Friday, June 20, 2025
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सांगठनिक कौशल भाजपा से सीखें

Samvad


snehveer pundirलोकसभा चुनाव 2024 के लिए माहौल लगभग तैयार हो चुका है। सभी राजनीतिक दल अपनी अपनी तैयारियों में लग चुके हैं। जहां नरेंद्र मोदी के भारतीय राजनीति में उभार के बाद गठबंधन राजनीति लगभग नेपथ्य में चली गई थी, अब वह दुबारा से राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य में उभरकर आ रही है। विपक्ष प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त सफलता से घबराकर अपने आपसी मतभेदों को भुलाकर एकजुट होने की कोशिश शुरू कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप इंडिया नामक गठबंधन की रूपरेखा लगभग तैयार कर ली गई है। वहीं प्रधानमन्त्री मोदी ने भी इस गंठबंधन की चुनौती को गंभीरता से लेकर अपने साथी दलों के साथ एनडीए को मजबूत करना शुरू कर दिया है। दोनों तरफ की तैयारियों को देखकर लग रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष बीजेपी को मजबूत चुनौती देने की कोशिश में लग गया है।

कांग्रेसी खेमे में एक तरफ जहां नीतीश कुमार, अरविंद केजरीवाल और ममता बैनर्जी जैसे राजनीति के मंझे हुए खिलाडी अबकी बार जोड़तोड़ में लग गए हैं, वहीं कांग्रेस की तरफ से आया यह बयान कि प्रधानमंत्री पद के लिए उनकी कोई जिद नहीं है, बेहद महत्वपूर्ण माना जा सकता है। इस बयान का राजनीतिक निहितार्थ यह है कि कांग्रेस को यह अच्छी तरह समझ में आ गया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की बीजेपी सरकार को सत्ता से हटा पाना इतना आसान खेल नहीं है।

इसलिए वह बीजेपी सरकार को पटकनी देने के लिए कोई भी त्याग करने को तैयार है। राज्यों की राजनीति पर नजर डालने पर भी दोनों खेमों में मजबूत चुनाव की संभावनाएं नजर आती हैं। निसंदेह राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा से अपनी छवि को जबरदस्त तरीके से सुधारा है। इसी के साथ साथ जहां इन पूरे दोनों कार्यकाल में भाजपा सरकार मीडिया और सोशल मीडिया के क्षेत्र में कांग्रेसी खेमे पर पूरी तरह भारी पड़ी है।

अगर कहा जाए कि सोशल मीडिया का राजनीति में किस प्रकार पूरा इस्तेमाल किया जा सकता है, यह मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने ही सिद्ध करके दिखाया है, तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। लेकिन अब 2024 के लिए कमर कस चुकी कांग्रेस भी सोशल मीडिया पर भाजपा को मजबूत तरीके से जवाब देती हुई दिखाई देती है।

कांग्रेसी खेमे को यह बात अच्छी तरह से समझ आ गई है कि सोशल मीडिया के जमाने में हमें मोदी की ही तरह इस साधन का इस्तेमाल खुद की छवि के लिए करना होगा। ‘इंडिया’ नाम के विपक्षी संगठन में बहुजन समाज पार्टी के अलावा लगभग सभी बड़े दल शामिल होते हुए दिखाई पड़ रहे हैं। लेकिन अभी भी एक महत्वपूर्ण बात है, जिसे विपक्ष और मुख्यत: कांग्रेस नजरअंदाज कर रहे हैं, और वह मोदी और भाजपा का सांगठनिक कौशल है।

अपनी तमाम आलोचनाओं के बावजूद भी मोदी अपनी सांगठनिक क्षमताओं में पूरे विपक्ष पर भारी पड़ते दिखाई दिए हैं। ‘इंडिया’ अभी तक भी पूरी तरह एकजुट दिखाई नहीं दे रहा है। जिसका उदाहरण शरद पंवार के व्यवहार से देखा जा सकता है। जहां वह ‘इंडिया’ गठबंधन का एक हिस्सा हैं, वहीं तमाम चर्चाओं के बाद भी वह प्रधानमंत्री से पुरस्कार लेते दिखाई देते हैं। ऐसा बिलकुल भी नहीं माना जा सकता है कि विपक्षी गंठबंधन ‘इंडिया’ ने उन्हें रोकने का प्रयास नहीं किया होगा।

इन तमाम झंझावातों के बीच ही विपक्ष को संगठन के मामले में भाजपा से सीख लेनी होगी। जहां इस गठबंधन की मुख्य दल कांग्रेस हिंदी प्रदेशों के जिलों में भी एक मजबूत और जिम्मेदार संगठन खड़ा करने में असफल रही है, वहीं भाजपा ने बूथ स्तर तक अपना मजबूत संगठन खड़ा किया है। न केवल बूथ स्तर तक बल्कि देश की राजनीति में पहली बार पन्ना प्रमुख नामक पद भाजपा ने ही पैदा करके दिखाया है। कांग्रेस और उसके साथी विपक्षी दलों को वहां तक पहुंचने में अभी समय लगेगा।

राजनीतिक विचारकों का मानना है कि जब कोई भी राजनीतिक दल सत्ता में होता है, तो वह चापलूस और चाटुकार नेताओं को ही दल और संगठन में तरजीह देता दिखाई देता है। लेकिन जब दल सत्ता में नहीं होगा और उसे खुद अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष की आवश्यकता होती है, तब ये बौने और बेईमान नेता उसके लिए कोई संघर्ष खड़ा नहीं कर पाते हैं।

जो अंतत: उस दल, जनता और लोकतंत्र के लिए बुरा साबित होता है, क्योंकि किसी भी लोकतंत्र को इतना ही मजबूत और उन्नत माना जा सकता है जितना उसमे विपक्ष मजबूत होता है। अर्थात संगठन किसी भी राजनीतिक दल की नींव होता है। अगर किसी भी राजनीतिक दल का संगठन कमजोर होता है तो वह दल ज्यादा दिन तक मजबूत नहीं रह पाता है।

बहुजन समाज पार्टी इसका बड़ा उदाहरण है। बामसेफ बहुजन समाज पार्टी को खड़ा करने वाला कैडर था। मायावती ने सत्ता में आते ही बामसेफ के महत्व को तो भुलाया ही बल्कि बसपा के संगठन को भी बहुत मजबूत नहीं कर पाई। इसी के साथ साथ समाजवादी पार्टी के उदाहरण को भी देखा जा सकता है।

सरकार में आकर अखिलेश यादव ने केवल सरकार चलाने का ही कार्य किया, उन्होंने दलीय संगठन को मजबूत और वैचारिक बनाने के लिए कोई प्रयास ही नही किये। परिणामस्वरूप देखा जा सकता है कि मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली सपा और अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा में जमीन आसमान का अंतर दिखाई पड़ता है।
संगठन को मजबूत ना करने की भूल कांग्रेस पहले ही कर चुकी है।

यह तर्क बिलकुल भी नहीं माना जा सकता कि चूंकि भाजपा सरकार में है इसलिए ही उसका संगठन मजबूत दिखाई देता है। उसने सत्ता में रहते हुए केवल सत्ता सुख पर ही ध्यान नहीं दिया बल्कि अपने संगठन को लगातार वैचारिक और संसाधनों के स्तर पर मजबूत करने का कार्य किया है। जबकि सत्ता में रहते हुए भी कांग्रेस इस कार्य को बिलकुल भी नहीं कर सकी थी।

देश ने जहां मोदी को दो बार सत्ता में रहने का अवसर दिया वहीं मनमोहन सिंह को भी दो बार सत्ता सौंपी। लेकिन कांग्रेस के नेता सत्ता में रहते हुए केवल सत्तासुख ही भोगते रहे। उन्होंने अपने संगठन पर वैचारिक कार्य तो किया ही नहीं, संसाधनों के स्तर पर भी कोई कार्य नहीं किया गया।

जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी, तब भी देश के सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस का संगठन मृतप्राय ही रहा। सत्ता में बैठे लोगों को यह ध्यान ही नहीं था कि जब सत्ता नहीं होगी तो सड़क पर संघर्ष और दल को मजबूत करने का कार्य एक मजबूत और जमीनी संगठन ही कर सकता है।

अभी तक भी इंडिया नामक गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस संगठन को वैचारिक और जमीनी स्तर तक ले जाने में सफल नही हुई है। जिसके लिए कांग्रेस संगठन को नि:संदेह भाजपा से सीखना चाहिए। कांग्रेस और पूरे विपक्ष को यह अच्छे से समझ लेना होगा कि संगठन को मजबूत किए बिना सत्ता की सीढ़ी नहीं चढ़ी जा सकती।


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