Sunday, September 15, 2024
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गायब होतीं महिलाएं और लड़कियां

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Samvad 50

67 1आज देश में महिलाओं और लड़कियों के प्रति अपराधों में भयानक रूप से वृद्धि हो रही है, विशेष रूप से बलात्कार के मामले में। देश का कोई राज्य इससे अछूता नहीं है। इसके प्रति कड़े कानून भी बनाए गए, बावजूद इसके यह सिलसिला थमने को नहीं आ रहा है। विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने राजनीतिक हितों के अनुरूप ही महिलाओं पर अत्याचार के मुद्दे उठाते हैं। महिलाओं के साथ केवल दुष्कर्म के मामले ही नहीं है, बल्कि देश भर में महिलाओं और लड़कियों के गायब होने तथा उनके अपहरण के मामले भी बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं और उससे सम्बन्धित आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं।

देश में 2019 से 2021 के बीच लापता हुई लड़कियों और महिलाओं में सबसे अधिक लगभग दो लाख लड़कियां मध्य प्रदेश से और दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच देश भर में 18 वर्ष से अधिक आयु की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम आयु की 2,51,430 लड़कियां लापता हुईं। फेमिनिज्म इन इंडिया यूएनएफपीए की रिपोर्ट बताती है कि यदि भारत की जनसंख्या वर्तमान दर से, जो लगभग एक प्रतिशत प्रतिवर्ष है, इसी तरह बढ़ती रही तो अगले 75 वर्षों में यह वर्तमान से दोगुनी हो जाएगी, लेकिन भारत महिला जनसंख्या के मामले में आज भी पिछड़ा हुआ है और यहां महिलाओं और लड़कियों की संख्या अनुमान से करोड़ों कम है।

देश में लापता महिलाओं और लड़कियों की व्यापक वास्तविकता बेहद चिंताजनक और निराशाजनक है। हाल ही में विधानसभा में कांग्रेस विधायक और पूर्व गृह मंत्री बाला बच्चन द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद आधिकारिक आंकड़ों में पता चला है कि पिछले तीन सालों में मध्य प्रदेश में 31,000 से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां लापता हुर्इं हैं। कुल लापता लोगों में से 28,857 महिलाएं और 2,944 लड़कियां साल 2021 से 2024 के बीच लापता हुईं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट मुताबिक मध्य प्रदेश में हर दिन औसतन 28 महिलाएं और तीन बच्चे लापता होते हैं, इसके बावजूद आधिकारिक तौर पर सिर्फ 724 मामले ही दर्ज किए गए। पिछले 34 महीनों में उज्जैन में कुल 676 महिलाएं लापता हुर्इं, लेकिन एक भी मामला दर्ज नहीं हुआ। रिपोर्ट बताती है कि राज्य के सागर जिले में सबसे ज्यादा 245 लड़कियां लापता हुर्इं। वहीं इंदौर में 2,384 मामले दर्ज़ किए गए, जो किसी भी जिले में सबसे ज्यादा है, लेकिन इंदौर में केवल 15 मामले दर्ज़ किए गए, जबकि इस में इस क्षेत्र में एक महीने में लापता मामलों की संख्या 479 है। साल 2023 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2019 से 2021 के बीच लापता लड़कियों और महिलाओं की संख्या 1.31 मिलियन से भी ज्यादा थी। इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं का लापता होना देश में महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से पता चलता है कि इसी समयावधि के दौरान 18 वर्ष से अधिक आयु की दस लाख से अधिक महिलाएं और 18 वर्ष से कम आयु की 25 लाख लड़कियां लापता हुर्इं हैं। डेक्कन हेराल्ड की एक खबर मुताबिक 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर शुरू किए गए एनसीआरबी द्वारा किए गए पहले के विश्लेषण का उद्देश्य बाल और महिला तस्करी के लिए अतिसंवेदनशील क्षेत्रों की पहचान करना था। इस विश्लेषण के अनुसार इन लापता मामलों के कारण जटिल और बहुआयामी हैं, जिनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और गलतफहमी से लेकर घरेलू हिंसा और आपराधिक उत्पीड़न तक शामिल हैं। साल 2018 आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार देश में 63 मिलियन लापता महिलाएं और 21 मिलियन अवांछित लड़कियां हैं। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि लापता महिलाओं के लिए सेक्स-सिलेक्टिव अबॉर्शन और पोषण और स्वास्थ्य देखभाल में प्रसवोत्तर उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। ये लापता महिलाएं लड़कों के लिए एक मजबूत सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्राथमिकता को दशार्ती हैं।

देश में 2019 से 2021 के बीच लापता हुई लड़कियों और महिलाओं में सबसे अधिक लगभग दो लाख लड़कियां मध्य प्रदेश से और दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2019 से 2021 के बीच देश भर में 18 वर्ष से अधिक आयु की 10,61,648 महिलाएं और उससे कम आयु की 2,51,430 लड़कियां लापता हुर्इं। इस खबर मुताबिक मध्य प्रदेश में साल 2019 से 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हुईं। इसी समय अवधि में पश्चिम बंगाल से कुल 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां लापता हुर्इं। महाराष्ट्र में भी इस समय में 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हुर्इं। इसी तरह इसी समय के बीच ओडिशा में 70,222 महिलाएं और 16,649 लड़कियां लापता हुईं, जबकि छत्तीसगढ़ से 49,116 महिलाएं और 10,817 लड़कियां लापता हुईं। वहीं दिल्ली में इस समय सीमा के बीच 61,0 54 महिलाएं और 22,919 लड़कियां लापता हुईं, जबकि जम्मू कश्मीर से 8,617 महिलाएं और 1,148 लड़कियां लापता हुर्इं। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) द्वारा जारी 2020 की वैश्विक आबादी की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार पिछले 50 सालों में लापता हुर्इं महिलाओं की संख्या दुगुनी हो गई है। यह संख्या साल 1970 में 6.10 करोड़ थी जो 2020 में बढ़कर 14.26 करोड़ हो गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में साल 2020 तक 4.58 करोड़ और चीन में 7.23 करोड़ और 23 लाख महिलाएं लापता हुर्इं हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो ने 2016, 2017 और 2018 की अवधि में किए गए भारत में लापता महिलाएं और बच्चे अध्ययन में पाया कि देश में 5,86,024 महिलाएं लापता हैं। इसका मतलब है कि भारत में हर दिन 550 से ज्यादा महिलाएं लापता हो रही हैं।

दुनिया के हर कोने में होने वाला यह अपराध सभी उम्र और पृष्ठभूमि के पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को प्रभावित कर सकता है। मानव तस्करी एक गंभीर सामाजिक समस्या है, खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए, जो इस समस्या का सामना पुरुषों से अधिक करती हैं। यह उनकी गरिमा और मानवाधिकारों का हनन है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अनुसार महिलाओं और बच्चों की मानव तस्करी मानवाधिकारों के हनन के सबसे जघन्य प्रकारों में से एक है।

चूंकि यह एक जटिल समस्या है, इसलिए इस पर शिक्षाविदों, कानूनी पेशे और नागरिक समाज ने बहुत कम ध्यान दिया है। इसे अक्सर सेक्स ट्रैफिकिंग से जोड़ा जाता है, जबकि यह मानव तस्करी की कहानियों का सिर्फ एक पहलू है। महिलाओं और किशोरियों का गायब होना एक गंभीर समस्या है, जो सामाजिक मानदंडों से जुड़ी है, इसलिए इसे सिर्फ़ कानूनी उपायों, सरकारी कार्यक्रमों या पहलों के जरिए संबोधित नहीं किया जा सकता। हमें रोजगार, आजीविका की संभावनाओं की कमी, लैंगिक भेदभाव जैसे गंभीर चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए इसकी रोकथाम के लिए सोचना होगा।

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