Thursday, April 18, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादखेतीबाड़ीमधुमक्खी पालन से करें आमदनी

मधुमक्खी पालन से करें आमदनी

- Advertisement -

KHETIBADI


भारत में मधुमक्खी पालन से तकरीबन साठ लाख किसानों को आजीविका मिली है और इसमें भरपूर संभावना भी है। इसका कारण यह है कि मधुमक्खी पालन में न तो अधिक भूमि की जरूरत है और न ही अधिक निवेश की। यह एक ऐसा व्यवसाय है, जो ग्रामीण क्षेत्रों के विकास का पर्याय बनता जा रहा है। गौर करनेवाली बात यह है कि शहद उत्पादन के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है।

केंद्रीय मधुमक्खी शोध संस्थान पुणे के अनुसार मधुमक्खियों से तैयार शहद कई प्रकार के रोगों के इलाज ही नहीं बल्कि एड़स से लेकर यौन क्षमताओं के लिए उपयोगी दवाओं के निर्माण में काम आता है। पलाश के फूलों वाले इलाके की मधुमक्खियों द्वारा तैयार शहद उच्चरक्तचाप के इलाज में, तो मधुमक्खियों के डंक के जहर से गठिया तक का इलाज होता है। देश में लगभग एक लाख मीट्रिक टन शहद की खपत का अनुमान है। लिहाजा इसकी अच्छी मांग हमेशा बनी रहती है।

मधुमक्खी पालन में सब कुछ उपयोगी

अहम बात यह है कि मधुमक्खी पालन में शहद ही नहीं बल्कि उसका प्रत्येक अवयव मानव के किसी न किसी काम में आता है। मधुमक्खी पालन से शहद निकाल लिए जाने के बाद छत्ते से मोम, गोंद यानी प्रोपोलिस, राज अवलेह, मधुमक्खी के डंक से मधुविष आदि प्राप्त होता है। मधुमक्खियों के छत्तों में से शहद निक ाल लेने के बाद उस छत्ते का उपयोग मोम बनाने में किया जाता है। छत्तों में से एक साल में सात से आठ किलोग्राम शहद निकाला जा सकता है।

शहद का स्वाद मधुमक्खियों द्वारा जिस फूल से मकरंद या पराग लाए जाने के अनुसार होता है। हालांकि मकरंद की कमी होने पर मधुमक्खियों को चीनी की घोल से शहद बनाने की प्रक्रिया जारी रखने में मदद की जाती है लेकिन इस प्रक्रिया से तैयार शहद प्राकृतिक नहीं कहा जा सकता है। एक छत्ते में औसतन साठ हजार से अधिक मधुमक्खियां होती हैं और गर्मी के महीनों में वे प्रतिदिन औसतन 1500 अंडे देती हैं। इस प्रकार साल डेढ़ साल में उनकी संख्या 15 लाख से अधिक हो जाती है। मधुमक्खी परपरागण द्वारा फसलों की पैदावार को बढ़ाने में जबरदस्त उपयोगी है।

मैलीफेरा हैं सबसे उपयुक्त मधुमक्खी

इस व्यवसाय के लिए चार तरह की मधुमक्खियां इस्तेमाल होती हैं। ये हैं- एपिस मेलीफेरा, एपिस इंडिका, एपिस डोरसाला और एपिस फ्लोरिया। इस व्यवसाय के लिए एपिस मेलीफेरा मक्खियां ही अधिक शहद उत्पादन करने वाली और स्वभाव की शांत होती हैं। इन्हें डिब्बों में आसानी से पाला जा सकता है। इस प्रजाति की रानी मक्खी में अंडे देने की क्षमता भी अधिक होती है। मैलीफेरा विभिन्न जलवायु दशाओं में सबसे अधिक तेजी से बढ़ने और अनुकूलता में ढल जाने के लिए जानी जाती है।

मधुमक्खी पालन के लिए जनवरी से मार्च का समय सबसे उपयुक्त है, लेकिन नवंबर से फरवरी का समय तो इस व्यवसाय के लिए वरदान है। इस समय सरसों प्रजाति के मौनचर उपलब्ध रहते हैं जिनमें पुष्परस और पराग दोनों होता है जिससे मधुमक्खियों के शिशुपालन का काम आसानी से होने लगता है।

ध्यान देने योग्य बातें

आदर्श मौनालय यानी मधुमक्खियों के आश्रय का चुनाव करना मधुमक्खी पालकों के लिए बेहद जरूरी है। मधुमक्खियों के पालन गृह का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके एक से तीन किलोमीटर की त्रिज्या में चारों ओर पराग व पुष्परस प्रदान करने वाले मौनचरों या पेड़-पौधों की बहुतायत हो। फूलों की खेती के साथ यह उद्योग अधिक फायदेमंद होता है जिससे शहद उत्पादन में 20 से 80 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो जाती है। सूरजमुखी, गाजर, मिर्च, सोयाबीन, पॉपीलेनटिल्स ग्रैम, फलदार पेडमें जैसे नींबू, कीनू, आंवला, पपीता, अमरूद, आम, संतरा, मौसमी, अंगूर, यूकेलिप्टस और गुलमोहर जैसे पेडवाले क्षेत्रों में मधुमक्खी पालन आसानी से किया जा सकता है।

ऐसे स्थान पश्चिमी हवा व आंधी से सुरक्षित हों जिसके लिए पश्चिमी दिशा की ओर प्राकृतिक व कृत्रिम अवरोध होना आवश्यक है। मधुमक्खियों का आश्रय स्थल या मौनालय हवादार होना चाहिए और वहां ताजी हवा का आवागमन होने के साथ साथ जलजमाव नहीं होना चाहिए। साथ ही ऐसे पालन केंद्रों को मुख्य सड़क मार्गों के साथ होने से मधुमक्खियों को असुविधा होती है, इसका ध्यान रखा जाना चाहिए। लेकिन यह भी ध्यान रहे कि पालन केंद्र के आसपास सार्वजनिक बैठक, स्कूल, अस्पताल जैसी जगहें न हों, आम लोगों के आने जाने के रास्ते या खेलकूद के मैदान के आसपास न हों। ऐसे स्थान को चींटी और दीमक से भी दूर होना चाहिए।

एक आदर्श मौनालय में 50 से 100 मौनगृह यानी मधुमख्यिों के पालन गृह रखे जा सक ते हैं। यह पेटिकाएं एक दूसरे से 6-10 फीट की दूरी पर रखी जानी चाहिए जबकि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 10-20 फीट होना बेहतर होता है। मधुमक्खियों की पेटिकाओं का प्रवेश द्वारा हमेशा पूर्व की ओर होना चाहिए, यदि ऐसा संभव न हो तो उसे दक्षिण दिशा की ओर रखें। ऐसा करने से मधुमक्खियां अपना कामकाज अधिक सवेरे ही शुरू कर देती हैं। मधुमक्खियों की पेटिकाओं का पिछला भाग थोड़ा उठा और अगला भाग थोड़ा झुका होना चाहिए।

मधुमक्खियों के पेटिकाओं में वृद्धि-प्रगति को देखने परखने के लिए निरीक्षण तेज धूप, आंधी, वर्षा, ठंडे व बादल के दिनों में नहीं करना चाहिए। निरीक्षण के लिए दस्ताने और जालीदार नकाबों को प्रयोग करना चाहिए, और यह समय सुबह दस बजे से लेकर दिन के तीन बजे के बीच होना चाहिए। निरीक्षण के दौरान आपका शांत और निडर होकर करना चाहिए।


janwani address 5

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments