हमारे लोकतंत्र का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है। अजय कुमार मिश्र जिनके हिंसा भड़काने वाले बयान एवं गतिविधियां चर्चा में हैं, कोई सामान्य व्यक्ति नहीं हैं। वे देश के गृह राज्य मंत्री हैं। उन पर देश में संविधान एवं कानून का राज्य बनाए रखने की जिम्मेदारी है-शांति-व्यवस्था बनाए रखने का उत्तरदायित्व है। यह तभी संभव है जब वे अराजकता का विरोध करें, अहिंसा का आश्रय लें, यह समझें कि विरोध और असहमति लोकतांत्रिक समाज के जीवित-जाग्रत होने का प्रमाण हैं। प्रदर्शनरत किसान उनके शत्रु नहीं हैं न ही उनका विरोध व्यक्तिगत है। वे उस राजनीतिक दल एवं सरकार का विरोध कर रहे हैं जिसका मिश्र एक महत्वपूर्ण अंग हैं। जब देश का शासन चला रहे महानुभावों में से अधिसंख्य सरकार की नीतियों के विरोध को व्यक्तिगत शत्रुता का रूप देने लगें तथा प्रतिशोधी एवं भड़काऊ बयान देकर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से असहमत स्वरों के विरुद्ध हिंसा के लिए अपने समर्थकों को उकसाने लगें तो देश की जनता का चिंतित एवं भयभीत होना स्वाभाविक है। अजय कुमार मिश्र के आचरण को एक अपवाद नहीं माना जा सकता।
वे केंद्र और भाजपा शासित राज्यों के नेताओं की उस परंपरा का एक हिस्सा हैं जिसमें ‘पश्चाताप रहित आक्रामक एवं हिंसक बयानबाजी’ को एक प्रशंसनीय गुण माना जाता है।
अब तक यह बयानबाजी साम्प्रदायिक विद्वेष से प्रेरित हुआ करती थी किंतु अब इस प्रवृत्ति का विस्तार हुआ है और आंदोलनकारी किसान इन जहरीले बयानों का निशाना बने हैं।
जुलाई 2021 में केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी ने किसानों को मवाली कहा था। केंद्रीय राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने मार्च 2021 में बयान दिया था कि किसान वो दिन याद करें जब गन्ने की पैमेंट के लिए कांग्रेस ने किसानों को घोड़ों के पैरों तले कुचलवाया था।
इससे पूर्व दिसंबर 2020 में केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने कहा था कि किसान आंदोलन में प्रदर्शन कर रहे कई लोग किसान नहीं दिखते हैं।
यह किसान नहीं है जिन्हें कृषि कानूनों से कोई समस्या है, बल्कि वो दूसरे लोग हैं। विपक्ष के अलावा, कमीशन पाने वाले लोग इस विरोध के पीछे हैं। यह बयान उत्तरोत्तर हिंसक होते गए हैं।
पंजाब बीजेपी के प्रवक्ता हरिमंदर सिंह ने 15 सितंबर 2021 को कहा कि अगर मुझे किसानों से बात करने के लिए बोला जाता तो मैं मार-मार के पैर तोड़ देता और जेल में बंद करवा देता।
इस कड़ी का नवीनतम एवं सर्वाधिक चिंता तथा भय उत्पन्न करने वाला बयान हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा दिया गया है।
सोशल मीडिया एवं अन्य समाचार माध्यमों में दिखाए जा रहे वीडियो के अनुसार खट्टर कह रहे हैं- ‘दक्षिण हरियाणा में समस्या ज्यादा नहीं है, मगर उत्तर-पश्चिम हरियाणा के हर जिले में है।
अपने किसानों के 500-700-1000 लोग आप अपने खड़े करो। उन्हें वालंटियर बनाओ और फिर जगह-जगह ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’! क्या मतलब होता है इसका?
क्या अर्थ होता है इसका? कौन बताएगा? अंग्रेजी में बता दिया! हिंदी में बताओ! ‘जैसे को तैसा’ उठा लो डंडे! हां ठीक है, (पीछे से स्वर आता है कि बचा लोगे, जमानत करवा लोगे)।
वह देख लेंगे और दूसरी बात यह है जब डंडे उठाएंगे डंडे तो जेल जाने की परवाह ना करो! महीना-दो महीने रह आओगे तो इतनी पढ़ाई हो जाएगी जो इन मीटिंग में नहीं होगी!
अगर 2-4 महीने रह आओगे तो बड़े नेता अपने आप बन जाओगे! (हंसने की आवाजें आती हैं)। बड़े नेता अपने आप बन जाओगे चिंता मत करो, इतिहास में नाम अपने आप लिखा जाता है!’ यह बयान अक्टूबर 2021 का है।
इससे पहले अगस्त 2021 में करनाल में किसानों पर हुए बर्बर लाठी चार्ज के ठीक पहले का एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें एसडीएम आयुष सिन्हा ने साफ तौर पर सिपाहियों से कहा था कि यह बहुत सिंपल और स्पष्ट है। कोई कहीं से हो, उसके आगे नहीं जाएगा। अगर जाता है तो लाठी से उसका सिर फोड़ देना।
कोई निर्देश या डायरेक्शन की जरूरत नहीं है। उठा-उठा कर मारना। तब भी हरियाणा के मुख्यमंत्री पुलिस की बर्बर कार्रवाई और अधिकारी के निर्णय से सहमत नजर आए थे। उन्होंने कहा था-शब्दों का चयन ठीक नहीं था। हालांकि कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सख्ती जरूरी थी।
इन बयानों के परिप्रेक्ष्य में ही आशीष मिश्रा या उस जैसे किसी युवक के हिंसक पागलपन को देखा जाना चाहिए। इस नौजवान के मन में इतना जहर भरा जा चुका है कि गुस्से, भय,नफरत और हिंसा के अतिरिक्त उसे और कुछ नहीं सूझता। उसके अपने क्षेत्र के परिचित लोग उसे शत्रु की भांति लगते हैं।
वह सत्ता के संरक्षण को लेकर आश्वस्त है। शायद उसके मन में यह आशा भी हो कि वह नायक बन जाएगा और उसे पुरस्कृत किया जाएगा। इस घातक मनोदशा में वह जघन्यतम अपराध करने की ओर अग्रसर होता है। यह भी संभव है कि उसके मन में कोई पश्चाताप न हो।
हो तो यह भी सकता है कि सोशल मीडिया में सक्रिय हिंसा और घृणा के पुजारी इस लड़के की कायरता को वीरता का दर्जा दें और अन्य नवयुवकों को इसके अनुकरण की सलाह दें।
इस जघन्य वारदात की पटकथा तब से ही रची जाने लगी होगी जब किसानों को पाकिस्तान परस्त, खालिस्तानी, विलासी, आम टैक्स पेयर के पैसे से ऐश करने वाला सब्सिडीजीवी, अराजक, हिंसक एवं राजनीतिक दलों का पिट्ठू ठहराने वाली झूठ से भरी पहली जहरीली पोस्ट सोशल मीडिया में फैलाई गई होगी।
यह पटकथा तब और पुख्ता हो गई होगी जब किसी वायरल पोस्ट के माध्यम से सरकार की गलत नीतियों के कारण बेरोजगारी और गरीबी की मार झेल रहे नौजवानों को यह विश्वास दिलाया गया होगा कि उनकी दुर्दशा के लिए अल्पसंख्यकों के बाद जिम्मेदार किसान ही हैं।
सत्ताएं असहमत स्वरों को कुचलने के लिए अनेक रणनीतियां अपनातीं हैं। इनमें से सर्वाधिक घातक है-राज्य पोषित हिंसा। कानूनी प्रावधानों के दुरुपयोग और पुलिसिया दमन के लिए राज्य को प्रत्यक्ष रूप से कटघरे में खड़ा किया जा सकता है, अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं और विश्व जनमत उस पर लोकतंत्र एवं मानवाधिकारों की रक्षा के लिए दबाव बना सकते हैं।
किंतु राज्य पोषित हिंसा से स्वयं को अलग कर लेना राज्य के लिए बहुत आसान होता है। अब भी सरकार की यही रणनीति है।
सरकार यह जाहिर करने का प्रयास करेगी कि वह तो असीम धैर्य से अराजक किसानों की हठधर्मिता को झेल रही थी किंतु जनता का धैर्य जवाब दे गया और उसने किसानों को सबक सिखाने का फैसला किया।
आने वाला समय किसान आंदोलन के नेतृत्व के लिए कठिन परीक्षा का है। उकसाने वाली हर कार्रवाई के बाद भी उसे आंदोलन को अहिंसक बनाए रखना होगा। किसान नेताओं को जनता को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि वे हर प्रकार की हिंसा के विरुद्ध हैं।