कहानियां सिर्फ उतनी ही नहीं होतीं, जितनी बाहर दिखती हैं। कहानियों का एक सिरा मन से, अवचेतन से भी जुड़ा होता है। जो इन दोनों सिरों का पढ़ और पकड़ पाता है, वही बेहतर कहानीकार होता है। उसकी कहानियां अधिक समय तक प्रभावी होती हैं। केवल बाहर की दुनिया को देखकर ही जो यथार्थ पकड़ने का दावा करते हैं, वह दरअसल घटनाओं और स्थितियों को ही यथार्थ समझते हैं। यथार्थ कोई ठोस चीज नहीं है, जिसे आप छू सकें, पकड़ सकें और कहानियों में रख सकें। यथार्थ निरंतर बदलता रहता है। लेखक उनकी संभावनाओं पर बात करता है। वास्तव में कहानियां चेतन-अवचेतन के बीच संवाद है और संभावनाओं की खोज है। इस्राइल के लेखक एमोस ओज का मानना था कि जो चीज स्पष्ट दिखाई दे रही है, उस पर मैं कहानी नहीं लिख सकता, हमें उस पर कहानी नहीं लिखनी चाहिए। यानी कहानी में एक अस्पष्टता, एक धुंध जरूरी है।
भालचन्द्र जोशी के कहानी संग्रह ‘तितली धूप’ (राजकमल प्रकाशन) में यह धुंध साफ दिखाई दी। उनके इस संग्रह में दस कहानियां हैं। इनमें पांच कहानियों को प्रेम कहानियां कहा जा सकता है। लेकिन ये ठोस प्रेम कहानियां नहीं हैं। इन कहानियों का प्रेम पारे की तरह आपकी आत्मा पर असर छोड़ता है। कहानियों का परिवेश बेहद सघन है। पहाड़, नदी, धुंध, मंदिर, खिड़की, सीढ़ियां सब कुछ यहां जीवंत है। इन सबके बीच प्रेम है, या प्रेम की तलाश है।
तितली धूप, एक पत्ता चांद, पहाड़ पर ठहरी नींद, प्रेम गली अति सांकरी और अमलतास सूख रहा असिता प्रेम की तलाश की ही कहानियां हैं। लेकिन भालचन्द्र जोशी प्रेम को बाहर ही नहीं तलाशते बल्कि अपने अवचेतन में भी तलाशते हैं। ‘पहाड़ पर ठहरी नींद’ एक ऐसी ही कहानी है जिसमें नायक एक दिन नायिका को अपने अवचेतन से बाहर निकालकर उससे मिलता है, उसके घर जाता है, रम पीता है, खाना खाता है, हिडिम्बा के मंदिर की सीढ़ियों पर बैठता है।
कहानी में प्रेम जैसा कुछ होने की आहट सुनाई पड़ती है। यह आहट ही कहानी को खूबसूरत बनाती है। अगले दिन वह दोबारा नायिका के घर जाता है। पता चलता है कि नायिका की मृत्यु कुछ समय पहले हो चुकी है। फिर भी उसका अवचेतन यह मानने को तैयार नहीं है कि नायिका अब नहीं रही।
उसे नायिका की छत पर लकड़ी के डंडे में लाल मफलर फड़फड़ाता दिखाई पड़ता है। यह मफलर वह कल रात को नायिका के घर भूल गया था। क्या इससे कोई फर्क पड़ता है कि नायिका वास्तव में है या नहीं? शीर्षक कहानी ‘तितली धूप’ भी इसी मिजाज की कहानी है।
इस कहानी में अंतरा नाम की एक युवा लड़की अपने प्रेमी की तलाश में पहाड़ से पंद्रह किलोमीटर दूर आश्रम पहुंचती है। वहां उसे अपना प्रेमी शेखर मिलता है। लेकिन शेखर यह मानने से इंकार कर देता है कि वह शेखर है। एक दिन अंतरा को अपने प्रेमी शेखर का गाना सुनाई देता है। वह भागकर आश्रम में उस शख्स के कमरे में जाती है, जो स्वयं को शेखर मानने से इंकार कर रहा है।
लेकिन वह बताता है कि वह टेपरिकार्डर पर शेखर की आवाज में गाना सुन रहा था। अंतरा वापस लौटने लगती है, लेकिन अचानक उसे अहसास होता है कि आश्रम में तो बिजली ही नहीं थी। यानी वही शेखर था, लेकिन अब आश्रम लौटने का कोई अर्थ नहीं था। भालचंद्र जोशी यहां अवचेतन को चेतन में बदल देते हैं। ‘एक पत्ता चांद’ में भी जोशी प्रेम के लिए सघन परिवेश रचते हैं। यहां नर्मदा है, जंगल है, पेड़ है, नायिका बानी है, नायक ‘मैं’ है और है प्रेम। इस कहानी में रूमानियत चरम पर है।
लेकिन ‘अंडर करंट’ में जंगलों को बचाने के स्वर भी सुनाई देते हैं। ‘अमलतास सूख रहा है असिता’ में भालचंद्र जोशी अपने एक मित्र की विधवा से मिलते हैं। यहां भी प्रेम के मंद स्वर सुनाई पड़ते हैं। ‘प्रेम गली अति सांकरी’ में एक पढ़ने-लिखने वाली और प्रेम को अधिक तवज्जो न देने वाली लड़की किस तरह अपनी ही दोस्त के प्रेमी के प्रति आकर्षित हो जाती है, यह दिखाया है। इस कहानी में भी भालचंद्र जोशी प्रेम के ठोस नहीं बल्कि वायवीय स्वरूप को ही दिखाते हैं।
ऐसा नहीं है कि भालचंद्र जोशी प्रेम से इतर कुछ देखते ही नहीं।
उन्हें कर्ज में डूबे किसान दिखाई देते हैं (पिशाच), दुष्कर्म का अपवित्र कुंड दिखाई देता है(अपवित्र र्कुंड), आदिवासियों की तकलीफ दिखाई देती है (जंगल) और खाद खरीदने वाले किसानों पर होने वाले अत्याचार भी दिखाई देते हैं (कहां नहीं हैं हत्यारे)। ‘अपवित्र कुंड’ में वह दुष्कर्म पीड़िता के बहाने समाज की स्त्रियों के प्रति सोच को उजागर करते हैं। एसपी पीड़िता को लुभाने के लिए एक घटना सुनाते हुए कहता है, तुम्हारे गांव में एक माता का मंदिर है।
वहां कुंड में किसी को भी नहाने की मनाही थी। उस कुंड में एक बदमाश लड़का कूदा था और नहा लिया था। गांव के बड़वे पुजारी ने कहा कि कुंड अपवित्र हो गया है। अब दूसरा कुंड बनाया गया है। पुराने कुंड में अब सभी नहाते हैं, क्योंकि एक बार अपवित्र हो जाने के बाद उसकी पवित्रता वापस नहीं आएगी।
एसपी उसकी मदद करने के बदले उसे एक रात के लिए चाहता है। वह कहता है कि कुंड एक बार अपवित्र हो गया, अब सब उसमें नहाते हैं। कमरे की गर्मी एकाएक बढ़ने लगती है। पीड़िता को एसपी का चेहरा दुष्कर्मी लड़कों के चेहरों जैसा लगने लगता है। क्या हमारा समाज भी दुष्कर्म पीड़ितों के लिए यही सोच नहीं रखता? एक बार ‘अपवित्र’ होने के बाद उसे हमेशा के लिए ही अपवित्र मान लिया जाता है?
‘एक डरे हुए पिता की चिट्ठी, बेटी के नाम’ कहानी में एक पिता की बेटियों को लेकर चिंताएं हैं। चिंताएं हैं कि सफलता, संपन्नता और सुख-सुविधाएं बच्चों को कहां ले जा रही हैं, कहां ले जाएंगी। कहानी में भालचंद्र जोशी ने बड़े सधे हुए अंदाज में ग्रामीण जीवन और उसमें रहते मां-बाप के बरक्स आधुनिक होती नयी पीढ़ी का चित्र खींचा है।
कहानी में पिता एक लेखक है, लिहाजा लेखक के दुख भी यहां दिखाई पड़ते हैं। कहानी में दिखाया है कि किस तरह रिश्ते, चरित्र और नैतिकता को बाजार ने उपकरण में बदल दिया है। समय में अजीब-सी क्रूरता शामिल हो गई है। वह अपनी बेटी को बताता है कि निमाड़, मध्य प्रदेश में गौरेया नाम की चिड़ियों की प्रजाति तेजी से खत्म हो रही है। पिता की सद्इच्छा है कि वह चिड़ियाओं का संसार बचाना चाहता है और उसे लगता है कि ऐसा मुमकिन है।
भालचंद्र जोशी के पास सधा हुआ शिल्प है, कथ्य से ही उनकी भाषा प्रवाहित होती है, पर्यावरण, नदी, जंगल और चिड़ियाओं को बचाना उनकी प्राथमिकता है। प्रेम को वह बाजारू तरीके से नहीं देखते, बल्कि वायवीय स्वरूप में देखते हैं। उनकी निगाहें प्रेम से इतर भी जाती है।
इस संग्रह की कहानियां ऐसी नहीं है कि इन्हें पढ़कर भूला जा सके। बल्कि इनका प्रभाव देर तक आपके जेहन में बना रहता है। इसलिए ‘तितली धूप’ को पढ़ा जाना जरूरी है। जोशी अपनी कहानियों में पूरा दृश्य देखते हैं-चेतन का भी और अवचेतन का भी।
सुधांशु गुप्त