Sunday, June 1, 2025
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देश और दुनिया की तरक्की के लिए जरूरी है आधी आबादी का सशक्तिकरण

Ravivani 34


08 8यह दुर्भाग्य ही है कि देश और दुनिया को आज बालिका दिवस, महिला दिवस आदि मनाने पड़ रहे हैं। कितना अच्छा हो कि हम हमारी संस्कृति, परंपराओं और इतिहास से सीखें और नारी को परंपरागत गौरव पुन: दिलाने के लिए आगे आएं। लेकिन इसके लिए हमें ईमानदारी से सत्य को अंगीकार करने की जरूरत है, जहां नर-नारी का भेद न मानकर नारी की उत्कृष्टता, मूल्यों के साथ जीवनयापन और सृष्टि के सृजन में उसकी भूमिका को समझने की आवश्यकता है। इसके साथ ही नारी सशक्तिकरण के लिए संचालित योजनाओं और कार्यक्रमों से हर स्त्री को जोड़कर उनके भविष्य को आत्मनिर्भरता के साथ सुरक्षित, संरक्षित एवं निरन्तर विकासशील बनाने की दिशा में कार्य करना होगा। दुनिया की आधी आबादी के रूप में बालिकाओं और महिलाओं की समाज-जीवन और परिवेश में जो अहम भूमिका रही है उसे हर कोई अच्छी तरह जानता है। बावजूद इसके पौरुष प्रधान समाज की वजह से आधी आबादी को आज भी वह दर्जा प्राप्त नहीं हो सका है, जिसके लिए प्रदेश-देश और दुनिया की सरकारें बहुआयामी प्रयासों में जुटी हुई हैं। इस दिशा में हर स्तर पर ढेरों योजनाओं, कार्यक्रमों, परियोजनाओं और अभियानों का संचालन किया जा रहा है लेकिन उनके अपेक्षित परिणाम प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं।

दिल से हो स्वीकार्यता

नारी के अस्तित्व और घर-परिवार से लेकर समाज एवं दुनिया में नारी शक्ति की परमाण्वीय क्षमताओं और असीम सामर्थ्य को दिल से स्वीकार करते रहने के बावजूद नारी को सर्वसमर्थ नारी के रूप में स्वीकार्यता नहीं हो पाने के पीछे पुरुषों का दंभ और अपने आपके सर्वश्रेष्ठ माने जाने का भ्रम ही वह कारण है जिसकी वजह से आज महिलाएं उतना सम्मान प्राप्त नहीं कर पायी हैं जितना उनका हक है।

इसके साथ ही पग-पग पर उन्हें उपेक्षा, प्रताड़ना एवं दूसरे दर्जे की माने जाने का दंश पसरा हुआ है। और यही कारण है कि आज देश-दुनिया तरक्की और हैप्पीनेस इण्डेक्स के मामले में पीछे होने का अनुभव कर रही है। बात संवेदनाओं से लेकर नारी की क्षमताओं को स्वीकार करते हुए उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में आगे लाए जाने और स्वाभिमान तथा सम्मान के साथ निरापद जिन्दगी प्रदान करने तक ही सीमित नहीं है बल्कि हर प्रकार से उसे अन्तर्मन से स्वीकारने की है।

भारतीय संस्कृति में नारी को उच्च स्थान

नारी के साथ यह स्थितियां भारतीय संस्कृति का हिस्सा कभी नहीं रही बल्कि बीच के कुछ कालखंड में पौरुषी मानसिकता इतनी हावी हो गई कि जिसका खामियाजा आज तक हम भुगत रहे हैं। वैदिक एवं पौराणिक संस्कृति वाले युगों में नारी की अहमियत को सार्वजनीन रूप से समाज और परिवेश की आदर और सम्मान सहित पूर्ण स्वीकार्यता थी।

आज हम बराबरी की बात करते हैं, समानता का उद्घोष करते हैं लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हमारे गौरवशाली अतीत और गर्व से भरे इतिहास में नारी को पुरुषों से भी कहीं अधिक महत्व प्राप्त था। हर देवता के साथ देवी का नाम पहले लिया जाता रहा है। युगल स्वरूप की उपासना हमारे धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं में आदिकाल से रही है। पुरातन काल में पुरुष के नाम से पहले नारी का नाम होता था, जो इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि हमारे यहां नारी को कितना अहम् और सर्वोपरि सम्मान प्राप्त था। लक्ष्मीनारायण, सीता राम, राधा कृष्ण जैसे नामों से इसे अच्छी तरह समझा जा सकता है।

इतिहास भरा पड़ा है समर्थ नारी पात्रों से

भारतीय इतिहास में कई महारानियां हुई हैं जिन्होंने राजकाज का संचालन किया और दुनिया को कई तरह के परोपकारी एवं सेवाव्रती आयाम दिए। इससे भी अधिक बढ़कर शिव से भी अधिक महिमा शक्ति की गायी गई है। शक्ति के बिना शिव को शव तक माना गया है। और हम कहते हैं कि नारी को समानता-बराबरी के हक मिलने चाहिएं। नारी स्वाभिमान, सम्मान और स्वीकार्यता के लिए हमें इतिहास को पढ़ना, समझना और उन विलक्षणताओं का अनुगमन करने की ओर बढ़ना होगा। ऐसा हो जाने पर अपने आप नारी को सर्वोपरि स्थान दिलाया जा सकता है।

परम्परागत गौरव दिलाने इतिहास से सीखना होगा

यह दुर्भाग्य ही है कि देश और दुनिया को आज बालिका दिवस, महिला दिवस आदि मनाने पड़ रहे हैं। कितना अच्छा हो कि हम हमारी संस्कृति, परंपराओं और इतिहास से सीखें और नारी को परंपरागत गौरव पुन: दिलाने के लिए आगे आएं। लेकिन इसके लिए हमें ईमानदारी से सत्य को अंगीकार करने की जरूरत है, जहां नर-नारी का भेद न मानकर नारी की उत्कृष्टता, मूल्यों के साथ जीवनयापन और सृष्टि के सृजन में उसकी भूमिका को समझने की आवश्यकता है।

इसके साथ ही नारी सशक्तिकरण के लिए संचालित योजनाओं और कार्यक्रमों से हर स्त्री को जोड़कर उनके भविष्य को आत्मनिर्भरता के साथ सुरक्षित, संरक्षित एवं निरन्तर विकासशील बनाने की दिशा में कार्य करना होगा।

हर नारी को चाहिए नारी उत्थान की सोच

यह दायित्व समाज का है। इसके साथ ही नारी को भी चाहिए कि वह नारी का सम्मान करे। प्रत्येक नारी यदि दूसरी हरेक नारी का सम्मान करने लग जाए तो दुनिया स्वर्ग ही बन जाए। लेकिन इन सभी के लिए सार्थक और ईमानदार प्रयासों में जुटने की आवश्यकता है।

हर स्त्री को यह संकल्प लेने की आवश्यकता है कि दूसरी स्त्री के सम्मान, गरिमा और गौरव के साथ सुखद एवं सुकूनदायी अस्तित्व बनाए रखने के लिए अपनी ओर से हरसंभव प्रयास करने में कहीं कोई कमी नहीं आने दे। पारस्परिक समझ और आत्मीयता से इस दिशा में आदर्श माहौल स्थापित हो सकता है। नारी को अपने भीतर समाहित महान सामर्थ्य को जगाना होगा, तभी नारी सशक्तिकरण के माध्यम से सुनहरे कल की बुनियाद को और अधिक मजबूत बनाया जा सकता है। इसके लिए हमारे सभी प्रकार के पूर्वाग्रहों, दुराग्रहों को तिलांजलि देने की जरूरत है।
सशक्तिकरण के लिए संकल्पित प्रयास जरूरी

आईये हम संकल्प लें कि 21वीं सदी की नारी पुरुषों के मुकाबले बराबरी का दर्जा पाने तक ही सीमित न रहे बल्कि उससे भी आगे बढ़कर पुराने वैभव और गौरव को प्राप्त करे। हम भारतीय यदि ऐसा कर पाएं तो दुनिया भर की नारी शक्ति का सशक्तिकरण संभव कर पाने में आशातीत सफलता का वरण कर सकते हैं।


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