- दो हजार से अधिक निगम कर्मियों को लेकर एससी-एसटी कोर्ट के विशेष न्यायधीश ने जारी किया नोटिस
- 17 दिसंबर 2018 को एससी एक्ट में तत्कालीन नगर आयुक्त व अन्य के खिलाफ देहलीगेट थाने पर दर्ज हुआ था मुकदमा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम में सभी श्रेणी के कितने कर्मचारी है इसकी सूची उपलब्ध कराने को लेकर कोर्ट ने नगर आयुक्त को नोटिस जारी किया है। नोटिस के साथ स्पष्टीकण भी मांगा गया है जिसमे सूची देर से उपलब्ध कराने का कारण बताया जाए। स्पष्टीकरण व सूची उपलब्ध करानें के लिए दो अगस्त तक का समय दिया गया है।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेशीय सफाई मजदूर संघ शाखा नगर निगम मेरठ के तत्कालीन अध्यक्ष विजेन्द्र कुमार महरोल, वर्तमान महामंत्री संतीश छजलाना द्वारा 17 दिसंबर 2018 में एससी एक्ट समेत अन्य धाराओं में नगर आयुक्त समेत अन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था।
जिसमें सफाइकर्मियों के उत्पीड़न से लेकर अन्य मांगों का भी हवाला दिया गया था। अब 7 जुलाई को जारी नोटिस में नगरायुक्त से कोर्ट ने स्पष्टीकरण व उस समय निगम की सभी श्रेणी के कर्मचारियों की सूची उपलब्ध कराने को कहा गया है।
यह है प्रकरण
2015 में अस्थाई व स्थाई सफाई कर्मियों को लेकर उत्तर प्रदेशीय सफाई मजदूर संघ ने एक आम बैठक बुलाई थी। जिसमे उस समय कार्यकाल पूरा कर चुके यूनियन पदाधिकारियों को लेकर चर्चा की गई थी। साथ ही नई कार्यकारिणी भी गठित की गई थी। नई कार्यकारिणी गठित होने के बाद पुराने पदाधिकारियों ने नई कार्यकारिणी को काम नहीं करने दिया।
जबकि पुरानी कार्यकारिणी निगम में फैली अनियमितताओं को दूर करने में असमर्थ रही थी। आरोप था कि पुरानी कार्यकारिणी तत्कालीन नगर आयुक्त व अन्य अधिकारियों के लिए काम कर रही थी। नई कार्यकारिणी ने श्रम विभाग के पास शिकायत की, 28 अप्रैल 2017 को तत्कालीन उपश्रमआयुक्त सरजू राम शर्मा ने नोटिस जारी कर दोनो पक्षों जिनमें श्रमिकों की ओर से विजेन्द्र महरौल व निगम की तरफ से तत्कालीन नगर आयुक्त समेत एक अन्य अधिकारी को वार्ता के लिए तलब किया। साथ ही उपश्रमायुक्त ने कहा कि जबतक मामला चल रहा है किसी भी कर्मचारी के विरूद्ध नगर निगम की ओर से कोई आदेश न दिये जाए। इसके लिए श्रम विभाग के आदेशों का पालन किया जाए।
लगातार होता रही आदेशों की अवहेलना
श्रम विभाग के आदेश को ताक पर रखते हुए उसका लगातार उलंघन होता रहा। जबकि उत्तर प्रदेशीय सफाई मजदूर संघ की नई कार्यकारिणी ने 2015 में लागू हुई ठेकेदारी प्रथा के दौरान सफाई कर्मियों के हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ मांग उठाई थी। निगम में शासन द्वारा रखे गए कर्मचारियों के अलावा अन्य सफाई कर्मियों को अस्थाई माना गया। जबकि नए पद स्रजित नही होने की स्थिति में अस्थाई कर्मचारियों को नियमित कर्मचारियों के रिटायर होने के बाद स्थाई किया जाना था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अस्थाई कर्मचारियों के अधिकारों का हनन होता रहा।
2215 अस्थाई कर्मियों को न्याय दिलाने की मांग
उत्तर प्रदेशीय सफाई मजदूर संघ आज भी दो हजार से अधिक अस्थाई कर्मचारियों के हितों को लेकर आवाज उठा रहा है। संगठन का कहना है कि जिन कर्मचारियों को ठेकेदारों के हवाले किया गया है निगम ने विधिवत तरीके से उनकी सेवा समाप्त नहीं की है। कर्मचारियों को गैरकानूनी तरीके से ठेकेदार के हवाले कर दिया गया।
वास्तव में आज भी सभी कर्मचारी निगम के ही कर्मचारी है, आज भी निगम के प्रबंधकीय अधिकारी कर्मचारियों से काम लेते हैं। जबकि ठेकेदार का कहीं कोई रोल नहीं है। संगठन का आरोप है कि ठेकेदार निगम के अधिकारियों को कमीशन देते हैं। किसी भी कर्मचारी को बिना नोटिस जारी किए हटा दिया जाता है, किसी को भी बिना नियमों का पालन किए भर्ती कर लिया जाता है जिससे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन हो रहा है।
दो अगस्त तक नगर आयुक्त से मांगी सूची
कोर्ट ने नगर आयुक्त अमित पाल शर्मा को दो अगस्त तक 17 दिसंबर 2018 में तत्कालीन नगर आयुक्त व अन्य के खिलाफ देहली गेट थाने पर दर्ज हुई एफआईआर के समय कितने कर्मचारी निगम में थे। इसकी सूची उपलब्ध कराने व विलंबन होने को लेकर स्पष्टीकरण देने के आदेश दिये हैं।