Monday, July 1, 2024
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अहंकार का अंधेरा

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Amritvani


श्रीनगर कश्मीर के ब्रह्मदास नाम के प्रसिद्ध देवी उपासक, जिनके पास कई असाधारण सिद्धि थीं, एक बार अपना कौशल दिखाने के लिए उड़ती चटाई पर सवार हो कर गुरु नानक के पास मिलने पहुंचे। स्थान पर पहुंच कर देखा लोग तो थे, लेकिन गुरु नानक देव कहीं नजर नहीं आ रहे थे। ब्रह्मदास नें लोगों से पूछा, कहां हैं गुरु नानक देव? तब लोगों नें कहा, आप के सामने ही तो वह बैठे हैं।

उड़ती चटाई पर सवार ब्रह्मदास नें सोचा की लोग शायद उसका मजाक बना रहे हैं, यह सोच कर वह जाने लगा तो, उसकी चटाई जमीन पर आ पड़ी और साथ वह भी नीचे आ गिरा। अगले दिन पंडित ब्रह्मदास विनम्रता के साथ चल कर वहां गया। उसने देखा तेज मुखी गुरु नानक वहीं विराजमान थे। वह लोगों के साथ सत्संग कर रहे थे।

तभी ब्रह्मदास से रहा नहीं गया, उसने गुरु नानक से सवाल किया, कल मैं चटाई पर उड़ कर आया था, लेकिन तब आप मुझे आप क्यों नहीं दिखे थे? तब गुरु नानक बोले, इतने अंधकार में भला मैं तुमको कैसे दिखता। यह सुन कर ब्रह्मदास बोला, अरे…अरे…मैं तो दिन के उजाले में आया था। दैनिक जनवाणी संवाद

ऊपर आसमान में तो चमकता सूरज मौजूद था। गुरु नानक नें कहा, अहंकार से बड़ा कोई अंधकार है क्या? अपने आकाश में उड़ने की सिद्धि के कारण तुम खुद को अन्य लोगों से ऊंचा समझने लगे। कीट-पतंगे, जंतु, पक्षी भी उड़ रहे हैं। क्या तुम इनके समान बनना चाहते हो? ब्रह्मदास को अपनी भूल समझ आ गयी. उसने गुरु नानक से आत्मा उन्नति का ज्ञान लिया और भविष्य में कभी अपनी सिद्धिओं पर अभिमान नहीं करने का प्रण लिया।
                                                                                                        प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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