उमेश कुमार साहू
क्रिसमस सारी दुनिया में उमंग और उत्साह के साथ मनाया जाने वाला महान पर्व है। प्रभु ईसा के जन्मोत्सव का उल्लास सभी के चेहरे पर तो झलकता ही है,उससे कहीं अधिक उल्लास इस पवित्र पर्व के तौर तरीकों में दिखाई पड़ता है। क्रिसमस जहां भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, वहीं विदेशों में भी यह अलग-अलग ढंग से पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है। आइये देखें कुछ देशों में क्रिसमस के तौर तरीके-
अमेरिका
क्रिसमस के दिन यहां की मौज मस्ती देखते ही बनती है। इस दिन सभी मित्र और परिजन मिलकर विशेष टर्की और वाइन का सेवन करते हैं। इस देश में सांताक्लाज नाम का एक नगर भी है। यहां के बच्चे सांता के नाम इस नगर में पत्र भेजते हैं।
जर्मनी
यहां क्रिसमस ट्री और घरों की सजावट का अंदाज ही निराला है। बच्चे क्रिसमस का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते हैं। क्रिसमस आते ही अपने माता पिता के साथ मिलकर क्रिसमस ट्री सजाते हैं। जिस स्थान पर भोजन रखा रहता है, वहां एक व्यक्ति घंटी बजाकर अपने परिजनों को भोजन के लिए आमंत्रित करता है।
सिंगापुर
यहां भी क्रिसमस का पर्व बहुत खास होता है। कई दिनों पहले से क्रिसमस की तैयारियां प्रारंभ हो जाती हैं। जगह-जगह क्रिसमस ट्री की सजावट देखते ही बनती है।
बेल्जियम
यहां फादर क्रिसमस को कसर्टमैन या ले पेरे नोएल कहते हैं और वह बच्चों के लिए उपहार लेकर आते हैं। यहां सभी पारिवारिक सदस्य मिलकर एक विशेष तरह की मीठी ब्रेड कागकनोल जो शिशु ईसा के आकार की होती है,का नाश्ता करते हैं।
डेनमार्क
यहां सांताक्लाज जिसे ‘जुलेमांडेन’ कहा जाता है, बर्फ पर चलनेवाली गाड़ी पर सवार होकर आता है। इस गाड़ी में ढेर सारे उपहार रखे होते हैं और इसे रेंडियर खींच रहे होते हैं।
फिनलैंड
पूरी दुनिया से सांताक्लाज के नाम पत्र यहीं भेजे जाते हैं। फिनलैंड वासियों के अनुसार फादर क्रिसमस फिनलैंड के उत्तरी भाग में ‘कोरवातुनतुरी’ नामक स्थान पर रहते हैं। यहां घरों और क्रिसमस ट्री की साज-सज्जा देखते ही बनती है। कब्रिस्तानों को भी सजाया जाता है। यहां के निवासी क्रिसमस के एक दिन पहले सुबह चावल की खीर खाते हैं तथा आलू बुखारे का रस पीते हैं।
मेक्सिको
यहां यह पर्व 16 दिसम्बर से ही शुरू हो जाता है। क्रिसमस पर ईसाई धर्म तथा प्राचीन अजटेक धर्म का मिला-जुला स्वरूप देखने को मिलता है। घरों को विविध फूलों, सदाबहार पेड़-पौधों तथा सुंदर कागज के कंदीलों से सजाते हैं। सूर्यदेव की मूर्ति के समक्ष जीजस के जन्म से सम्बंधित झांकियां बनाई जाती हैं।
बेथलेहम
बेथलेहम प्रभु ईसा मसीह की जन्मभूमि है। यहां दुनिया भर के हजारों ईसाई श्रद्धालु हर्ष और उल्लास के साथ ईसा मसीह के जन्म का जश्न मनाते हैं। क्रिसमस की पूर्व संध्या विशेष परेड का आयोजन किया जाता है, दिन का समापन 1700 वर्ष पुराने चर्च आफ नेटिविटी में क्रिसमस की सामूहिक प्रार्थना के साथ होता है। यह गिरिजाघर उस स्थान पर बना हुआ है जहां यह माना जाता है कि यीशु का जन्म हुआ था।
क्रिसमस का इतिहास ईसा मसीह के जन्म के साथ जुड़ा हुआ है, जो बाइबल के न्यू टेस्टामेंट में लिखा है। ईसाई धर्म के अनुसार, 25 दिसंबर को प्रभु यीशु मसीह का जन्म हुआ था और इसलिए इस दिन क्रिसमस मनाया जाता है। हालांकि, कुछ इतिहासकार और रिलीजियस फॉलोअर्स का यह मानना है कि ईसा का जन्म सच्चाई में इस दिन नहीं हुआ था और यह सिर्फ सिंबॉलिक जन्मदिन है। बाइबल में जीसस की कोई बर्थ डेट नहीं दी गई है, लेकिन फिर भी 25 दिसंबर को ही हर साल क्रिसमस मनाया जाता है। यीशु मसीह का जन्म मरियम के घर हुआ था। ऐसी मान्यता है कि मरियम को एक सपना आया था, जिसमें उन्हें प्रभु के पुत्र यीशु को जन्म देने की भविष्यवाणी की गई थी।
क्रिसमस शब्द क्राइस्ट मास से निकला है। इसे पहली बार ईसाई रोमन सम्राट और रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन के शासनकाल के दौरान 336 में मनाया गया था। इसके बाद पोप जुलियस ने 25 दिसंबर को आॅफिशियल जीसस क्राइस्ट का जन्म दिवस मनाने का फैसला लिया था।
25 दिसंबर से दिन लंबे होना शुरू हो जाते हैं इसलिए इस दिन को सूर्य का पुनर्जन्म माना जाता है, और यही कारण है कि यूरोपीय लोग 25 दिसंबर को सूर्य के उत्तरायण के मौके पर त्योहार मनाते थे। इस दिन को बड़े दिन के रूप में भी जाना जाता है। ईसाई समुदाय के लोगों ने भी इसे प्रभु यीशु के जन्मदिन के रूप में चुना, और इसे क्रिसमस कहा जाने लगा। इससे पहले, ईस्टर ईसाई समुदाय का मुख्य त्यौहार था।