दिल्ली नगर निगम की ओर से हाल ही में हेल्थ ट्रेड लाइसेंस फीस 50 से 500 प्रतिशत तक की दरों में बढ़ोतरी की है। इस बढ़ोतरी के बाद बैंक्वेट हॉल, होटल, गेस्ट हाउस और रेस्तरां समेत अन्य कई व्यापार से जुड़े व्यापारी नाराज हैं। इसके अलावा जीएसटी काउंसिल द्वारा पहले से पैक और लेबल वाले खाद्य पदार्थों पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने के फैसले के खिलाफ व्यापारियों ने बंद का आह्वान करते हुए नरेला, बवाना और शहर के दूसरे हिस्सों में थोक अनाज मंडियों को बंद रखते हुए विरोध प्रदर्शन किया व शहर की कई खुदरा अनाज मंडियां भी पूर्ण तरह से बंद रहीं। पहले ट्रेड फीस के विषय में समझते हैं कि यदि उदाहरण के तौर पर किसी रेस्टोरेंट से दिल्ली नगर निगम द्वारा दस हजार रुपये फीस वसूली जाती है और अब नई दर के हिसाब से उससे न्यूनतम पांच लाख से लेकर अधिकतम पचास लाख रुपये वसूले जा सकते हैं हालांकि इसमें क्षेत्र, साइज व अन्य कई चीजों का वर्गीकरण हो सकता है। इससे महंगाई निश्चित तौर पर बढेगी। चूंकि स्पष्ट है कि कोई भी रेस्टोरेंट वाला जिस चीज को दौ सौ रुपये की बेच रहा था वो फीस बढ़ने के बाद कई गुना महंगी बेचेगा। दिल्ली की जनता बाहरी खाने की बहुत शौकीन है जिसकी वजह से भारत में सबसे ज्यादा रेस्टोरेंट राजधानी में हैं और उनकी बिक्री भी बहुत होती है। राष्ट्रीय राजधानी होने की वजह से गेस्ट हाउस व होटल इंडस्ट्री का भी कारोबार अच्छा चलता है चूंकि यहां देश-दुनिया से लोगों का आना लगा रहता है। बैंक्वेट हॉल पर गौर करें तो यह इंड्रस्टी का बहुत बडा व्यापार माना जाता है चूंकि यहां लोग पार्क या गली में शादी नही करते जो अब उनके स्टैंडर्ड में भी नही आती और न ही कानून की ओर से अनुमति मिलती है। इसके अलावा भी बाकी अन्य व्यापारी की भी लगभग ऐसी ही स्थिति है। जैसा कि हम इस बात को बेहतर तरीके समझते हैं कि बीते दो वर्षों में कोरोना की वजह से व्यापारियों का जो हाल हुआ है वो किसी से छिपा नही। नौकरी करने वाले को कम पैसा मिला और उसका घर चल पड़ा लेकिन व्यापारी वर्ग की पूरी तरह कमर टूट चुकी है।
व्यापारियों की स्थिति को समझने के लिए दिल्ली के तमाम व्यापारी संगठनों से इस मामले पर चर्चा हुई, पूर्वी दिल्ली की मंडोली रोड मार्केट ट्रेडर्स एसोसिएशन की अध्यक्षा बिन्नी वर्मा ने बताया कि कोरोना की मार से कई व्यापारियों का व्यापार बिल्कुल खत्म हो चुका था, कुछ तो एक-एक साल से किराया भी नहीं चुका पा रहे थे। अब थोड़ी सी गाड़ी पटरी आई ही थी कि दिल्ली नगर निगम ने ट्रेड लाइसेंस की फीस बढ़ा दी व दूसरा जीएसटी काउंसिल द्वारा पहले से पैक और लेबल वाले खाद्य पदार्थों पर 5 फीसदी जीएसटी लगाने की बात कर दी, जिससे दिल्ली के व्यापारी विचलित हो गए,यदि ऐसा ही रहा तो दिल्ली का व्यापारी और बडा प्रदर्शन करेंगे।
अब हम जीएसटी संदर्भ में भी समझते हैं कि आखिर किन व्यापारियों को यह क्यों नहीं भाया। केंद्र व राज्य सरकारें अलग-अलग जीएसटी वसूलती हैं। लोगों ने अभी तक अपने व्यापार के संचालन प्रक्रिया में जीएसटी को उतारा ही था कि अब बाकी अन्य चीजों पर जीएसटी लगा दी। इसे लागू होने पर इससे चावल की कीमत 4-6 रुपये किलो बढ़ जाएगी। जीएसटी काउंसिल ने जरूरी सामान जैसे दाल, चावल, गेहूं, आटा, अनाज पर पांच फीसदी जीएसटी लगाने का फैसला किस आधार पर क्यों लिया, यह अभी किसी को समझ नहीं आ रहा। नए नियम के तहत जो सामान पहले से पैक्ड होते हैं या फिर प्री-लेबल्ड होते हैं, वे सभी टैक्स के दायरे में आ गए हैं, जो पहले नहीं आते थे। हालांकि व्यापारियों के विरोध के बाद सरकार ने कहा कि यदि पैकेट फूड का वजन 25 किलोग्राम या 25 लीटर से ज्यादा है तो उस पर टैक्स नहीं वसूला जाएगा। लेकिन व्यापारी इससे भी संतुष्ट नहीं हैं, चूंकि इससे व्यापारी व आमजन को नुकसान ही है। क्योंकि घर के राशन में कोई भी ऐसा सामान नहीं होता जो 25 किलोग्राम या लीटर में आता हो। तेल और चावल को छोड़कर लगभग हर सामान एक या दो किलो ही लिया जाता है और सामान्य व निम्न वर्ग लोग तेल व चावल भी इतना नहीं लेते।
तांबे के व्यापारियों को लेकर जीएसटी की ठोस नीति न होने की वजह से वह चंदन के तस्कर या चरस-गांजे के धंधे की तरह व्यापार करते हैं। इस मामले पर जब व्यापारियों से पूछा कि वह ऐसा क्यों करते हैं तो उन्होंने बताया कि सरकार ने हमारे प्रोडक्ट पर बेतुका जीएसटी लगा रखा है। यदि वह यह टैक्स कम कर दे, तो हम टैक्स की चोरी न करें और सरकार को इससे ज्यादा फायदा होगा क्योंकि फिर हर व्यापारी ईमानदारी से टैक्स भरेगा। इसके अलावा भी अन्य कई प्रकार के व्यापारों पर को लेकर ऐसी ही स्थिति बनी हुई है।
बहरहाल, कई तकनीकियों के आधार पर समझाया जा सकता है कि अब हालात बेकाबू होने लगे हैं। इस मामले पर अर्थशास्त्रियों व विशेषज्ञों का मानना है कि महानगरों में केवल बड़े वर्ग का व्यापारी ही रह जाएगा, क्योंकि जिस प्रकार सरकार व निगम की नीतियां चल रही हैं, उससे मध्यम व निम्न व्यापारी व लोग महानगर छोड़कर भाग जाएंगे। ऐसा पहली बार हो रहा है कि महंगाई की वजह से पलायन हो रहा हो। दरअसल दिल्ली में अलग-अलग इंजन की सरकार होने की वजह से भी जनता को प्रताड़ित किया जा रहा हो। इन सभी मामलों पर बीजेपी व केजरीवाल सरकार एक-दूसरे पर आरोप मढ़ते नजर आते हैं, जिससे जनता भ्रमित होती रहती है। यहां सरकारों को विरोध प्रदर्शन करने की बजाय जनता की समस्या का समाधान करने की जरूरत है अन्यथा अब स्थिति अनियंत्रित हो सकती है।