एक लकड़हारे की जिंदगी लकड़ियां ढोते-ढोते बीत गई। उसने कई बार सोचा कि मर क्यों न जाऊं! कई बार प्रार्थना की कि हे प्रभु, मेरी मौत क्यों नहीं भेज देता, सार क्या है इस जीवन में! रोज लकड़ी काटना, रोज लकड़ी बेचना, थक गया हूं! किसी तरह रोजी-रोटी जुटा पाता हूं। एक जून की मिल जाए तो बहुत। कभी वर्षा ज्यादा दिन हो जाती है, तो लकड़ी काटने नहीं जा पाता। और लकड़ी काटने से मिलता ही कितना है। एक दिन वह थका-मांदा, खांसता-खंखारता, गट्ठर लिए लौट रहा था। इसी दौरान उसे लगा कि अब बिल्कुल व्यर्थ है, जीवन! उसने गट्ठर नीचे पटका, आकाश की ओर हाथ जोड़कर कहा, मृत्यु, तू सबको आती है, मुझे नहीं आती! हे यमदूत, तुम मुझे भूल गए क्या? उठा लो अब! संयोग की बात, उस दिन यमदूत पास से ही गुजरते रहे थे—सोचा कि बूढ़ा बड़े कातर ढंग से पुकार रहा है, तो यमदूत आ गए। बोले, क्या हुआ भाई, क्या काम है? बूढ़े, ने देखा, मौत सामने खड़ी है। मौत सामने खड़ी देख उसके प्राण कांप गए। वह भूल ही गया कि मरने इत्यादि की बातें कर रहा था। बोला, भाई मेरा गट्ठर नीचे गिर गया था। यहां कोई उठाने वाला नहीं दिखा, इसलिए आपको बुलाया, और नमस्कार, आगे से आने की जरूरत नहीं है! जिस गट्ठर से परेशान वह था, उसी को यमदूत से उठवाकर सिर पर रख लिया। उस दिन जब वह घर आया, तो जवान हो गया था! बड़ा प्रसन्न था कि बच गए मौत से। मौत के क्षण में जीवन की आशा प्रगाढ़ हो जाती है। व्यक्ति परेशानी में मौत की कामना करता है, लेकिन आने पर उसका स्वागत हर किसी के बस में नहीं होता।