- मिशन शक्ति भी नहीं दे पा रहा अबलाओं को ताकत
- जान तक देने को हैं मजबूर, थानों में बनी शोपीस
- दुष्कर्म, छेड़खानी व घरेलू हिंसा के केसों की थानों पर नहीं हो रही है सुनवाई
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: जनपद के सभी थानों में महिला हेल्प डेस्क होते हुए भी दुष्कर्म, छेड़खानी और घरेलू हिंसा सरीखे मामलों की पीड़ित महिलाओं को मदद की दरकार है। मदद के लिए अफसर-दर अफसर धक्के खाती हैं और उसके बाद भी जब मदद नहीं मिल पाती तो फिर पुलिस सिस्टम से परेशान ऐसी महिलाओं को फिर जिंदगी जहन्नुम लगती है,
फिर इस जहन्नुम से निजात पाने के लिए वो मौत को गले लगाने तक जा पहुंचती हैं। जिससे मदद की उम्मीद होती है वो पुलिस मदद नहीं कर पाते, समाज के ताने जीने नहीं देते और जिनकी खिलाफ मदद मांगने जाती है। उनका असर व पहुंच ऐसी कि तमाम कोशिशों के बाद भी मदद मिल नहीं पाती।
केस-1
- मेरठ के सरधना के तहसील (समाधान) दिवस में जहां सीडीओ और सीओ सरीखे अफसर मौजूद थे वहां एक युवती ने इन अफसरों के सामने जान देने का प्रयास किया। नाबालिग पीड़िता के साथ छह महीने पहले दबंगों ने गैंग रेप किया था। नाबालिग के साथ गैंग रेप मामले में पॉक्सो के तहत कार्रवाई कर जिन्हें सलाखों के पीछे भेजना चाहिए था, पुलिस उनके खिलाफ हाथ तक हिलाने को तैयार नहीं। छह महीने का वक्त कोई थोड़ा नहीं होता। ऐसे में जो कुछ सीडीओ और सीओ की मौजूदगी में पीड़िता ने किया, उसको लेकर चौंकने जैसी भी कोई बात नहीं है।
केस-2
- बीते सप्ताह पुलिस कार्यालय पहुंची एक युवती ने जहर खाकर जान देने की कोशिश की। इस युवती का मामला घरेलू था, लेकिन मिशन शक्ति और महिला हेल्प डेस्क सरीखी बातें सुनकर वो भी मदद की झोली फैलाए पहुंची थी, जितनी उम्मीद उसने की होगी, वो शायद बड़े साहब के दरबार में पूरी नहीं हुई, सो उसने भी पुलिस कार्यालय में जहर खाकर जान देने की कोशिश की।
जिस युवती ने पुलिस कार्यालय में जहर खाकर जान देने की कोशिश उसका मसला घरेलू था सवाल यह नहीं है, बल्कि सवाल यहां भी महिला हेल्प डेस्क से मदद की उम्मीद का है। उसने भी शायद महिला हेल्प डेस्क के बारे में सुना हो और मदद मिल जाएगी इस आस में पहुंची हो। ऐसा नहीं है कि केवल ये दो ही केस हों। यदि खंगाला जाए तो एक लंबी फेहरिस्त मिल जाएंगी। जिनमें पुलिस के रवैये के चलते जान देने की कोशिश की गई हैं।
शोपीस से इतर कुछ नहीं
जिले के थानों में महिला हेल्प डेस्क किस हाल में हैं, उक्त दोनों घटनाएं उनकी वानिगी भर हैं। जहां तक घटनाओं की बात है तो शायद ही कोई थाना क्षेत्र ऐसा हो जहां से पीड़त महिलाएं इंसाफ की दरकार में एसएसपी से फरियाद करने को पुलिस कार्यालय न पहुंची हों। इससे तो यह तो साफ हो गया है कि थाने में जो महिला डेस्क बनायी गयी हैं वो थानों में आने वाली पीड़िताओं की मदद नहीं कर पा रही हैं। जी हां! महिला हेल्प डेस्क थानों का शोपीस जरूर कही जा सकती हैं।
ये था सीएम योगी का अहम् मकसद
करीब तीन साल पहले नवरात्र के मौके पर थानों में महिला हेल्प डेस्क स्थापित करने के पीछे सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ का मकसद महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों की तत्काल रिपोर्ट दर्ज होने के साथ प्रभावी कार्रवाई अमल में लायी जा सके इसके लिए प्रत्येक थाने में स्थाई महिला हेल्प डेस्क स्थापित करने की योजना बनायी गई है।
जहां पीड़िता की न सिर्फ शिकायत सुनी जाएगी बल्कि प्रार्थना पत्र लिखवाने में भी मदद दी जाएगी। चौबीसों घंटे महिला हेल्प डेस्क का संचालन हो सके इसके लिए रोटेशन प्रणाली से महिला पुलिस कर्मियों की ड्यूटी लगायी जाएगी। मिशन शक्ति योजना के तहत यह सब किया गया।
कब पूरी होगी उम्मीद?
जिस उम्मीद को लेकर सीएम योगी ने तीन साल पहले प्रदेश के 1535 थानों में हालांकि अब संख्या बढ़ गयी है। महिला हेल्प डेस्क शुरू करायी थी वो अभी पूरी होती नजर नहीं आ रही। इसकी गवाही पीड़ित महिलाओं की फरियाद के लिए पुलिस कार्यालय में दर्ज होने वाली आमद दे रही है।
थाना स्तर पर महिला हेल्प डेस्क के मददगार न होने के चलते ही पुलिस कार्यालय पर सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा, दंपति के बीच विवाद और जमीन संबंधित आ रहे हैं। इनसे ज्यादा संख्या दुष्कर्म, छेड़खानी और गुमशुदगी जैसे मामलों की है।