यह बात है तब की, जब पांडवों और कौरव गुरु द्रोण से शस्त्र शिक्षा ले रहे थे। गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर और दुर्योधन की वैचारिक प्रगति की लेने हेतु आचार्य ने राजकुमार दुर्योधन को अपने पास बुलाया और कहा, वत्स! तुम समाज में से एक अच्छे आदमी की परख करके उसे मेरे सामने उपस्थित करो। दुर्योधन ने कहा, जैसी आपकी इच्छा और वह अच्छे आदमी की खोज में निकल पड़ा।
कुछ दिनों बाद दुर्योधन वापस आचार्य के पास आया और कहने लगा, मैंने कई नगरों, गांवों का भ्रमण किया परंतु कहीं कोई अच्छा आदमी नहीं मिला। मेरे सभी प्रयास विफल हुए। फिर उन्होंने राजकुमार युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा, बेटा! इस पृथ्वी पर से कोई बुरा आदमी ढूंढ कर ला दो। युधिष्ठिर ने कहा, ठीक है गुरू जी! मैं कोशिश करता हूं। इतना कह कर युधिष्ठर बुरा आदमी खोजने निकल पड़े।
काफी दिनों के बाद युधिष्ठिर आचार्य के पास आए। आचार्य ने पूछा, वत्स, किसी बुरे आदमी को साथ लाए? युधिष्ठिर ने कहा, गुरू जी! मैंने सर्वत्र बुरे आदमी की खोज की परंतु मुझे कोई बुरा आदमी मिला ही नहीं। इस कारण मैं खाली हाथ लौट आया हूं। सभी शिष्यों ने आचार्य से पूछा, गुरुवर! ऐसा क्यों हुआ कि दुर्योधन को कोई अच्छा आदमी नहीं मिला और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी नहीं। आचार्य बोले, बेटा! जो व्यक्ति जैसा होता है उसे सारे लोग अपने जैसे दिखाई पड़ते हैं। इसलिए दुर्योधन को कोई अच्छा व्यक्ति नहीं मिला और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी न मिल सका।
प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा