या लगातार बढ़ रही है।

सवाल यह नहीं है कि भूकंप क्यों आते हैं या पृथ्वी के भीतर की प्लेटें आपस में क्यों टकराती हैं? ये सवाल फिलहाल हमारे वैज्ञानिक, भूगर्भीय विशेषज्ञों के अनुसंधान से परे हैं, लेकिन बुनियादी चिंता यह है कि हम लगातार भूकंपों से कांपने, हिलने-डुलने के बावजूद लापरवाह हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान के प्रोफेसर अनिल गुप्ता का विश्लेषण है कि राजधानी दिल्ली की सोसायटियों में बहुमंजिला इमारतें बनी हैं। छोटे स्तर पर बिल्डर भी ऐसे भवन बनवा रहे हैं। वे भवन भूकंप-रोधी तकनीक से बन रहे हैं अथवा नहीं, इमारतों की भूकंप झेलने की क्षमताएं शेष हैं या नहीं, लंबे समय तक गर्मी, धूप, बारिश सहते हुए इमारतों पर उनके क्या प्रभाव पड़े हैं अथवा इमारतों के नीचे पानी रिस रहा है, तो सीलन कितनी है, इन तमाम स्थितियों की न तो उचित और निरंतर जांच की जाती है और न ही कोई कड़े कायदे-कानून हैं। यकीनन भूकंप के झटके हमारे निमार्णों की मजबूती को कमजोर तो कर ही रहे हैं। राजधानी दिल्ली की ही चिंता नहीं है, बल्कि जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, उप्र, बिहार के कई हिस्से, गुजरात का कच्छ रण, सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडेमान-निकोबार द्वीप समूह आदि भूकंप-संवेदी क्षेत्र हैं। इन्हें जोन 4 और 5 में वगीर्कृत किया गया है। यानी ये क्षेत्र विध्वंस और मौत के कगार पर स्थित हैं। नेपाल का 7.9 तीव्रता वाला भूकंप 2015 में हम देख-पढ़ चुके हैं। कितने लोग मारे गए थे और कितने भवन ‘मलबा’ हो गए थे। इतिहास में 1897 का शिलांग पठार का 8.1 तीव्रता, 1905 में कांगड़ा का 7.8 तीव्रता, बिहार-नेपाल सीमा का 1934 में 8.3 तीव्रता और 1950 में अरुणाचल-चीन सीमा पर 8.5 तीव्रता के भूकंप दर्ज हैं। उन्हें तो हमारी पीढ़ी देख-महसूस नहीं कर सकी, लेकिन ये इतिहास के सबसे घातक और भयावह भूकंप थे। अभी एक रपट के हवाले से आकलन किया गया है कि यदि 7 तीव्रता का भूकंप आता है, तो राजधानी दिल्ली की 80 फीसदी इमारतें ‘असुरक्षित’ हैं। तुर्किये और पड़ोसी सीरिया में बीती छह फरवरी को भूकंप के शक्तिशाली झटके महसूस किए गए थे। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 7.8 मापी गई थी। इसके एक-दो दिन बाद भी कई बार भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए थे। शक्तिशाली भूकंप से मरने वालों की संख्या 41,000 से ज्यादा थी। तुर्किये के बाद तजाकिस्तान में भी फरवरी में भूंकप आया था।

फरवरी 2023 को वाडिया इंस्टीट्यूट की रिसर्च में ही खुलासा हुआ था कि हिमालय क्षेत्र के सबसे बड़े ग्लेशियर में से एक गंगोत्री ग्लेशियर बीते 87 सालों में 1.7 किलोमीटर तक खिसक गया है। हिमालय क्षेत्र के अन्य ग्लेशियर में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। इसके अलावा जोशीमठ में हुआ भू धंसाव भी एक बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहा है। बीते 150 सालों में हिमालय क्षेत्र में चार बड़े भूकंप आए हैं। इनमें साल 1897 में शिलॉन्ग का भूकंप, 1905 में कांगड़ा का भूकंप, 1934 में बिहार-नेपाल का भूकंप और 1950 में असम का भूकंप शामिल हैं। इनके अलावा साल 1991 में उत्तरकाशी में, 1999 में चमोली में और 2015 में नेपाल में भी बड़ा भूकंप आया था। हाल ही में दावा किया गया था कि शीघ्र ही वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंच सकते हैं कि भूकंप कब आ सकता है। कमोबेश भूकंप आने से कुछ पहले आगाह किया जा सकता है। वह अध्ययन किन आधारों पर किया जा रहा है, हम नहीं जानते। जब कुछ ठोस सामने आएगा, तो हम भी विश्लेषण करेंगे। वैज्ञानिक व इस क्षेत्र से जुड़ी संस्थाएं इस दिषा में लगातार काम कर रही हैं। लोगों को सचेत रहना चाहिए कि जब भूकंप एक बार आता है, तो बार-बार भी वह आ सकता है। बचाव जरूरी है और वैज्ञानिक उसी दिषा में लगातार काम भी कर रहे हैं।


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