Monday, July 1, 2024
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बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि आज, जानें उनके जीवन से जुड़ी खास बातें

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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। आज बाल गंगाधर तिलक की पुण्यतिथि है। बाल गंगाधर तिलक भारत के प्रमुख नेता, एक समाज सुधारक, भारतीय राष्ट्रवादी, स्वतंत्रता सेनानी और स्वराज के अनुयायी थे।

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लोकमान्य ने ही सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाने वाले और ‘स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ ये नारा भी उन्होंने ही दिया था। इसलिए उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का जनक कहा जाता है। देश को अग्रेजों की गुलामी से मुक्त करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तो आइये जानते हैं तिलक की पुण्यतिथि पर उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में…

बाल गंगाधर तिलक का जन्म

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई, 1856 को हुआ था। बाल गंगाधर तिलक का जन्म रत्नागिरी जिले के मुख्यालय रत्नागिरी में एक मध्यमवर्गीय मराठी हिंदू चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। तिलक का विवाह तपिबाई नाम की कन्या से 1871 में हुआ था, जिनका नाम शादी के बाद सत्यभामा हो गया।

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बाल गंगाधर तिलक की शिक्षा 

पिता खुद संस्कृत के विद्वान थे, ऐसे में बाल गंगाधर तिलक की पढ़ाई में बहुत निपुण और ज्ञानी थे। पिता का रत्नागिरि से पुणे स्थानांतरण हुआ तो तिलक का दाखिला भी पुणे के एंग्लो वर्नाकुलर स्कूल में करा दिया गया।

1877 में तिलक ने पुणे के डेक्कन कॉलेज से संस्कृत और गणित विषय की डिग्री हासिल की। उसके बाद मुंबई के सरकारी लॉ कॉलेज से एलएलबी पास किया। आधुनिक शिक्षा हासिल करने वाली पहली पीढ़ी के भारतीय युवाओं में तिलक को प्रथम माना जा सकता है।

आजादी में तिलक ने दिया अहम योगदान

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लोकमान्य तिलक पूर्ण स्वतंत्रता या स्वराज्य (स्व-शासन) के सबसे प्रारंभिक एवं सबसे मुखर प्रस्तावकों में से एक है। तिलक ने दक्खन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारत में शिक्षा का स्तर सुधारना था।

इसके अलावा मराठी भाषा में तिलक ने मराठा दर्पण और केसरी नाम से दो अखबार भी शुरू किए, जो उस दौर में काफी लोकप्रिय हुए। स्वतंत्रता आंदोलन का हिस्सा बनते हुए तिलक ने अंग्रेजी हुकूमत का विरोध किया और ब्रिटिश सरकार से भारतीयों को पूर्ण स्वराज देने की मांग की।

उनके अखबार केसरी में छपने वाले लेखों की वजह से तिलक कई बार जेल गए। अपने प्रयासों के कारण तिलक को ‘लोकमान्य’ की उपाधि से नवाजा गया। एक अगस्त 1920 में लोकमान्य तिलक ने अपनी आंखें मूंद ली।

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