सभी मौसमों का शरीर पर निरंतर प्रभाव पड़ता है। वातावरण के दूषित पदार्थ एवं विषैले पदार्थ शरीर के अन्दर निरंतर प्रवेश करते रहते हैं। इनका प्रभाव गर्मी में कुछ ज्यादा ही होता है क्योंकि ग्रीष्मऋतु में सूर्य की किरणें तेज होने की वजह से प्राणियों में रूक्षता (सूखापन) बढ़ जाती है जिससे शरीर में बल कम हो जाता है और भोजन पचने की शक्ति क्षीण हो जाती है। इन दिनों जलीय पदार्थ अधिक लेने से भी शरीर की पाचन शक्ति कम हो जाती है तथा शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा का निर्माण भी कम होता है जिसकी वजह से इस मौसम में रोग अधिक होते हैं।
आयुर्वेद विज्ञान एक प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान है जो ग्रीष्म ऋतु के रोगों को प्रकृति-प्रदत्त सुलभ साधनों का प्रयोग कर समूल नष्ट करने का उपाय बताता है। यह चिकित्सा पद्धति आहार-विहार द्वारा भी रोगों को दूर करने का उपाय बताती है। आयुर्वेदिक औषधियां अन्य रोगों को उत्पन्न नहीं करती। गर्मी के रोगों पर आयुर्वेदिक उपचार द्वारा काबू पाया जा सकता है।
अतिसार या दस्त लगना
गर्मी के दिनों में सभी उम्र के लोगों को प्राय: दस्त की शिकायत हो जाती है। खासकर बच्चे दस्त या अतिसार से अधिक परेशान रहते हैं। जब दस्त अधिक होने लगते हैं तो शरीर का जलीय अंश अधिक निकलने के कारण वह कालरा का रूप धारण कर लेता है। बार-बार पतले दस्त आने से रोगी को पेटदर्द, चक्कर आना तथा बेहोशी की शिकायत हो जाती है। आमतौर पर डायरिया दो कारणों से होता है, पहला खानपान में हुई गड़बड़ी से और दूसरा कॉलरा (हैजा) के बैक्टीरिया संक्र मण से।
बचाव: डायरिया से बचने के लिए स्वच्छ पानी का ही इस्तेमाल करना चाहिए। संक्र मण युक्त गंदा पानी इसका प्रथम कारक होता है। बाजार में मिलने वाले कटे फल, जूस, गन्ने का रस, चाट, खुला खाना आदि लेने से बचना चाहिए क्योंकि इन पर धूल, मक्खियों का प्रकोप निरन्तर होता रहता है और बीमारी के पनपने में ये सहायक होते हैं। गर्मी के मौसम में जहां तक संभव हो, खाना सादा और हल्का ही लेना हितकर होता है। इस मौसम के लिए खिचड़ी, दलिया, दही आदि बेहतर होता है।
अगर भोजन की गड़बड़ी से दस्त हो रहे हों तो रोगी को ठोस आहार जैसे रोटी, चावल, पूड़ी, हलुआ आदि बिलकुल नहीं देना चाहिए। भूख लगने पर खिचड़ी, मठ्ठा में भुना जीरा, नमक डालकर दाल का पानी, अनार का रस, नारियल का पानी आदि दिन में कई बार थोड़ी-थोड़ी मात्र में दिया जाते रहना चाहिए।
इसके अलावा संजीवनी वटी को एक चम्मच प्याज के रस के साथ वयस्कों को चार गोली दिन में तीन बार तथा बच्चों को दो गोली दिन में दो बार देने से लाभ होता है। बेल का शरबत या मठ्ठे के साथ बेल-चूर्ण तीन दिनों तक दिन में एक बार देते रहने से भी लाभ होता है। दाडि?ामाष्टक चूर्ण एक च?मच दिन में तीन बार वयस्कों को और बच्चों को आधा चम्मच की मात्र में मठ्ठे के साथ देकर अतिसार को दूर किया जा सकता है।
फोड़े-फुंसी, घमौरी
गर्मी के दिनों में पसीना आने पर अगर शरीर की अच्छी तरह सफाई नहीं होती तो शरीर के रोमछिद्र बंद हो जाते हैं और खुजली, चकत्ते तथा घमौरियां निकल आती हैं। इस वजह से त्वचा लाल हो जाती है तथा खुजली और जलन होने लगती है। साथ ही शरीर पर छोटे-छोटे दाने भी निकल आते हैं। रोज-रोज की खुजलाहट से ये दाने बड़े-बड़े होकर जलन देने लगते हैं।
बचाव: गर्मी के दिनों में प्रतिदिन कम से कम दो बार सुबह-शाम स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए। इन दिनों शरीर को अधिक समय तक खुला छोड़ना हितकर नहीं होता। इन दिनों पतला और सूती कपड़ा पहनना ठीक होता है। अगर शरीर पर फोड़े-फुंंसी या घमौरियां हो जाएं तो नीम की पत्तियों वाले उबले पानी से शरीर को दो-तीन बार तक धोना चाहिए। नीम का तेल फोड़े, फुंसी या चकत्ते पर लगाने से फायदा होता है।
प्रतिदिन 10-20 नीम की कोमल पत्तियां वयस्क तथा पांच पत्ती बच्चे को खिलाते रहने से भी लाभ होता है। त्रिफला चूर्ण, नीम-पत्ती चूर्ण एवं मुलैठी चूर्ण तीनों को एक-एक ग्राम की मात्र में लेकर दिन में तीन बार वयस्कों को तथा बच्चों को आधा चम्मच तीन खुराक देने से लाभ होता है।
लू लगना
लू का अर्थ होता है शरीर के अन्दर अधिक मात्र में गर्मी का प्रवेश करना। जब वातावरण मेंं तापमान की वृद्धि होती है तो शरीर की गर्मी भी बढ़ जाती है। इससे शरीर में स्थित पित्त की वृद्धि हो जाती है जिसकी वजह से व्यक्ति के शरीर में जलन, मुंह का सूखना, चक्कर आना, बार-बार प्यास लगना, बेचैनी महसूस होना आदि लक्षण शुरू हो जाते हैं। समुचित उपचार न होने पर रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
बचाव: एयरकंडीशन में रहने वाले जब धूप में निकलें तो उन्हें अपने सिर पर मोटा तौलिया अवश्य ही रख लेना चाहिए तथा घर से निकलने से पूर्व इच्छा भर पानी पी लेना चाहिए। हर दो घंटे पर पानी पीते रहना चाहिए। लू की चपेट में आने पर सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रखना हितकर होता है।
खीरे का बीज, गुलाब के फूल की पत्तियां और धनिया तीनों को एक-एक ग्राम की मात्र में लेकर पीसकर पानी में मिलाकर दिन में तीन बार तक पिलाते रहने से लू का प्रकोप कम होता है। दस से बीस ग्राम मुनक्का और खजूर को आधा किलो पानी में डालकर उबालें। जब पानी आधा बच जाए तो रोगी को पिला दें। नींबू पानी पिलाते रहने पर भी लू का प्रकोप दूर हो जाता है।
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