Wednesday, July 3, 2024
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अपराधियों का महिमंडन रुग्नता की निशानी

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03गैंगस्टर एवं नेता ब्रदर्स अतीक व अशरफ अहमद की इलाहाबाद के एक अस्पताल परिसर में गत 15 अप्रैल की रात पुलिस हिरासत में मीडिया से बातचीत के दौरान तीन हमलावरों ने नजदीक से गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस हत्याकांड के बाद उनके महिमामण्डन की कई खबरें सामने आई हैं। अतीक-अशरफ की हत्या जिन परिस्थितियों में की गई, उसकी आलोचना सर्वत्र की जा रही है। दोनों भाइयों की हत्या तथा इससे दो दिन पहले ही अतीक के एक बेटे असद की पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ के बाद जिस तरह कुछ खबरें इन गैंगस्टर्स के महिमामंडन को लेकर सुनाई दीं वह चौंकाने वाली थीं। खासतौर पर धर्म के आधार पर अपराधियों का महिमामंडन किया जाना तो किसी भी कमत पर मुनासिब नहीं कहा जा सकता।

अतीक मुसलमानों का कितना बड़ा हितैषी था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उस पर पर दर्ज हुए 20 सबसे संगीन अपराधों में दायर 13 मामले पीड़ित मुसलमानों द्वारा ही दर्ज कराए गये थे। वैसे भी प्राय: गैंगस्टर्स का धर्म जाति से कोई वास्ता नहीं होता। इनके गैंग में सभी धर्मों और जातियों के लोग शामिल होते हैं और इनसे पीड़ित लोग भी किसी भी धर्म जाति के हो सकते हैं।

देश में और कई जगह से अतीक के समर्थन व उसे महिमामंडित करने के समाचार प्राप्त हुए। विदेशी मीडिया ने तो अतीक को रोबिन हुड के रूप में पेश करने की कोशिश की। बेशक उनकी हत्या के तरीकों, पुलिस की लापरवाही, सुरक्षा में चूक पर ऊंगली उठना या इनकी आलोचना अपनी जगह पर सही है, परंतु उन्हें महिमामंडित करना कतई उचित नहीं इसलिए कि किसी अपराधी को महिमामंडित करने का दूसरा अर्थ है, उसके द्वारा किए गए अपराधों को नजर अंदाज करना।

अतीक को महिमामंडित करने के विरोध में कई पेशेवर अति उत्साही लेखकों ने तो कई आलेख लिख डाले। बिहार के भाजपा विधायक विधायक हरी भूषण ठाकुर को तो यहां तक कहने का अवसर मिल गया कि ‘अतीक के समर्थन में नारेबाजी करने वालों का एनकाउंटर कर देना चाहिए।’

सांप्रदायिकता को हवा देकर तमाम लोग सरकार से ‘रेवड़ी’ हासिल करने की फिराक में न जाने क्या-क्या लिखते रहते हैं। परंतु इनसे यह सवाल तो जरूर पूछा जाना चाहिए कि इन्होंने उस समय क्या प्रतिक्रिया दी थी जब शंभु रैगर नामक एक युवक द्वारा 6 दिसंबर 2017 को राजस्थान में एक बंगाली मजदूर अफराजुल शेख की कुल्हाड़ी से हत्या कर दी गई थी और उसे जला दिया गया था।

इतना ही नहीं, बल्कि इस जघन्य हत्याकांड का वीडियो भी स्वयं हत्यारे ही द्वारा फेसबुक पर लाइव टेलीकास्ट किया गया था। वही हत्यारा जेल गया तो जेल से भी वीडियो बनाकर डालता रहा। और जब वह जमानत पर बाहर आया तो उसके समर्थन में हजारों लोगों ने जुलूस निकाला था।

उसके समर्थन में नारे लगाए गए। यहां तक कि उत्पाती सांप्रदायिक भीड़ द्वारा अदालत की छत पर चढ़ कर भगवा झंडा लहरा दिया गया था? क्या किसी बेगुनाह व्यक्ति को कुल्हाड़ियों से काटकर उसे जलाये जाने जैसा घृणित अपराध करने वाले का महिमामण्डन करना सही है?

जघन्य अपराधियों, दुष्कर्मियों, हत्यारों को महिमामंडित करने उन्हें हीरो बनाने जैसा घृणित कार्य तो गोया अब परंपरा का रूप लेता जा रहा है। किसी घटना को सांप्रदायिक या जातिवादी मोड़ दे दिए जाने पर तो गोया अपराधियों का महिमामंडन अनिवार्य सा हो गया है।

देश में ऐसी दर्जनों मिसालें मौजूद हैं। हाथरस दुष्कर्म कांड में दुष्कर्मियों के पक्ष में पंचायत बुलाई गई। 2018 में जम्मू के कठुवा में एक गरीब मजदूर की 8 वर्षीय बेटी आसिफा का अपहरण कर उसके साथ गैंग रेप किया गया व उसकी निर्मम हत्या कर उसकी लाश जंगल में फेंकने जैसी वारदात अंजाम दी गई।

उसके बाद दुष्कर्मियों व हत्यारों के पक्ष में राज्य के भाजपा मंत्रियों व विधायकों का खड़ा होना व उन्हें बचाने के लिए जुलूस-प्रदर्शन-धरना करना क्या देश कभी भूल सकेगा? बिल्कीस के दुष्कर्मियों, दंगाइयों की सुगम रिहाई और बाद में राजनैतिक मंच पर उस अपराधी का महिमामंडन क्या अपराधियों के हौसले नहीं बढ़ाता? 2019 में शाहजहांपुर के स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय, जिसे स्वामी चिन्मयानंद का ट्रस्ट चलाता है, वहां पढ़ने वाली एलएलएम की एक छात्रा ने स्वामी चिन्मयानंद पर यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए थे।

उन्हें एमपी एमएलए अदालत बा इज्जत बरी कर देती है। जामिया में धरने पर बैठे लोगों की तरफ जो अनजान युवक तमंचे से गोलियां चलाता है, वह आज महिमामंडित होकर सांप्रदायिकतावादियों का आइकॉन बन चुका है। भाजपा नेता जयंत सिन्हा झारखंड में मॉब लिंचिंग के हत्यारे दोषियों को जेल से छूटने के बाद माला पहनाते व उनके साथ फोटो सेशन करते देखे जाते हैं।

2015 में नोएडा के निकट दादरी में अखलाक नमक 50 वर्षीय व्यक्ति की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। अखलाक का बेटा भारतीय वायुसेना में अधिकारी है। उस समय भी तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ सहित तमाम बड़े भाजपा नेता मंत्री सांसद व विधायक हत्यारों की हौसला अफजाई करते उन्हें बचाते व उनके पक्ष में पंचायतें करते दिखाई दिए थे।

हत्यारों, दुष्कर्मियों या किसी भी अपराध में संलिप्त लोगों को धर्म या जाति के आधार पर समर्थन देना एक खतरनाक सिलसिले को बढ़ावा देना है। कहना गलत नहीं होगा कि अपराधियों का महिमामंडन न केवल न्याय व्यवस्था को प्रभावित करने की कोशिश है, बल्कि यह रुग्ण समाज की भी निशानी है।


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