आपको यह जान कर हैरानी होगी कि आज की बड़ी-बड़ी मशीनों की खोज खेल-खेल में हुई और आज वह हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई हैं। इनके बिना हम जिंदगी अधूरी महसूस करते हैं। अगर ये मशीनें एक दिन के लिए बंद हो जाएं तो दुनिाय के बहुत सारे का रुक जाएं। यकीन नहीं आता तो उदाहरण के लिए एटीएम मशीन को ही ले लीजिए। आप तो जानते ही हैं कि जब भी हमें रुपयों की जरूरत होती है, तो सीधे एटीएम की तलाश शुरू हो जाती है। लेकिन क्या आपको पता है कि एटीएम मशीन बनाने वाले जॉन शफर्ड बरोन को एटीएम मशीन बनाने का ख्याल कैसे आया?
एक बार जब बरोन बैंक में पैसा निकालने गए, तो उन्हें देर हो गई और बैंक बंद हो गया। इस कारण उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। तभी उन्हें चॉकलेट वेंडिंग मशीन की ही तरह एटीएम मशीन बनाने का ख्याल आया। 27 जून 1967 को पहली एटीएम मशीन लंदन में लगाई गई। एटीएम से जुड़ी बरोन की एक और मजेदार बात है कि पहले इसका पासवर्ड 6 अंकों का होता था लेकिन एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी का टेस्ट लिया तो उन्हें चार ही अंक याद थे। तब से एटीएम का पासवर्ड 4 अंकों का कर दिया गया।
ब्लॉग की कहानी
ब्लॉग के बारे में तो हम अच्छी तरह से जानते ही हैं। बुलेटिन बोर्ड, ईमेल लिस्ट और कंपू सर्व जैसी कई तकनीकों से प्रेरणा ले कर ब्लॉग की शुरूआत हुई। क्या आप जानते हैं कि इसका नाम ब्लॉग कैसे पड़ा? असल में 17 दिसंबर 1997 को जन्मे ब्लॉग का नाम जॉन बर्गर ने वेबलॉग दिया था। इसे बाद में पीटर मरहोल्ज ने मजाक के तौर पर तोड़ कर वी ब्लॉग कर दिया। इसके बाद बुलेटिन बोर्ड की इस विधा के लिए ब्लॉग नाम ही चलन में आ गया।
गूगल कैसे अस्तित्व में आया
गूगल बनाने वाले लैरी पेज और सर्जरी ब्रीन अमेरिका की स्टैंनफोर्ड यूनिवर्सिटी में पीएचडी कर रहे थे। वह अपनी यूनिवर्सिटी के डिजिटल लाइब्रेरी प्रोजेक्ट पर काम कर रहे थे। इसका मकसद एक वैश्विक डिजिटल लाइब्रेरी बनाना था। गूगल डॉट स्टैंनफोर्ड डॉट ईडीयू नाम से शुरू हुआ यह सर्च इंजन 15 सितंबर 1997 को गूगल डॉट कॉम नाम से रजिस्टर हुआ।
4 सितंबर 1998 को आखिरकार इसके निमार्ताओं ने मैनलो पार्क, कैलिफोर्निया में अपने एक दोस्त के गैराज में गूगल इंक की स्थापना की। एक और मजेदार बात यह है कि गूगोल को गलत लिखे जाने से गूगल बना। गूगोल का अर्थ 1 के बाद 100 शून्य लगाए जाने वाले अंक से है।
ई-बुक्स की शुरुआत
कंप्यूटर पर इंटरनेट के जरिए कई प्रकार की जानकारियां हम जुटाते हैं। आपको पता है ई-बुक्स की शुरुआत कब हुई? इसको शुरू करने का विचार सबसे पहले 1971 में माइकल एस. हार्ट को आया। ठीक उसी समय उसी तरह का विचार पॉल इकर को भी आया था। माइकल आर्ट ने इस पर काम शुरू किया और जल्द ही लगभग दो हजार ई-बुक्स उसकी लाइब्रेरी में जुड़ गईं। हार्ट के इस विचार के पीछे उनकी सोच थी कि अपनी जरूरत की किताबों को कैसे साथ रखा जा सकता है। किताबों के प्रति उनकी जबरदस्त चाह ने ही हमें ई-बुक्स जैसा नायाब तोहफा दिया है। ई-बुक्स को हम आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं, ऑनलाइन पढ़ सकते हैं और अपने कंप्यूटर में सहेज कर रख सकते हैं।
कलाशिनिकोव राइफल ऐसे बनी
एक शख्स कलाशिनिकोव बनना तो चाहते थे कवि, लेकिन बांह में गोली लगने के बाद उन्होंने एक ऐसी राइफल का आविष्कार किया, जिसका सही विकल्प आज तक नहीं खोजा जा सका है। कालाशिनिकोव ने एके-47 का आविष्कार किया। वे बचपन में कवि बनना चाहते थे। 1938 में सोवियत संघ की रेड आर्मी में टैंक मेकैनिक के रूप में शामिल हुए।
बर्चांस्क की लड़ाई में उन्हें बांह में गोली लग गई। अस्पताल में उन्होंने सोवियत सैनिकों को खराब राइफलों के बारे बात करते सुना। तभी उन्होंने एक ऐसी राइफल बनाने का निश्चय किया जो बेजोड़ हो। 1943 में उन्होंने इसका डिजाइन तैयार किया। सोवियत सरकार ने भी 1949 में इसे अपना लिया। आज तो यह राइफल हर देश में प्रयोग में लाई जा रही है।
ट्विटर की महिमा
ट्विटर की महिमा भी आप जानते ही हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर डोर्सी अपने दोस्तों से हर समय कनेक्टेड रहना चाहता था। इसलिए उसने ट्विटर बना दिया। इसे कई बार कंप्यूटर एसएमएस भी कहा जाता है। जब भी किसी दोस्त से बात करनी हो, तो बस, लिख दो 140शब्द और कर लो बातों का सिलसिला शुरू।