- शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में शिव भक्त जल अभिषेक के लिए उमड़ते हैं
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: आगामी दो अगस्त को शिवरात्रि के पर्व को लेकर बाबा औघड़नाथ मंदिर और बिल्वेश्वर महादेव मंदिर में सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई हैं। इस दौरान मंदिर कमेटी की ओर से भव्य सजावट भी की गई है। बाबा औघड़नाथ मंदिर में शिवरात्रि पर लाखों की संख्या में शिव भक्त जल अभिषेक के लिए उमड़ते हैं। मंदिर कमेटी के अध्यक्ष सतीश सिंहल ने बताया कि जल अभिषेक को लेकर मंदिर कमेटी की ओर से सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है उन्होंने अनुमान जाते की शिवरात्रि पर जल अभिषेक के लिए करीब 3 लाख शिवभक्त और शिव भक्त मंदिर में पहुंच सकते हैं।
मंदिर में कंट्रोल रूम बनाकर सुरक्षा के लिए 23 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं जिनके माध्यम से पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के स्तर से मंदिर परिसर में चप्पे-चप्पे पर नजर रखी जाएगी। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कमेटी की ओर से लोटों की पर्याप्त संख्या में व्यवस्था कराई गई है। कमेटी की ओर से बैरिकेडिंग भी कराई गई है। इसके अलावा बाबा अमरनाथ मंदिर को फूलों के साथ-साथ रंग बिरंगी लाइटों से भी सजाया गया है।
बाबा औघड़नाथ मंदिर की है बड़ी मान्यता
औघड़नाथ मंदिर में विराजमान शिवलिंग को स्वयं भू माना जाता है। सावन की शिवरात्रि में लाखों की संख्या में भक्त जलाभिषेक करते हैं। इस मंदिर का संबंध देश की आजादी के 1857 में हुए प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा हुआ है। उस समय यहां छोटा सा मंदिर हुआ करता था। यहां कुआं भी था, जिससे अंग्रेज सेना में शामिल भारतीय सैनिक पानी पीने आते थे। यहां पर अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ बगावत के लिए सैनिकों को प्रेरित करने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियां भी संचालित होती थी। मंदिर का भव्य स्वरूप की आधारशिला दो अक्टूबर 1968 को जगद गुरु शंकराचार्य कृष्णबोधाश्रम महाराज ने रखी थी।
बिल्वेश्वर मंदिर में पूजा-अर्चना करने आती थी मंदोदरी
बिल्वेश्वर महादेव मंदिर के पुजारी आचार्य पंडित हरीश चंद्र जोशी का कहना है कि मयराष्ट्र नगर को मयदानव नामक राजा ने बसाया था। उनकी बेटी का नाम मंदोदरी था। किवदंती है कि जहां पर बिल्वेश्वर महादेव मंदिर के आसपास बिल्व अर्थात बेल के पेड़ों का जंगल था। जिस जगह आज भैंसाली मैदान है, वहां पर सरोवर हुआ करता था। बताया जाता है कि सरोवर में स्नान कर मंदोदरी पूजन करने बिल्वेश्वर महादेव मंदिर आया करती थी। उसने भगवान शिव से वरदान मांगा था कि उनका पति संसार का सबसे विद्वान और शक्तिशाली हो।
कालांतर में मंदोदरी का विवाह लंकापति रावण से हुआ था। यह भी कहा जाता है कि मराठा काल में भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। इतिहासकार बताते हैं कि मंदिर के शिखर और प्रवेश द्वार मराठा शैली में बने हैं। मंदिर की प्राचीनता को देखते हुए पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित स्मारक घोषित किया है। इनके अलावा पंचमुखी महादेव मंदिर, ठठेरवाड़ा, हरिद्वारेश्वर महादेव मंदिर, मोरीपाड़ा समेत मेरठ शहर में कई प्राचीन शिवालय मौजूद हैं। जहां हजारों की संख्या में श्रद्धालु शिवरात्रि पर विशेष पूजा-अर्चना के लिए आते हैं।