Wednesday, August 13, 2025
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पहली लहर के सबक को भूल गए दिल्लीवासी, व्यवस्था-व्यवहार हुआ तार-तार

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: आज से ठीक एक साल पहले दिल्ली में कोरोना संक्रमण के महज पांच हजार मामले आए थे। उस वक्त पूरा सरकारी महकमा सक्रिय था, जबकि आम लोग घरों में दुबक गए थे। सड़कों पर सैनिटाइजेशन आम था और सामाजिक दूरी का भी सभी को ख्याल था। होम आइसोलेशन में रहने वालों की पड़ोसियों को जानकारी थी।

आपदा प्रबंधन की टीमें घर-घर घूमकर मरीजों को सावधानी बरतने का पाठ पढ़ा रही थी, जबकि आज जब सामुदायिक प्रसार हो रहा है, हवा में वायरस होने की बात है, ऑक्सीजन की कमी से लोग तड़प कर अस्पताल की दहलीज पर ही मर रहे हैं, संक्रमितों की संख्या भी लाखों में है, तब सख्ती कम हो गई है। ना तो आम नागरिक अपने कोविड प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं और ना ही सरकारी महकमा ही सचेत दिखाई दे रहा है।

सड़कों से गायब हैं सैनिटाइजेशन मशीन                                              

पिछले साल संक्रमण व मौत की दर आज की अपेक्षा बेहद कम थ। उस समय एमसीडी व दिल्ली सरकार सैनिटाइजेशन के लिए बड़ी-बड़ी गाड़ियां सड़कों पर उतारती थी। भरी दोपहरी में चारों तरफ केमिकल का छिड़काव होता था। खासकर, जिस घर में कोरोना के मरीज होते थे वहां आसपास पीपीई किट पहनकर कर्मी केमिकल का छिड़काव करते थे, लेकिन आज जब कुछ इलाकों में हर तीन-चार घर छोड़कर एक घर में पूरे परिवार के साथ लोग संक्रमित हैं तो सरकारी महकमा खामोश बैठा है। छिड़काव वाले वाहन बमुश्किल दिखाई दे देते हैं, जबकि कहा जा रहा है कि हवा में वायरस है। सामुदायिक संक्रमण का दौर है।

कोविड मरीजों के घर पर नोटिस तक नहीं हो रहा चस्पा                                        

सामुदायिक संक्रमण के दौर में कोरोना संक्रमित मरीजों के घर के सामने नोटिस तक नहीं चिपकाया जा रहा है। यह एक तरह से अलर्ट नोटिस होता था, ताकि उस फ्लैट से लोग बच कर रहे, लेकिन इससे भी स्थानीय प्रशासन किनारा कर ले रहा है। सबसे कठिनाई यह है कि डीडीए के आमने सामने के फ्लैट में भी नही पता चलता कौन घर संक्रमित है और कौन नहीं। जब मल्टीस्टोरी बिल्डिंग में एक ही सीढ़ी व एक ही लिफ्ट से लोगों का आना-जाना रहता है।

माइक्रो जोन भी महज दिखावा                                                      

पिछले साल जब संक्रमण दर आज के मुकाबले कुछ भी नहीं थी तो हर दिन दिल्ली का कोई ना कोई इलाका कंटेनमेंट जोन में तब्दील होता था, लेकिन अब माइक्रो कंटेमेंट जोन महज एक दिखावा बन कर रह गया है। दिल्ली की कुछ सोसायटी ऐसी हैं, जहां औसतन एक से दो मौत कोरोना की वजह से प्रतिदिन हो रही हैं। कायदे से उस जोन को रेड जोन कर देना चाहिए। बावजूद, डीडीए की सोसायटी में बेरोकटोक लोग घूमते नजर आते है।

सामाजिक दूरी लोगों से दूर                                                                 

पिछले साल सामाजिक दूरी के लिए हर दुकान के सामने गोल घेरा बनाया गया था, जहां लोग खुद सामाजिक दूरी के साथ खड़े रहते थे। इस बार दिल्ली की जनता इतनी बेपरवाह है कि सोशल डिस्टेंसिंग का कोई मायने नहीं है। हर जगह इसकी धज्जियां उड़ती नजर आ रही हैं।

घर मे सेविकाओं का आना-जाना                                                               

कोरोना संक्रमण के तेजी से फैलाव के बावजूद सेविका, ड्राइवर व ऑनलाइन डिलीवरी मैन का आना-जाना हर जगह जारी है। लोग इस कदर बेपरवाह हैं कि एक सेविका तीन-चार जगह काम करती हैं। बावजूद, घर का कामकाज कराने से मनाही नहीं करते। आरडब्ल्यूए के व्हाट्सएप ग्रुप पर बराबर वाद-विवाद का विषय इस तरह के मामले बने रह रहे हैं।

कचरा एकत्रित करने वालों को भी संक्रमित कर रहे हैं लापरवाह लोग                                    

कोविड संक्रमित होने के बावजूद इसे लोग छुपा रहे हैं। यहां तक कि प्रतिदिन कचरा लेने वालों को भी नहीं बताते हैं कि उनके घर में कोई सदस्य संक्रमित हैं। ऐसे में घर का कचरा एकत्रित करने वालों के ऊपर संक्रमण का खतरा है ही साथ ही दूसरे घर के लोगों को भी संक्रमित करने की वजह बन रहे हैं।

केस : 01                                                                           

मधुलिका गुप्ता का 28 अप्रैल को क्वारंटीन समय पूरा हो गया। पति डॉ. सुबोध गुप्ता बेटा पार्थ के साथ पूरा परिवार ही संक्रमित हुआ था। जब पूरा परिवार होम क्वारंटीन में रहकर स्वस्थ हो गया तो 2 मई को सरकार की तरफ से दिनेश नाम का व्यक्ति उनके घर पहुंचा। मधुलिका गुप्ता से कहा कि दिल्ली सरकार की तरफ से आया हूं, मुझे 14 दिन आपके घर के सामने रहना है। स्थानीय प्रशासन ने ड्यूटी लगाई है। जब उससे बोला गया कि संक्रमण तो खत्म हो गया है, बावजूद वह मुखर्जी नगर डीडीए सोसायटी गेट पर पहुंचकर कहता है कि मेरी ड्यूटी लगाई गई है।

केस : 02                                                                              

उत्तरी दिल्ली के डीडीए के एक सोसायटी में कई लोग संक्रमित हैं, लेकिन संक्रमित होने के बावजूद भी लोग बता नहीं रहे हैं। डॉ. अनामिका कहती है कि पड़ोस में रहने वाले एक प्रोफेसर का पूरा परिवार कोविड में है। 14 दिनों बाद पता चला कि उनका पूरा परिवार संक्रमित है। कोविड मरीज इसे छुपा रहे हैं, इसके वजह से ज्यादा स्प्रेड हो रहा है।

केस : 03                                                                                     

तीमारपुर के समीप वैक्सीनेशन सेंटर बनाया गया है, जहां केंद्रीय कर्मियों को भी वैक्सीन दिया जा रहा है। पूर्व वैज्ञानिक डॉ. जीएल शर्मा कहते हैं कि लोग इतने लापरवाह दिखें कि पता ही नहीं चल रहा था कि कौन कोरोना संक्रमित है। इस पर पाबंदी लगनी चाहिए। नहीं तो वैक्सीन लेने जाने वाले भी संक्रमित होकर लौटेंगे।

बायो बबल बनाना पड़ेगा                                                                 

लोग बेगपरवाह हो गए हैं। खुद ही वायरस का सोर्स बन गए हैं। इस चेन को तोड़ने के लिए बॉयो बबल बनाना पड़ेगा। विज्ञान की भाषा में कहें तो इसका मतलब किसी के साथ संपर्क में नहीं आना, संपर्क में आना भी तो पूरे तरह से सैनिटाइज होकर, ताकि कंटेनिमेशन नहीं हो। इस साल सरकार सख्ती नहीं दिखा रही है। इसी वजह से बम ब्लास्ट हुआ है। इससे बचने के तीन रास्ते हैं। कोविड प्रोटोकॉल को सख्ती से पालन कराया जाए, पूर्ण लॉकडाउन होना चाहिए। सभी का वैक्सीनेशन होना चाहिए। जब एक करोड़ लोग मर ही जाएंगे तो अर्थव्यवस्था को बचाकर क्या करना है।

वायरस एक ऐसा पार्टिकल है, जो इनएक्टिव पार्टिकल होता है। डस्ट पार्टिकल जैसा होता है। जो कहीं न कहीं बैठा होता है। जब शरीर के सेल में पहुंचता है तो एक्टिव हो जाता है। अगर हम हाइप्रोक्लोराइड यानी ब्लीचिंग पाउडर का छिड़काव करते हैं तो उस वायरस के डीएनए को निष्क्रिय कर देते हैं। जैसे ब्लीचिंग पाउडर कपड़े पर गिरता है तो कपड़े का रंग उड़ जाता है। इसी तरह अलकोहल की वजह से वायरस डिहाइड्रेड होता है उसे ड्राई कर देता है। यानी उसका पानी खत्म हो जाता है और वायरस निष्क्रिय हो जाता है।           -डॉ. जीएल शर्मा, पूर्व चीफ साइंटिस्ट बॉयोमेडिकल साइंस बीयू झांसी

स्थिति यह है कि जब लोग ठीक हो रहे हैं तब सरकारी व्यवस्था सक्रिय हो रही है। सोशल डिस्टेंसिंग भी महज एक दिखावा है। सेविका कई घरों में काम कर रही हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बना रहता है। एमसीडी व दिल्ली सरकार ऑक्सीमीटर तक उपलब्ध कराने में विफल है। जब भी उनसे आक्सीमीटर की मांग की जाती है तो टका सा जवाब होता है कि नहीं है।
                                                                        -मधुलिका गुप्ता, लेबोरेट्री टेक्नॉलोजिस्ट

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