Sunday, August 17, 2025
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नए दौर में भारत-ब्रिटेन संबंध


भारत और ब्रिटेन आपसी रिश्तों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में बदलने के लिए महत्वाकांक्षी ‘रोडमैप 2030’ लागू करने पर सहमत हुए है। बुधवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने वर्चुअल प्लेटफार्म पर आयोजित शिखर बैठक में रोडमैप-2030 लॉन्च किया । बैठक के दौरान ब्रिटेन ने भारत के साथ एक अरब पौंड के व्यापार और निवेश को अंतिम रूप दिया गया। इसके तहत साल 2030 तक दोनों देशों के बीच व्यापार को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया हैैं। साथ ही मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की दिशा में काम करने को लेकर दोनों पक्षों ने सहमति जतायी है। अगले एक दशक में भारत-ब्रिटेन रिश्तों को मजबूत बनाने व द्विपक्षीय सहयोग को और गहरा करने के लिए दोनों देशों के बीच बनी इस सहमति को काफी अहम माना जा रहा है।

रोडमैप के जरिये व्यापार और समृद्धि, रक्षा और सुरक्षा, जलवायु परिर्वतन पर कार्रवाई, स्वास्थ्य सेवा और लोगों से लोगों के बीच संपर्कों को बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग करने पर सहमति बनी है। संभवत: भारत ऐसा पहला देश है, जिसके साथ ब्रिटेन ने अगले एक दशक के लिए किसी कार्ययोजना पर काम करने के लिए साझेदारी की है।

सवाल यह है कि यूरोप से बाहर ब्रिटेन इस तरह की साझेदारी में रूचि क्यों ले रहा है। कंही ऐसा तो नहीं कि ब्रेग्जिट के बाद रिक्त हुए स्पेस को भरने के लिए ब्रिटेन भारत की ओर आकर्षित हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के साथ द्विपक्षीय वार्ता के बाद वर्चुअल संवाददाता सम्मेलन में जॉनसन ने जो कहा उससे तो ऐसा ही जान पड़ता है। जॉनसन का कहना था कि आने वाले दशक में फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के जरिए हम भारत के साथ संबंधों को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे। एक ओर अहम सवाल यह भी उठ रहा है कि इस तरह की साझेदारी से भारत को क्या मिलेगा।

दरअसल, 31 जनवरी 2020 को यूरोपीय संघ से बाहर होने के बाद ब्रिटेन एशिया और अफ्रीका के विकासशील देशों में अपने माल की खपत हेतु नए बाजार की तलाश में जुटा हुआ है। उसकी नजर में भारत तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था और लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाला एक ऐसा राष्ट्र है, जिसके लंबे-चौड़े बाजार ब्रिटिश माल की खपत के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं। दूसरी ओर भारत के दृष्टिकोण से देखा जाए तो भारत के लिए भी यूरोप एक बड़ा बाजार है। 50 करोड़ की आबादी वाले यूरोपियन संघ की अर्थव्यवस्था 16 खरब डॉलर है, जो पूरी दुनिया की जीडीपी के एक चौथाई के बराबर है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के बाद ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि इसका सबसे बड़ा असर ब्रिटेन में काम कर रही भारतीय कंपनियों पर पड़ सकता है। इसके अलावा यूरोप के लिए ब्रिटेन भारत के गेटवे के रूप में काम करता है। भारतीय मूल के लगभग 20 लाख लोग ब्रिटेन में रहते हैं। ऐसे में भारत-ब्रिटेन संबंधों में सुधार का मतलब है, भारतीय निवेशकों और उद्यमियों को अच्छे अवसर प्राप्त होना। आंकड़ों पर गौर करे तो भारत और ब्रिटेन के बीच 23 अरब पांउड (करीब 2.35 लाख करोड़) रूपए का कारोबार होता है। इससे दोनों देशों के करीब 5 लाख लोगों को रोजगार उपलब्ध होता है। यह आंकड़ा अभी और बढ़ सकता है।

भारत और ब्रिटेन साल 2004 से रणनीतिक साझेदारी का रिश्ता निभा रहे हैं। हालांकि, ब्रिटेन के पाकिस्तान से रिश्तों के चलते भारत-ब्रिटेन संबंधों में तनाव के बिंदू उभरते रहे हैं। लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री डेविड कैमरन की भारत यात्रा के बाद दोनों देशों के बीच संबंधों का जो नया युग आंरभ हुआ उसे पहले थेरिसा मे और अब बोरिस जॉनसन लगातार आगे बढ़ा रहे हैं।

बहुप्रतिक्षित शिखर बैठक से पहले जॉनसन का दो बार भारत आने का कार्यक्रम बना था। लेकिन कोरोना के चलते दोनों ही बार उनकी यात्रा टल गयी। पहले 26 जनवरी 2021 को भारत के गणतंत्र दिवस समारोह में मुख्य अतिथि की हैसियत से भारत आने वाले थे। उस वक्त ब्रिटेन में कोरोना पीक पर था। इसलिए उन्हें अपना दौरा रद करना पड़ा था। उसके बाद पिछले महीने 25 अप्रैल को दोबारा उनका कार्यक्रम तय हुआ लेकिन इस बार भारत में कोरोना पीक पर है। ऐसे में ब्रिटेन के भीतर प्रमुख विपक्षी पार्टी और दूसरे लोग जॉनसन पर भारत दौरा रद करने का दबाव डाल रहे थे।

बैठक में दोनों नेताओं ने कारोबार को लेकर नए अवसर खोलने तथा भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर तो बात हुई ही साथ ही सुरक्षा, स्वास्थय और जलवायु को लेकर भी चर्चा हुई। इस दौरान दोनों नेताओं ने कोरोना संक्रमण को लेकर भी चर्चा की। पीएम मोदी ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में ब्रिटेन का साथ मिलने पर बोरिस जॉनसन का शुक्रिया अदा किया । ब्रिटिश पीएम जॉनसन ने भी पिछले साल भारत की तरफ से की गई मदद पर धन्यवाद दिया।

नि:संदेह, भारत और ब्रिटेन के बीच संबंध लगातार नई ऊंचाइयों की ओर बढ़ रहे हैं। कोरोना से लड़ने में ब्रिटेन लगातार भारत की मदद कर रहा हैं। वेंटिलेटर्स की कमी से जूझ रहे भारत को उसने 1000 वेंटिलेटर्स देने की बात कही है। इससे पहले ब्रिटेन 6 मिलियन यूरो (करीब 69 करोड़ रुपये) की मेडिकल सामग्री भारत भेज चुका है। अब शिखर बैठक से ठीक एक दिन पहले जॉनसन ने भारत में एक अरब पाउंड (करीब 10,000 करोड़ रुपये) के निवेश की घोषणा कर यह दिखा दिया है कि ब्रिटेन भारत के लिए कितना अहम है।


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