Friday, July 5, 2024
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कैसे बचें मुंह की दुर्गंध से

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प्राय: सभी बीमारियां ऐसी होती हैं, जिनका अनुभव ग्रसित होने वाला व्यक्ति पहले स्वयं करता है, बाद में उस व्याधि की जानकारी दूसरे व्यक्ति को होती है परन्तु एक बीमारी ऐसी भी होती है, जिसके बारे में रोगग्रस्त व्यक्ति को स्वयं पता नहीं चलता किंतु उसके आस-पास बैठने वाले अथवा उससे बातचीत करने वाले व्यक्तियों को उसका आभास तुरंत हो जाता है। इस रोग का नाम है ‘मुंह की दुर्गंध।’

मुंह की दुर्गंध उठने के अनेक कारण हैं किंतु उन सभी कारणों के मूल शरीर में अत्यधिक उत्पन्न होने वाले और पलने वाले जीवाणु ही होते हैं। अत्यधिक खैनी खाना, गुटखा खाना, पान या पान मसाला खाना, धूम्रपान करना, शराब, स्मैक, गांजा, चरस आदि नशीली वस्तुओं के निरन्तर प्रयोग के कारण मसूड़े एवं दांत असंतृप्त होकर पीड़ित हो जाते हैं तथा अपनी पीड़ित अवस्था के कारण जीवाणुओं को पनाह देना प्रारंभ कर देते हैं।

दांतों पर जमा मैल दांतों की सतह को बदसूरत और दांतों की जड़ को निहायत कमजोर बना देता है। आहार नलिका द्वारा पनाह दिए जाने वाले जीवाणु आंत में विकार पैदा करते हैं। इसी प्रकार भोज्य पदार्थों के कण भी दांतों के बीच भर जाते हैं और कुछ ही घंटों में सड़कर बदबू उत्पन्न करने लगते हैं। समय रहते ही अगर दांतों की इस मैल को हटाया न जाए तो वही बढ़कर पायरिया का रूप धारण कर लेती है।

  • मुख की दुर्गंध होने ही न पाए, इसके लिए प्रतिदिन विशेष सावधानी बरत कर मुख की शुद्धि करना आवश्यक है। बिस्तर से उठने के बाद तथा बिस्तर पर सोने से पहले, खाना खाने के बाद मुख में स्वच्छ एवं ताजा जल भरकर बार-बार कुछ मिनटों तक लगातार कुल्ला करते रहना चाहिए।
  • दांतों की दृढ़ता के लिए गुनगुने पानी में थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर कुल्ला करना चाहिए। इसी प्रकार यदि दांतों पर अधिक मैल जमा हो तो स्वच्छ जल में नींबू का रस मिलाकर उससे कुल्ला करना चाहिए। ऐसा करने से दांतोंं पर जमी मैल कट जाती है।
  • कुल्ला कर लेने के बाद टूथपेस्ट एवं उत्तम बु्रश की सहायता से दांतों को भली-भांति ऊपर-नीचे, अंदर-बाहर चारों ओर घुमा फिरा कर साफ करना चाहिए। मंजन एवं पेस्ट की क्वालिटी अच्छी होनी चाहिए।
  • आयुर्वेद के अनुसार हरी वनस्पति से निर्मित दातुन न केवल दांतों को साफ करते हैं बल्कि अपने रसों द्वारा उनको पोषण भी प्रदान करते हैं। नीम, बबूल, करंज, अपमार्ग, महुआ, खैर आदि की टहनियों के दातुन को आयुर्वेद में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
  • दांतों की अच्छी तरह सफाई के बाद अंगुलियों की सहायता से कुछ समय तक मसूड़ों, जीभ एवं गालों के अंदरूनी हिस्सों को रगड़-रगडकर साफ करना चाहिए। ऐसा करने से उनके ऊपर जमा हुआ पदार्थ हट जाता है तथा बदबू पैदा होने की संभावनाएं शिथिल हो जाती हैं। जीभ को साफ करने के लिए प्रयुक्त की गई टहनी को चीरकर अथवा बाजारों में उपलब्ध धातु की बनी रेडिमेड जीभी का प्रयोग किया जा सकता है।
  • आंत तथा पेट की गड़बड़ी से भी मुख दुर्गंध उत्पन्न होती है। मांस, मछली, अण्डा अथवा देर से पचने वाली वस्तुओं का सदैव त्याग करना चाहिए। ऐसे पदार्थों को ग्रहण करने से कब्ज होती है तथा कब्ज अनेक रोगों को जन्म देने वाली होती है। सात्विक भोजन और हरी सब्जियों का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए हितकर होता है।

आनंद कुमा अनंत


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