Wednesday, July 3, 2024
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भाग्य का लेखा

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Sanskar 6


आत्मविश्वास और भावनात्मक संरचनाओं की भूमिका ,बदलाव का भय और नए का प्रतिरोध मन और अहंकार का सम्मिलित परिणाम है। यहीं पर हमारी बुद्धि और उससे भी बढ़ कर इच्छा शक्ति का परिचय होता है, परिवर्तन का मार्ग चुनने के लिए हमें इच्छा शक्ति के प्रयोग का कौशल सीखना पड़ेगा।

भाग्य का हमारे जीवन पर बहुत ही गहरा प्रभाव होता है। इस संसार में मनुष्य जब जन्म लेता है तो अपना भाग्य साथ ही लिखवाकर आता है, ऐसा हमारी भारतीय संस्कृति मानती है। भाग्य कौन लिखता है? यह कैसे बनता है? आदि प्रश्न हमारी जिज्ञासा को बढ़ाते हैं। ऐसा कोई भी व्यक्ति विशेष ऊपर आसमान में नहीं है जो हमारा भाग्य लिखने का कार्य करता है बल्कि हम स्वयं अपने भाग्य के निमार्ता हैं। सीधा स्पष्ट-सा गणित है कि हम जो भी अच्छे कार्य(सुकर्म) या बुरे कार्य(कुकर्म) करते हैं वही हमारा भाग्य बनाते हैं।

कर्म यानी सुकर्मों का फल हमें सफलताओं एवं सुख-समृद्धि के रूप में मिलता है। इसके विपरीत कुकर्मों का फल हमें असफलता व कष्ट-परेशानियों के रूप में मिलता है। कुछ कर्मों का फल हम इसी जन्म में भोग लेते हैं और कुछ शेष बच जाते हैं। यही बचे कर्म जन्म-जन्मांतर तक हमारा साथ निभाते हैं। उन्हीं शेष बचे हुए कर्मों से हमारा भाग्य बनता है।

भाग्य और कर्म अन्योन्याश्रित हैं। कर्म के बिना भाग्य फलदायी नहीं होता और भाग्य के बिना कर्म। इस बात को दूसरे शब्दों में इस प्रकार कह सकते हैं कि वे एक दूसरे के पूरक हैं और एक ही सिक्के के पहलू हैं। यदि मनुष्य का भाग्य प्रबल होता है तब उसे थोड़ी-सी मेहनत करने पर उसे आशातीत फल प्राप्त होता है पर यदि वह श्रम नहीं करता तो अपने स्वर्णिम अवसर से चूक जाता है। तब पश्चाताप करने का भी कोई लाभ नही होता। परन्तु इसके विपरीत कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि मनुष्य कठोर परिश्रम करता है पर उसे आशा के अनुरूप फल नहीं मिलता। इसका यह अर्थ नहीं कदापि नहीं कि वह परिश्रम करना छोडकर हाथ पर हाथ रखकर निठल्ला बैठ जाए और भाग्य को कोसता रहे या ईश्वर को गाली देता रहे। मनुष्य को सदा अपने भाग्य और कर्म दोनों को एक समान मानना चाहिए। फिर बार-बार सफलता की प्राप्ति के लिए ही प्रयत्न करना चाहिए। भाग्य भी तभी फल देता है जब मनुष्य स्वयं श्रम करता है।

हमेशा चींटी के श्रम को याद रखिए जो पुन: पुन: गिरकर, अथक प्रयास करके अपने लक्ष्य को पाने में अन्तत: सफल हो जाती है। इसी तरह हम अपनी बार-बार ईमानदार कोशिश से असफलता को पुन: सफलता में बदल सकते हैं। हर प्रकार की सुख-समृद्धि हमें अपने पूर्वजन्मकृत कर्मों के अनुसार ही मिलती है। फिर भी हमारे लिए यही उचित है कि हम अपने कठोर परिश्रम की बदौलत ही अपनी सफलताओं को पाने से न चूकें।

जब-जब अपने बाहुबल पर विश्वास करके कठोर परिश्रम करेंगे, तब-तब हमारा भाग्य हमें अवश्यमेव फल देगा। भाग्य के भरोसे बैठकर कर्म करना नहीं त्यागना है। उन्नति करने का अवसर हर किसी को जीवन में अवश्य मिलता है। शर्त बस यही है कि उस अवसर की प्रतीक्षा करते हुए हमें अपने हाथ पर हाथ रखकर नहीं बैठना है बल्कि भविष्य को सुखद बनाने का सार्थक प्रयास करना है।

किसी ज्ञानी महात्मा से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया, क्या सबका भाग्य पहले से ही निर्धारित होता है? महात्मा जी ने मुस्कान के साथ हामी भरते हुए कहा, हां, यह बात उन लोगों के लिए सही है जो इसमें विश्वास रखते हैं कि जीवन में उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को बदला नहीं जा सकता। व्यक्ति ने महात्मा से एक और प्रश्न पूछा, यदि पूर्व निर्धारित कुछ भी नहीं, तो ईश्वर को कैसे पूवार्नुमान है कि आगे जीवन में क्या घटित होने वाला है ? महात्मा जी के मुख पर संतोष की मुस्कान थी। उन्होंने कहा, ईश्वर ने मुझे इसका उत्तर देने के लिए नहीं भेजा है। यदि मैं ईश्वर होता तो निश्चित ही मेरा जीवन नीरस हो जाता। जिज्ञासा की भावना जन्म लेने से पहले ही खत्म हो जाती। परिस्थितियों का पूवार्नुमान जीवन के अमृत को ही खत्म कर देता। जीवन पर्यन्त होने वाली क्रियाएं केवल यंत्रवत हो जातीं।

उपर्युक्त संवाद से यह ज्ञात होता है कि व्यक्ति के उक्त प्रश्न का उत्तर आपके विश्वास और धारणा पर निर्भर करता है, अगर हम मानते हैं कि हमारा भाग्य पहले से निर्धारित है और जो लिखा है वही होगा, तो मैं यह कहना होगा कि आज ही सब कुछ छोड़छाड़ कर हमें घर बैठ जाना चाहिए क्योंकि जो होना है वह तो होगा ही । परमात्मा से हमें तन, मन, प्रज्ञा, भावनाएं एवं असीम इच्छा शक्ति इसलिए प्राप्त हुई हैं ताकि हम अपना उत्थान कर सकें। ज्योतिषि जो हमारी कुंडली देख भाग्य बताते हैं, वह अब तक का लेखा-जोखा है।

हमारा आज हमारे कल के किए कर्मों से निर्मित है। तो युक्ति सिद्ध कर रही है कि हमारा कल हमारे वर्तमान के कर्मों पर निर्भर करेगा। आत्मविश्वास और भावनात्मक संरचनाओं की भूमिका ,बदलाव का भय और नए का प्रतिरोध मन और अहंकार का सम्मिलित परिणाम है। यहीं पर हमारी बुद्धि और उससे भी बढ़ कर इच्छा शक्ति का परिचय होता है, परिवर्तन का मार्ग चुनने के लिए हमें इच्छा शक्ति के प्रयोग का कौशल सीखना पड़ेगा। एक गरुड़ की उम्र 70 साल तक हो सकती है, पक्षियों में यह सबसे दीर्घ जीवन अवधि है ।

                                                                                                         चंद्र प्रभा सूद


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