ऊसर सुधार का कार्य मई के अंतिम अथवा जून के प्रथम सप्ताह से प्रारम्भ करना चाहिए। सर्वप्रथम खेत की जुताई करके उसकी मेड़बन्दी कर लें। इसके उपरान्त जिप्सम की आवश्यक मात्रा को खेत में समान रूप से बिखेर कर लगभग 10 सेमी गहराई तक मिट्टी में मिला दें। जिप्सम मिलाने के तुरंत बाद खेत में पानी भर दें, जो लगभग दो सप्ताह तक भरा रहना चाहिए। ध्यान रहे कि खेत में लगभग 10-15 सेमी ऊंचाई में पानी अवश्य भरा रहे। ऐसा करने से यह ऊसर भूमि को घुलनशील लवण तथा सोडियम निचली सतहों में निक्षालित हो जाते हैं। जिसे मृदा अम्ल अनुपात एवं पीएच कम हो जाता है।
ऊसर भूमि को सुधारने के लिए संस्तुत जिप्सम की आधी मात्रा तथा 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद अथवा 10 टन प्रेसमड (सल्फीटेशन प्लान्ट) अथवा 10 टन फ्लाईऐस प्रति हेक्टेयर की दर से उपलब्ध होने की दशा में करें। यदि गोबर की खाद, प्रेसमड तथा फ्लाईऐस उपलब्ध न हो तो जिप्सम की संस्तुति की गई आधी मात्रा का प्रयोग करें। मृदा सुधारकों के प्रयोग के बाद रिक्लेमेशन को प्रक्रिया पूरी होने पर खरीफ में प्रथम फसल के रूप में धान की फसल लें।
खरीफ की फसल क्षारीयता की अपेक्षा लवणता से अधिक प्रभावित होती है, जबकि रबी की फसलें लवणता की अपेक्षा क्षारीयता से अधिक प्रभावित होती है। धान क्षारीयता को सह लेता है, परन्तु लवणता के प्रति उतना सहनशील नहीं है। ऊसरीली भूमि में 2-3 वर्षों तक खरीफ में धान की अनवरत फसल ली जानी चाहिए, क्योंकि जैविक क्रिया के फलस्वरूप एक प्रकार का कार्बनिक अम्ल उत्पन्न होता है जो क्षारीयता को कम करता है साथ ही भूमि में सोडियम तत्व का अवशोषण अधिक मात्रा में होने से भूमि में विनिमयशील सोडियम की मात्रा कम हो जाती है और भूमि की भौतिक तथा रासायनिक गुणवत्ता में शनै: शनै: सुधार हो जाता है।
धान के बाद रबी में पहली फसल गेहूं की ली जानी चाहिए। यदि भूमि लवणीय हो तो जौ की फसल उपयुक्त होगी। गेहूं के बाद जायद में हरी खाद हेतु ढैंचा अवश्य बोना चाहिए। ताकि भूमि में जैविक कार्बन की उपलब्धता उच्च स्तर की हो जाए। इस प्रकार सुधार के प्रथम वर्ष में धान, गेहूं और ढैंचा का फसल चक्र अपनाना उपयुक्त होता है। सुधार के द्वितीय वर्ष से धान के बाद रबी में सरसों तथा गन्ने की खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
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