गोभीवर्गीय (ब्रेसिका ओलरेसिया) सब्जियों में प्रमुख रूप में फूलगोभी, पत्तागोभी, गांठगोभी ब्रोकली तथा ब्रूसेल्स स्प्राउट फसलें सम्मिलित होती हंै। इस वर्ग की सब्जियों की उपलब्धता पूरे साल बनी रहती है। इन सब्जियों को भारत के सभी भागों में उगाया जाता है। ये सब्जियां विटामिन ए, बी तथा सी के प्रमुख स्रोत हैं। इन फसलों में बहुत से रोग लगते हैं जो फसल के उत्पादन तथा गुणवत्ता को प्रभावित करता है। गोभीवर्गीय सब्जियों के प्रमुख रोगों के प्रमुख लक्षण, रोगकारक तथा समुचित प्रबंधन का संक्षिप्त वर्णन किया गया है।
मृदुरोमिल आसिता
यह रोग पैरोनोस्पोरा पैरासिटीका नामक कवक से होता है। इस रोग का आक्रमण पुराने पौधों की अपेक्षा नए पौधों पर अधिक होता है। इस रोग के लक्षण पत्तियों की निचली सतह पर नसों के बीच के स्थान पर कोणीय, अर्द्ध-पारदर्शक, बैंगनी-भूरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते हंै तथा उसके ठीक पत्तियों की ऊपरी सतह पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते हैं। नमी वाले मौसम में, रोगकारक के सफेद-धूसर रंग के कवकजाल, बीजाणुधानी तथा बीजाणु पत्तियों की निचली सतह पर दिखाई देते हैं। रोगकारक फूलगोभी के कर्ड को भी संक्रमित करते है, जिससे संक्रमित ह्यकर्डह्ण के ऊपरी भाग भूरे रंग का दिखाई देता है जो बाद में गहरे भूरे से काले रंग में बदल जाते हैं।
प्रबंधन
-संक्रमित फसल अवशेषों एवं बहुवर्षीय खरपतवारों को खेत से निकाल कर नष्ट करें।
-फसल-चक्र में गोभीवर्गीय फसलों के स्थान पर दूसरी फसलों को सम्मिलित करें।
-फसलों को अधिक सघन न उगाएं ताकि फसलों के पास अधिक आर्द्रता न बने।
-बुवाई के लिए स्वस्थ एवं साफ बीजों का प्रयोग करें।
तना गलन
यह रोग स्क्लेरोटिनिया स्क्लेरोटिमोरम नामक कवक से होता है। इस रोग से प्रभावित पत्तियां दिन में मुरझा जाती हैं लेकिन रात में पुन: सामान्य हो जाती हैं। पुरानी पत्तियों में पीलापन ऊपरी भाग से शुरू होता है तथा बाद में वे अपरिपक्व अवस्था में झड़ जाती हैं। जो पत्तियां भूमि को छूती हैं वहां पर अनियमित आकार के गहरे भूरे से काले धब्बे बनते हैं। इस भाग पर कवक की वृद्धि ठण्डे और आर्द्र मौसम में दिखाई देती है। पौधों में गलन डंठल से बढकर स्टाक तक हो जाती है। जबकि गहरे भूरे से काले धब्बे तने पर चारों ओर से घेरा बनाते हैं।
प्रबंधन
-फूलगोभी-धान-फूलगोभी फसल-चक्र अपनाकर इस रोग से बचाया जा सकता है।
-संक्रमित पौधों तथा निचली पत्तियों को प्रत्येक सप्ताह निकालते रहें।
-सूरजमुखी की खली तथा जिप्सम का प्रयोग मृदा में करने से रोग कम लगता है।
-फूलगोभी की रोग प्रतिरोधी किस्मों जैसे मास्टर ओसेना, एवांस, जैनवान, आर्ली विन्टरस, एडमस हेड, और ओलीम्पस आदि के प्रयोग करें।
-कार्बेन्डाजिम (0.5 प्रतिशत सान्द्रता) का प्रयोग बुवाई के पहले नर्सरी में करने से रोग की सघनता को घटाया जा सकता है।
-मृदा को मई-जून के महीने में पॉलीथिन से ढक करके उपचारित करें।
-ट्राइकोडरमा विरिडी या ट्राइकोडरमा हारजीएनम 2-5 कि.ग्रा. का प्रयोग 20-50 कि.ग्रा, गोबर की खाद में मिलाकर भूमि में उपचारित करने से रोगकारक के प्रभाव कम होता है तथा पैदावार बढ़ जाती है।
-कार्बेन्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का घोल बनाकर फसलों पर छिडकाव करें।
एल्टरनेरिया पर्ण चित्ती
एल्टरनेरिया पर्ण चित्ती रोग एल्टरनेरिया की तीन प्रजातियों ए. ब्रेसिसीकोला ए. ब्रेसिकी तथा ए. रफेनी नामक कवकों से होता है। रोपण क्यारी में पौध के तने तथा पत्तियों पर छोटे, गहरे रंग की चित्तियां दिखाई देती हैं, जिससे पौध में क्लेद गलन या पौध छोटी रह जाती है। बड़े पौधों में भूमि के सभी ऊपरी भाग इस रोग से संक्रमित होते हैं। पत्तियों पर छोटे, भूरे रंग की चित्तियां दिखाई देती हैं, जो बढकर संकेन्द्री वलय बन जाती हैं। यह इस रोग का मुख्य लक्षण है। प्रत्येक पर्णचित्ती एक पीले हरिमाहीन ऊतक से घिरी होती है। फूलगोभी तथा ब्रोकली के हेड भूरे हो जाते हैं जो कि सामान्यत: अकेले या फूल के गुच्छों के किनारे से शुरू होता है। जो पौधे बीज उत्पादन के लिए उगाए जाते हैं उनके मुख्य अक्ष, पुष्पक्रम, शाखाओं तथा फलियों पर गहरे ऊतकक्षयी विक्षत दिखाई देती है।
प्रबंधन
-विभिन्न कर्षण क्रियाओं जैसे स्वस्थ, साफ बीजों का चुनाव, लम्बे समय का फसल-चक्र, खेत की सफाई, खरपतवारों का नियंत्रण, उचित दूरी पर पौधों का रोपण, सन्तुलित खादों तथा उर्वरकों का प्रयोग तथा उचित जल निकास से रोग के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
-फूलगोभी तथा सफेद पत्तागोभी के बीजों का उपचार गरम जल (45 डिग्री सेल्सियस पर 20-30 मिनट के लिए) उपचारित करने से ए. ब्रेसिकी को नियंत्रित किया जा सकता है। बीज को थीरम (0.2 प्रतिशत) के घोल में डुबायें। बीजों को आइप्रोडियान (1.25 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर) से उपचारित करें। बीजों को जैविक विधि जैसे ग्लियोक्लेडियम विरेन्स-61, ट्राइकोडरमा ग्रीसीओवीरिडीस (4-5 ग्रा./कि.ग्रा. बीज) नामक कवकों से उपचारित करें।
-अल्टरनेरिया रोग प्रतिरोधी किस्में बहुत कम हैं। फिर भी फूलगोभी किस्म पूसा सुभ्रा तथा ब्रुसेल्स स्प्राउट्स की किस्म केम्ब्रीज नम्बर-5, ए. ब्रेसिकी, ए. ब्रेसिसीकोला रोग प्रतिरोधी हैं।
-डाइथेन एम-45 (0.25 प्रतिशत) का घोल बनाकर फसलों पर छिडकाव करने पर अल्टरनेरिया अंगमारी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। इसके अलावा थीरम + बेनोमिल या एकान्तर में मैन्कोजेब + कीटनाशक प्रयोग करने से रोग की रोकथाम हो जाती है। इप्रोडियान (0.5-1 किग्रा/हेक्टेयर की दर) के तीन छिडकाव 21 दिन के अंतराल पर करें। मैन्कोजेब, जीरम तथा जीनेब का तीन छिडकाव करने पर ए. ब्रेसिसीकोला पत्तागोभी की पर्ण चित्ती रोग से बचाया जा सकता है।
-मैन्कोजेब (0.2 प्रतिशत) या फालपेट (0.2 प्रतिशत) कटाई के पहले छिडकाव करने पर पत्तागोभी के हेड्स को भण्डारण के दौरान ए. ब्रेसिकी गलन से बचाया जा सकता है।
-इप्रोडियोन का टाल्क पाउडर के साथ मिश्रण में डुबोकर पत्तागोभी के भण्डारण गलन का प्रभावी ढंग से नियंत्रण किया जा सकता है।
काला विगलन
काला विगलन रोग जैन्थोमोनास कस्प्रेस्ट्रिस पैथोवार कस्प्रेस्ट्रिस नामक जीवाणु से होता है। इस रोग से पौधे, पौध से लेकर परिपक्व अवस्था तक प्रभावित हो सकते हैं। नई पौध की निचली या बीजपत्रों पर ऊतकक्षयी विक्षतियां पायी जाती हैं, जो काली दिखती हैं। पत्तियां मर कर अंत में गिर जाती हैं। इस रोग से प्रभावित पत्तियां किनारे से पीली होकर मुरझाने लगती हैं। रोग का विस्तार ऊतकक्षयी विक्षति पत्ती के किनारे से शुरू होकर मध्य शिरा की तरफ बढ़ती है जो अंग्रेजी के अक्षर ह्यङ्कह्ण के समान दिखाई देती हैं। ऊतकक्षयी भाग में शिराएं भूरे से काले रंग की हो जाती हैं। रोगी पौधे के तने का संवहनी भाग काला हो जाता है। फूलगोभी तथा पत्तागोभी का ऊपरी हिस्सा (कर्ड) काला और मुलायम होकर सड?े लगता है।
प्रबंधन
-खेत से खरपतवारों तथा संक्रमित पौध मलबे को इक_ा करके नष्ट करें।
-जीवाणु एक वर्ष तक मृदा में जीवित रह सकता है। गोभीवर्गीय फसलों के अतिरिक्त दूसरी फसलों को फसल-चक्र में शामिल करें। यह फसल-चक्र कम से कम 2 वर्ष का हो।
-बीजों को गरम जल (50 डिग्री सेल्सियस पर 25-30 मिनट तक) से उपचारित करें। बीजों को जीवाणुनाशकों जैसे स्ट्रेप्टोमाइसिन, औरियोमाइसिन से उपचारित करने के बाद सोडियम हाइपोक्लोराइट से भी उपचारित करें। इसके अतिरिक्त बीजों को कैल्सियम हाइपोक्लोराइट (10-20 ग्राम / किग्रा. की दर से) उपचारित करें। स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (100 मि.ग्रा. / ली. पानी)+कैप्टान (3 ग्रा./लीटर पानी) के घोल में बीज को डुबोकर उपचारित करें।
-बुवाई के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।
-मृदा में ब्लीचिंग पाउडर (10-12.5 किग्रा/हेक्टेयर दर से) को तरल रूप में मिलाने से लाभ होता है।