Wednesday, July 3, 2024
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भगवान विष्णु के द्वितीय अवतार कूर्मावतार

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पौराणिक कथानुसार कूर्म अर्थात कच्छप अवतार में श्रीविष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की। इस समय विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था। भगवान विष्णु के प्रसिद्ध दस अवतारों में द्वितीय अवतार और चौबीस अवतारों में ग्यारहवें अवतार कूर्म अवतार हैं।

विष्णु के कूर्म अवतार को कच्छप अवतार भी कहते हैं। कूर्म अवतार की पौराणिक कथा के अनुसार महाप्रलय के कारण पृथ्वी की सम्पदा जलाशाय़ी हो जाने के कारण भगवान विष्णु ने कूर्म अर्थात कछुए का अवतार ग्रहण कर सागर मंथन के समय पृथ्वी की जलाशाय़ी सम्पदा को निकलवाया था। पाश्चात्य वैज्ञानिकों के अनुसार भी हिमयुग अर्थात आईस ऐज के बाद सृष्टि का पुनर्निर्माण हुआ था। पौराणिक सागर मंथन की कथानुसार सुमेरु पर्वत को सागर मंथन के लिये इस्तेमाल किया गया था। माऊंट ऐवरेस्ट का ही भारतीय नाम सुमेरू पर्वत है तथा नेपाल में उसे सागर मत्था कहा जाता है।

जलमग्न पृथ्वी से सर्वप्रथम सबसे ऊंची चोटी ही बाहर प्रगट हुई होगी। यह तो वैज्ञानिक तथ्य है कि सभी जीव जन्तु और पदार्थ सागर से ही निकले हैं। भारतीय संस्कृति में अवतारवाद की व्याख्या कई प्रकार से की गई हैं। उनमें पस्पर समानताएँ, विषमताएँ और विरोधाभास भी है। एक मत के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतार की कथाएं सृष्टि की जन्म प्रक्रिया को दशार्ते हैं। इस मतानुसार जल से ही सभी जीवों की उत्पति हुई।

इसलिए भगवान विष्णु सर्वप्रथम जल के अन्दर मत्स्य रूप में प्रगट हुए। फिर कूर्म बने। तत्पश्चात वराह रूप में जल तथा पृथ्वी दोनों का जीव बने। नरसिंह, आधा पशु- आधा मानव, पशु योनि से मानव योनि में परिवर्तन का जीव है। वामन अवतार बौना शरीर है, तो परशुराम एक बलिष्ठ ब्रह्मचारी का स्वरूप है, जो राम अवतार से गृहस्थ जीवन में स्थानांतरित हो जाता है। कृष्ण अवतार एक वानप्रस्थ योगी, और बुद्ध पर्यावरण के रक्षक हैं। पर्यावरण के मानवी हनन की दशा सृष्टि को विनाश की ओर धकेल देगी।

अत: विनाश निवारण के लिए कलंकि अवतार की भविष्यवाणी पौराणिक ग्रन्थों में पूर्व से की गई है। एक अन्य मतानुसार दस अवतार मानव जीवन के विभिन्न पड़ावों को दशार्ते हैं। मत्स्य अवतार शुक्राणु है, कूर्म भ्रूण, वराह गर्भ स्थति में बच्चे का वातावरण, तथा नर-सिंह नवजात शिशु है। आरम्भ में मानव भी पशु जैसा ही होता है। वामन बचपन की अवस्था है, परशुराम ब्रह्मचारी, राम युवा गृहस्थी, कृष्ण वानप्रस्थ योगी तथा बुद्ध वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलंकि मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म की अवस्था है।

पौराणिक कथानुसार कूर्म अर्थात कच्छप अवतार में श्रीविष्णु ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन के समय मंदर पर्वत को अपने कवच पर संभाला था। भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि नामक सर्प की सहायता से देवों एंव असुरों ने समुद्र मंथन करके चौदह रत्नों की प्राप्ति की। इस समय विष्णु ने मोहिनी रूप भी धारण किया था। मान्यता के अनुसार प्रजापति ने सन्तति प्रजनन के अभिप्राय से कूर्म का रूप धारण किया था।

पद्म पुराण की कथा के अनुसार इनकी पीठ का घेरा एक लाख योजन का था। कूर्म की पीठ पर मन्दराचल पर्वत स्थापित करने से ही समुद्र मंथन सम्भव हो सका था। कूर्मावतार नृसिंह पुराण के अनुसार द्वितीय तथा भागवत पुराण 1-3-16 के अनुसार ग्यारहवें अवतार माने गए हैं। शतपथ ब्राह्मण 7-5-1-5-10, महाभारत आदि पर्व, 16 तथा पद्मपुराण उत्तराखंड, 259 में उल्लिखित विवरणानुसार संतति प्रजनन हेतु प्रजापति, कच्छप का रूप धारण कर पानी में संचरण करते हैं। लिंग पुराण 94 के अनुसार पृथ्वी रसातल को जा रही थी, तब विष्णु ने कच्छप रूप में अवतार लिया।

पद्मपुराण ब्रह्मखड, 8 के अनुसार इंद्र ने दुवार्सा द्वारा प्रदत्त पारिजातक माला का अपमान किया, तो कुपित होकर दुवार्सा ने इंद्र के समस्त वैभव के नष्ट होने का शाप दिया। परिणामस्वरूप लक्ष्मी समुद्र में लुप्त हो गई। तत्पश्चात विष्णु के आदेशानुसार देवताओं तथा दैत्यों ने लक्ष्मी को पुन: प्राप्त करने के लिए मंदराचल की मथानी तथा वासुकि की डोर बनाकर क्षीरसागर का मंथन किया। मंथन करते समय मंदराचल रसातल को जाने लगा, तो विष्णु ने कच्छप के रूप में अपनी पीठ पर धारण किया और देव-दानवों ने समुद्र से अमृत एवं लक्ष्मी सहित चौदह रत्नों की प्राप्ति करके पूर्ववत वैभव संपादित किया।

मान्यता है कि इस लोक में एकादशी का उपवास, व्रत कच्छपावतार के बाद ही प्रचलित हुआ। कूर्म पुराण में विष्णु ने अपने कच्छपावतार में ऋषियों से जीवन के चार लक्ष्यों -धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष का वर्णन किया था। दशावतार से सम्बन्धित कूर्म पुराण नामक सत्रह हजार श्लोकों का एक पृथक पुराण भी प्रचलन में है, जिसमें कूर्म और अन्य अवतारों से सम्बन्धित विस्तृत विवरण अंकित हैं। महापुराणों की सूची में पंद्रहवें पुराण के रूप में परिगणित कूर्मपुराण का विष्णु भक्तों में विशेष महत्व है।

शैव और वैष्णव भक्तों में समान रूप से विशेष महत्व रखने वाले इस कूर्म पुराण को भगवान कूर्म ने राजा इन्द्रद्युम्न को सुनाया था। पुन: भगवान कूर्म ने उसी कथानक को समुद्र मंथन के समय इन्द्रादि देवताओं तथा नारद आदि ऋषिगणों से कहा। तीसरी बार नैमिषारण्य के द्वादश वर्षीय महासत्र के अवसर पर रोमहर्षण सूत के द्वारा इस पवित्र पुराण को सुनने का सैभाग्य अट्ठासी हजार ऋषियों को प्राप्त हुआ। भगवान कूर्म के द्वारा कहे जाने के कारण ही कूर्म पुराण के नाम से विख्यात इस पुराण में विष्णु और शिव की अभिन्नता कही गयी है।

कूर्म पुराण के साथ ही विष्णु के कूर्मावतार से सम्बन्धित विस्तृत विवरणी महाभारत आदि पर्व, भागवत पुराण, विष्णु पुराण, पद्म पुराण, लिंग पुराण आदि में भी प्राप्य हैं। पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार जब मंदराचल पर्वत हिलता तो भगवान कूर्म की एक लाख योजन के विशाल पीठ पर ऐसा लगता मानो कुजली चल रही हो। ब्रह्मा स्वयं भी देवता और असुरों के साथ रस्सी बने वासुकि नाग को पकड़ कर मथने लगे। भगवान के इस लीलामय रूप और देवगणों के पुष्पवृष्टि और स्तुति के मध्य समुद्र मंथन से कामधेनु, अपने हाथों में कलश लिए धन्वतरि, लक्ष्मी आदि प्रकट हुए।

                                                                                                                  अशोक ‘प्रवृद्ध’


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