Saturday, June 29, 2024
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अर्थव्यवस्था डूबोती बाढ़

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Samvad


vishnu hari sarawatiमानसून की पहली वर्षा में ही त्राहिमाम मच गया। लाखों नहीं, करोड़ों नहीं, अरबों नहीं, बल्कि खरबों रूपयों का नुकसान हो गया। इतना ही नहीं बल्कि इस बाढ़ में हमारी अर्थव्यवस्था भी डूब गई है। कई प्रदेशों में स्थिति कितनी खतरनाक और जानलेवा हो गई, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश में बाढ़ ने विकराल रूप धारण कर लिया है। देश की राजधानी दिल्ली में ही वर्षा से जनता त्राहिमाम कर रही है। यमुना नदी खतरे के निशान को चुनौती दे रही है। दिल्ली में बाढ़ से हजारों लोग सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए विवश हैं। उत्तराखंड में तो कई सामरिक रूप से महत्वपूर्ण सड़कें और पुल बह गए हैं, जिसके कारण सामरिक रूप से जरूरी संपर्क टूट गए हैं। हिमाचल प्रदेश की स्थिति तो बहुत ही खतरनाक है, जहां पर 15सौ से अधिक सड़कें क्ष्तिग्रस्त हो गर्इं हैं और चौदह सौ बस रूटें पूरी तरह से बंद कर दी गई हैं, भूस्खलन से कई गांवों का अस्तित्व ही मिट गया है।

देश में बहुत सारी ऐसी जगहें भी हैं, जहां पर मोबाइल के कैमरे की पहुंच नहीं है, जो बाढ़ की भयानक तस्वीर से परिचित करा सके। भारी वर्षा और बाढ़Þ की स्थिति से बिजली भी प्रभावित होती है। बिजली के खंभे भी धाराशायी हो जाते हैं, बिजली लाइनें भी तहस-नहस हो जाती हैं। इस कारण जीवन रक्षक और जीवन उपयोगी उपकरणों की निरर्थकता सामने आती है।

सिर्फ जंगलों और पहाड़ों के बीच ही नहीं, बल्कि शहरों और कस्बों की गलियों के बीच भी बाढ़ का पानी तहलका मचा रहा है। बाढ़ के पानी में सरकारों की बचाव प्रक्रिया भी डूब गई और बाढ़ के खिलाफ सरकारी की योजनाएं भी डूब गर्इं। बाढ़ पीड़ित स्वयं और भाग्य भरोसे ही बाढ़ की विनाश लीला से लड़ने के लिए विवश हैं।

अब नुकसान का दायरा बढ़ रहा है। आवासीय कालोनियां भी बाढ़ की चपेट में आ रही हैं। वैसी आवासीय कालोनियां जो पहाड़ों की तलहटियों के नीचे बसी हुई हैं और जो कालोनियां नदियों के किनारे बसी हुई हैं, उन पर बाढ़ की विनाश लीला विकराल है। यह सही बात है कि प्रकृति जैसे पहाड़ और नदियां मनुष्य की जीवन रेखा हैं।

पहाड़ों के नजदीक और नदियों के किनारे मनुष्य सभ्यता विकसित हुई हैं। इसके पीछे पानी की उपलब्धता और जीवन की उपयोगी चीजों की कसौटी रही है। नदियां जहां पीने का पानी उपलब्ध कराती हैं, वहीं पहाड़ कभी जीवन को सक्रिय रखने के लिए एक बड़ा स्रोत हुआ करता था।

देश की सभी बड़े शहर जैसे दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद, प्रयागराज, काशी आदि किसी न किसी नदी के किनारे बसे हुए हैं। देश के तीन महानगरों-मुबई, कोलकाता और चैन्नई समुद्र के किनारे बसे हुए हैं। मुंबई, कोलकाता और चैन्नई भी दो प्रकार की बाढ़ की समस्या से जुझते हैं।

ये बड़ शहर समुदी्र तूफान का शिकार होते ही हैं, पर प्रत्यक्ष वर्षा से भी कम शिकार नहीं होते हैं। सवाल यह है कि अब शहरी इलाके बाढ़ के शिकार क्यों हो रहे हैं? वैसे शहर और क्षेत्र बाढ़ के शिकार क्यों हो रहे हैं, जहां पर कोई बड़ी नदी नहीं है और न ही इसके पहले वहां बाढ़ का कोई खतरा होता था?

इसके पीछे के कारणों की पड़ताल करेंगे तो पाएंगे कि इसके लिए सरकार की योजनाओं और नीतियां भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। शहरों में कालोनियां बसाते समय पानी की निकासी का ख्याल नहीं रखा गया, वर्षा का पानी कैसे निकलेगा इस पर कोई चाकचौबंद नीति नहीं बनायी गई। जब वर्षा का पानी बाहर निकलेगा ही नहीं, तब कालोनियों में बाढ़ का पानी जमा होना निश्चित है।

कालोनियों और बडे शहरों के नाले-नालियों पर कब्जा कर लिया गया है। ऐसे में बाढ़ का खतरा तो बना ही रहेगा। कुछ उदाहरण तो इतने खतरनाक हैं जो मानव निर्मित हैं और सरकार संरक्षित हैं। दिल्ली का उदाहरण यहां लिया जा सकता है। दिल्ली के बीचोबीच यमुना नदी बहती है। कभी यमुना की बाढ़ खतरनाक होती थी।

यमुना का बहाव का दायरा भी बहुत होता था। धीरे-धीरे बांधों के कारण यमुना में पानी कम आने लगा। लेकिन यमुना के बहाव इलाके पर अतिक्रमण हो गया। अतिक्रमण सिर्फ खेती या फिर व्यापार के दृष्टिकोण से नहीं हुआ है, बल्कि आवासीय क्षेत्र भी बना डाले गए। यमुना नदी की धारा में ही आवासीय कालोनियां खड़ी कर दी गर्इं।

स्थिति यहां तक बनी रहती है कि यमुना नदी में थोड़ा सा भी पानी बढ़ने के बाद लोग बाढ़ से पीड़ित हो जाते हैं और अपना घर छोड़ कर उन्हें भागना पड़ता है। गंगा नदी, गोमती नदी, कोसी नदी आदि की स्थिति भी ऐसी ही है। देश की कमोबेश अन्य नदियों की हालत भी यही है।

बाढ़ को सरकारी आमंत्रण भी होता है? अब आप कहेंगे कि सरकार बाढ़ को आमंत्रण क्यों देगी? इसके पीछे की सोच और कारण काफी खतरनाक है। सरकार अपनी रिश्वतखोरी, बईमानी और भ्रष्टचार को छिपाने के लिए बाढ़ को आमंत्रण देती है। बाढ़ आने का इंतजार भी करती है।

बाढ़ की विनाशलीला से सरकार की मुस्कान बढ़ जाती है। सरकार की बहुत सारी योजनाएं कागजों पर चलती हैं। ऐसी सभी योजनाओं के सत्यापन पर भ्रष्टचार और रिश्वतखोरी की सच्चाई सामने आ सकती है। बाढ़ के पानी में ऐसी योजनाओं के बह जाने या फिर क्षतिग्रस्त होने से भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों की रिश्वत खोरी का अस्तित्व ही मिट जाता है।

बाढ़ से क्षतिग्रस्त होने वाले पुलों, सड़कों और घरों आदि के फिर से निर्माण मे अतिरिक्त धन की जरूरत होती है। अतिरिक्त धन की जुगाड़ से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है, विकास की अन्य योजनाएं भी प्रभावित होती हैं, पर्यावरण भी नष्ट होता है। इसलिए बाढ़ रोकने की अब चाकचौबंद नीतियां बननी चाहिए।


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