धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों
को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है।
पितृ पक्ष का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व होता है। पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है। ‘श्रद्धया इदं श्राद्धं?’ (जो श्रद्धा से किया जाए, वह श्राद्ध है) अर्थात प्रेत और पित्तर के निमित्त, उनकी आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक जो अर्पित किया जाए वह श्राद्ध है। श्राद्ध का अर्थ अपने देवों, परिवार, वंश परंपरा, संस्कृति और इष्ट के प्रति श्रद्धा रखना है। ब्रह्मपुराण में उल्लेखित है कि देश, काल और पात्र में श्रद्धा द्वारा जो भोजन पितरों के उद्देश्य से ब्राह्मणों को दिया जाए, उसे श्राद्ध कहते हैं। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण किया जाता है। इस पक्ष में विधि-विधान से पितर संबंधित कार्य करने से पितरों का आशार्वाद प्राप्त होता है। श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है।
पितृ (श्राद्ध) पक्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से प्रारंभ होकर आश्विन मास की अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष रहता है। जो इस साल 17 सितंबर से शुरू होंगे और यह 02 अक्टूबर तक चलेंगे। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण आदि के कार्य किए जाते हैं। साथ ही पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध कर्म किया जाता है। मतलब जिस तिथि को पितर स्वर्गलोक गए थे, उस तिथि को ही ब्राह्राण भोजन कराया जाता है। साथ ही दान-दक्षिणा दी जाती है। इस दौरान हर एक दिन तर्पण और पिंडदान के नजरिए से खास होता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान पितर संबंधित कार्य करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है। हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले गए हैं चाहे वे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, उनकी तृप्ति और उन्नति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध है। माना जाता है कि सावन की पूर्णिमा से ही पितर मृत्यु लोक में आ जाते हैं और नवांकुरित कुशा की नोकों पर विराजमान हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम का निकालते हैं, उसे वे सूक्ष्म रूप में आकर ग्रहण करते हैं। केवल तीन पीढ़ियों का श्राद्ध और पिंड दान करने का ही विधान है।
पितृ पक्ष का महत्व :
पितृ पक्ष में कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है और ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में खुशी का कोई भी कार्य करने से पितरों की आत्मा को कष्ट होता है। इस दौरान शादी, ब्याह मुंडन, गृह प्रवेश, अन्य शुभ कार्य या फिर कोई भी नई चीज खरीदना शास्त्रों में वर्जित माना गया है। इसके साथ ही यह भी माना जाता है कि जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष वे पितृ पक्ष में पितरों को प्रसन्न करने के कुछ विशेष उपाय करें तो उनके ये दोष दूर किए जा सकते हैं। पितर दोष से मुक्ति के लिए इस पक्ष में श्राद्ध, तर्पण करना शुभ होता है। पितृ पक्ष में पितरों के निमित्त पिंडदान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। कुछ लोग काशी और गया जाकर अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। पितृ पक्ष में ब्रह्म भोज करवाया जाता है और पितरों के निमित्त दान-पुण्य किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष में श्राद्ध न करने से पितरों की आत्मा तृप्त नहीं होती है और उन्हें शांति नहीं मिलती है। जिस दिन श्राद्ध हो उस दिन ब्राह्मणों को भोज करवाना चाहिए। भोजन के बाद दान दक्षिणा देकर भी उन्हें संतुष्ट करें। श्राद्ध पूजा दोपहर के समय शुरू करनी चाहिए। मान्यता है कि पितृ पक्ष में दान, तर्पण व श्राद्ध कर्म करने से पितर प्रसन्न होते हैं।
पितृ पक्ष में कौओं का महत्व
मान्यता है कि कौए पितर का रूप होते हैं। श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर आते हैं। अगर उन्हें श्राद्ध नहीं मिलता तो वे रुष्ट हो जाते हैं। पुराणों के अनुसार मुताबिक मृत्यु के देवता यमराज श्राद्ध पक्ष में जीव को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे स्वजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। पितृ तर्पण से प्रसन्न होकर पितर अपने परिजनों को सुखी और संपन्न रहने का आशीर्वाद देते हैं।
डॉ. पवन शर्मा