बैंगन का सब्जियों में प्रमुख स्थान है। यह हर तरह की पर्यावरणीय परिस्थितियों में और साल भर उगाई जाने वाली फसल है। आयुर्वेद के अनुसार यह यकृत समस्याओं को दूर करने में सहायक है। सफेद बैंगन मधुमेह के मरीजों के लिए लाभप्रद रहता है। इसमें विटामिन ए, बी व सी प्रचुर मात्रा में मिलते है। बैंगन की मांग अधिक रहने के कारण किसानों को इसका बाजार भाव ठीक मिल रहा है। बैंगन की खेती में किसानो को कई समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है जिससे की उपज में काफी हद तक कमी आती है।
बैंगन की फसल को कई प्रकार के रोग प्रभावित करते है जिससे की उपज में काफी कमी आती है। बैंगन की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग और उनकी रोकथाम के उपाय निम्नलिखित दिए गए है:
बैक्टीरियल विल्ट
बैक्टीरियल विल्ट से प्रभावित पौधों पर पहले लक्षण पत्तियों की सतह पर दिखाई देते हैं। पौधे का मुरझाना, बौनापन, पत्तियों का पीला पड़ना और अंत में पूरे पौधे का गिरना रोग के विशिष्ट लक्षण हैं। मुरझाने से पहले निचली पत्तियां पहले झुक सकती हैं। प्रभावित भागों से जीवाणु रिसाव निकलता है। दोपहर के समय पौधे में मुरझाने के लक्षण दिखते हैं, रात में ठीक हो जाते हैं, लेकिन इस रोग से संक्रमित पौधे जल्दी ही मर जाते हैं।
रोग के नियंत्रण उपाय : रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्म का उपयोग करें। फूलगोभी जैसी क्रूसिफेरस सब्जियों के साथ फसल चक्रण रोग की घटनाओं को कम करने में मदद करता है। खेतों को साफ रखना चाहिए और प्रभावित भागों को इकट्ठा करके जला देना चाहिए। रोग को नियंत्रित करने के लिए कॉपर फफूंदनाशकों (2 प्रतिशत बोर्डो मिश्रण) का छिड़काव करें। यह रोग रूट नॉट नेमाटोड की उपस्थिति में अधिक प्रचलित है, इसलिए इन नेमाटोड पर नियंत्रण रोग के प्रसार को रोक देगा।
अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग
इस रोग के प्रमुख लक्षण पत्ती पर हुए धब्बों में दरारें दिखना होता हैं। अल्टरनेरिया की दो प्रजातियां आम तौर पर पाई जाती हैं, जो संकेंद्रित छल्लों वाले विशिष्ट पत्ती के धब्बे बनाती हैं। धब्बे ज्यादातर अनियमित होते हैं, 4-8 मि.मी. व्यास के और पत्ती के ब्लेड के बड़े हिस्से को कवर करने के लिए मिल सकते हैं। गंभीर रूप से प्रभावित पत्तियां गिर सकती हैं। अल्टरनेरिया मेलोंगेने फलों को भी संक्रमित करता है जिससे बड़े गहरे धब्बे बनते हैं। संक्रमित फल पीले हो जाते हैं और समय से पहले गिर जाते हैं।
रोग के नियंत्रण उपाय : पंत सम्राट किस्म पत्ती धब्बा रोग के लिए प्रतिरोधी किस्म है, रोग प्रतिरोधक किस्मों को उगाकर नियंत्रित किया जा सकता है। प्रतिशत बोर्डो मिश्रण या 2 ग्राम कॉपर आॅक्सीक्लोराइड या 2.5 ग्राम जिÞनेब प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करने से पत्ती धब्बों पर प्रभावी नियंत्रण होता है।
तंबाकू मोजेक वायरस
रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियों पर मोजेक जैसा चित्तीदार दिखना और पौधों का बौना होना तंबाकू मोजेक वायरस के मुख्य लक्षण हैं। शुरूआती चरण में मोजेक लक्षण हल्के होते हैं, लेकिन बाद में ये गंभीर हो जाते हैं। संक्रमित पत्तियां विकृत, छोटी और चमड़े जैसी हो जाती हैं। संक्रमित पौधों पर बहुत कम फल लगते हैं। तंबाकू मोजेक वायरस का मुख्य लक्षण पत्तियों पर स्पष्ट चित्तीदारपन होता है। उन्नत अवस्था में पत्तियां फफोले भी विकसित करती हैं। गंभीर रूप से संक्रमित पत्तियां छोटी और विकृत हो जाती हैं। जो पौधे प्रारंभिक अवस्था में संक्रमित होते हैं, वे बौने रह जाते हैं। पोटैटो वायरस आसानी से सैप के माध्यम से फैलता है। खेत में यह वायरस एफिड्स जैसे अफिस गॉसिपी और मायजस पर्सिकी के माध्यम से फैलता है।
रोग के नियंत्रण उपाय : सभी खरपतवारों को नष्ट करें और बैंगन की नर्सरी और खेत के पास खीरा, मिर्च, तंबाकू, टमाटर न लगाएं। नर्सरी में काम करने से पहले साबुन और पानी से हाथ धोएं। बैंगन की पौध तैयार करते समय तंबाकू का सेवन (धूम्रपान या चबाना) करने से बचें। कीट वाहकों को नियंत्रित करने के लिए डाइमिथोएट (2 मि.ली./लीटर) या मेटासिस्टॉक्स (1 मि.ली./लीटर) पानी में मिलाकर स्प्रे करें।
फलों का सड़न
यह रोग जमीन के ऊपर के सभी पौध भागों को प्रभावित करता है। धब्बे आमतौर पर सबसे पहले अंकुर के तनों या पत्तियों पर दिखाई देते हैं। ये धब्बे अंकुर के तनों को घेर लेते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। पत्तियों पर धब्बे स्पष्ट रूप से परिभाषित, गोल, लगभग 1 इंच व्यास के होते हैं और भूरे से ग्रे रंग के होते हैं, जिनके किनारे गहरे भूरे रंग के होते हैं। फलों पर धब्बे आकार में बड़े होते हैं। संक्रमित फल पहले नरम और पानीदार हो जाते हैं, लेकिन बाद में काले और सूखे (ममीकृत) हो सकते हैं। धब्बे का केंद्र ग्रे हो जाता है और उस पर काले पाईसीनिडिया (फंगल संरचना) विकसित होते हैं।
रोग के नियंत्रण उपाय : बीजों को 50 डिग्र्री गर्म पानी में 30 मिनट तक डुबोना चाहिए। नर्सरी और खेत में 7-10 दिन के अंतराल पर डाइफोलेशन 0.2 प्रतिशत या कैप्टन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव रोग को नियंत्रित करता है। गहरी गर्मी में जुताई, तीन साल का फसल चक्र और संक्रमित पौध अवशेषों का संग्रह व नष्ट करना अन्य नियंत्रण विधियां हैं। खेत में फसल पर जिनेब 0.2 प्रतिशत या बोर्डो मिश्रण 0.8 प्रतिशत का छिड़काव फोमोप्सिस ब्लाइट को नियंत्रित करने में प्रभावी है।
छोटा पत्ता रोग
जैसे की इस रोग के नाम से पता लग रहा है इस रोग से संक्रमित पत्तियों का आकार छोटा हो जाता है। डंठल (पेटीओल) इतने छोटे होते हैं कि पत्तियां तने से चिपकी हुई प्रतीत होती हैं। संक्रमित पत्तियां संकरी, मुलायम, चिकनी और पीले रंग की होती हैं। नई विकसित पत्तियां और भी छोटी होती हैं। तने के इंटरनोड्स भी छोटे हो जाते हैं। अक्सिलरी (बगल की) कलियां बड़ी हो जाती हैं, लेकिन उनकी डंठल और पत्तियां छोटी रह जाती हैं। इससे पौधे को झाड़ी जैसा रूप मिलता है। अधिकतर मामलों में फूल नहीं आते, लेकिन यदि फूल बनते हैं, तो वे हरे ही रहते हैं। इस रोग में फल लगना दुर्लभ होता है।
रोग नियंत्रण उपाय : प्रभावित पौधों को नष्ट करके रोग की गंभीरता को कम किया जा सकता है। फसल की नई बुवाई तभी करें जब खेत और उसके आसपास के रोगग्रस्त पौधों को हटा दिया गया हो। कीट वाहकों के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित कीटनाशकों का छिड़काव करें:
मिथाइलडेमेटॉन 25 ईसी: 2 मि.ली./लीटर
डाइमिथोएट 30 ईसी: 2 मि.ली./लीटर
मेलाथियॉन 50 ईसी: 2 मि.ली./लीटर