Friday, July 5, 2024
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मणिपुर से मेवात तक

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Samvad


mahendra mishraपहले मणिपुर पर बात कर रहे थे अब मेवात और नूंह पर करिये। एक बड़े मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए उससे भी बड़ा मुद्दा पेश कर दीजिए। ये संघ-बीजेपी की पुरानी रणनीति रही है। एक बार फिर उसने उसे आजमाया है। मेवात पर आने से पहले बात मणिपुर पर। मणिपुर का चूंकि मैं दौरा करके लौटा हूं और मैंने उसके तमाम पहलुओं पर ‘जनचौक’ में रिपोर्ट किया है। लेकिन कुछ पहलू छूट गए हैं। वो बेहद महत्वपूर्ण हैं इसलिए उन पर बात करना जरूरी है। क्योंकि उनको लेकर नॉर्थ-ईस्ट के बाहर कई तरह के सवाल पूछे जा रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं कि यह गुजरात के आगे का प्रयोग है। यहां मैतेई और कुकी में कंप्लीट डिवीजन है। और यह संघर्ष तीन महीने हो गए अभी भी खत्म होता नजर नहीं आ रहा है। जबकि गुजरात में वह केवल तीन दिन चला था लेकिन ऐसा नहीं था कि हिंदू इलाके में कोई मुस्लिम नहीं घुस सकता था और मुस्लिम इलाके में कोई हिंदू।

लेकिन यहां दोनों समुदाय एक दूसरे के खून के प्यासे हैं। आज की ही खबर है कि मैतेई वर्चस्व वाले विष्णुपुर में कुकी संघर्ष में मारे गए अपने परिजनों के शव को दफनाना चाहते थे लेकिन मैतेइयों ने सड़क पर आ कर विरोध करना शुरू कर दिया और उनको तितर-बितर करने के लिए सुरक्षा बलों के जवानों को हवा में गोलियां चलानी पड़ीं।

मणिपुर के बारे में एक सवाल पूछा जा रहा है कि आखिर नॉर्थ-ईस्ट में एनडीए का समीकरण तो ठीक ही चल रहा था ऐसे में बीजेपी को इस तरह के किसी हिंसक ध्रुवीकरण में जाने की क्या जरूरत थी? पहली बात तो यह आकलन ही गलत है कि उत्तर-पूर्व में बीजेपी का सब कुछ ठीक चल रहा है।

दरअसल नौ सालों की केंद्रीय सत्ता में रहने के बाद एक सामान्य एंटी इंकबेंसी केंद्र के खिलाफ है। इसके अलावा जगह-जगह राज्यों में जो प्रायोजित गठबंधन के जरिये बीजेपी ने सरकारें बनायी हैं वह भविष्य के लिए बहुत मजबूत हैं या फिर उसके साथ स्थाई रूप से चलेंगी यह कह पाना मुश्किल है।

इसके साथ ही सूबों में भी बीजेपी की सरकारें तमाम तरह के झूठे-मूठे वादों और घोषणाओं पर बनी थीं लेकिन उनके न पूरा किए जाने पर जनता का गुस्सा स्वाभाविक तौर पर चुनाव में उसके खिलाफ जाएगा। मसलन मणिपुर में बीजेपी ने तो मैतेइयों का हिंदू के नाम पर वोट लिया।

लेकिन इसके साथ ही कुकियों से गृहमंत्री अमित शाह ने यह वादा कर कि चुनाव बाद उनकी अलग प्रशासनिक इकाई की मांग पर सकारात्मक तरीके से विचार किया जाएगा और इसके साथ ही चुनाव से ठीक पहले केंद्र सरकार से सरेंडर्ड अतिवादी तत्वों को अलग से पैसा देकर उनके वोट भी अपनी झोली में डाल लिए।

इस तरह से मैतेई और कुकी दोनों का पूरा का पूरा वोट बीजेपी के हिस्से में चला गया और पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ वहां सरकार बनायी। लेकिन समय के साथ न वादे पूरे किए गए और न ही उसकी कोई जरूरत समझी गयी। लिहाजा सूबे की बीरेन सिंह सरकार के खिलाफ अपने किस्म का विक्षोभ पैदा हो गया था।

बीजेपी को यहां एक स्थाई आधार की तलाश थी जो किसी राजनीतिक आंधी-तूफान में भी न डगमगाए। इस लिहाज से उसने असम, त्रिपुरा और मणिपुर को चुना है। और तीनों राज्यों में कमोबेश अपने किस्म के रजवाड़े या फिर एक दौर में सामंती शासन रहा है। जो एक तरह से हिंदू धर्म के करीब रहे हैं।

लिहाजा उन्हें अपनी विचारधारा के आधार पर गोलबंद करना बेहद आसान है। संघ-बीजेपी ने इन तीनों सूबों में यही किया। हिंदुओं-मुसलमानों के बीच ध्रुवीकरण कराकर असम में उसका फल चख रही है। जबकि त्रिपुरा में उसे दूसरी बार सत्ता हासिल करने में ज्यादा मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ा।

इस बात में कोई शक नहीं कि मणिपुर का पूरा मामला तात्कालिक तौर पर पीएम मोदी के खिलाफ जा रहा है। और अभी के हालात में मैतेई बीरेन सिंह के साथ हैं लेकिन मोदी के खिलाफ। सूबे में प्रशासन की नाकामी को मोदी से जोड़कर देखा रहा हैं जिसमें बीरेन के लिए यह एक सेफ्टीवाल्व बन गया है।

बीजेपी और मोदी के लिए मणिपुर एक बड़ा सवाल बन कर खड़ा हो गया है। यह बात दिन के उजाले की तरह साफ है कि बीरेन पूरी तरह से नाकाम रहे हैं। और इसके साथ ही यह बात भी तय है कि उनके नेतृत्व में सूबे को पटरी पर नहीं लाया जा सकता है।
लेकिन बीजेपी के साथ संकट यह है कि अगर वह किसी दूसरे को मुख्यमंत्री बनाती है तो बीरेन उससे नाराज हो जाएंगे और अगर यह नाराजगी एक सीमा से आगे गयी तो वह सूबे में मैतेइयों के इतने बड़े नेता हो गए हैं कि अपनी अलग रीजनल पार्टी बनाकर उसका मजबूत आधार खड़ा कर सकते हैं।

लिहाजा बीजेपी के लिए मणिपुर आगे कुंआ पीछे खाईं की स्थिति में पहुंच गया है। यही वजह है कि बीजेपी वहां चाह कर भी कुछ करने की स्थिति में नहीं है। अब आते हैं मेवात पर। जब से विपक्ष का इंडिया नाम से गठबंधन सामने आया है मोदी जी की रात की नींद और दिन का चैन खो गया है। वह कोई सभा हो या सरकारी आयोजन मौके-बे-मौके इसके खिलाफ बोलना शुरू कर देते हैं।

उनकी बौखलाहट इस कदर बढ़ गयी है कि उसकी तुलना टुकड़े-टुकड़े गैंग से लेकर इंडियन मुजाहिदीन तक से करने से परहेज नहीं करते। इस गठबंधन को लेकर जिस तरह की मानसिक स्थिति उनकी बन गयी है। रात में शायद वो इंडिया के सपने देखते हों या अभुवाने से लेकर सपनों में तमाम हरकतें करते हों ऐसा सोचना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी।

अब अगर आप किसी के घर में जाकर उसे मारने और उसका दामा…बन कर खुद का स्वागत कराने वाले बयान जारी करेंगे तो सामने वाला कायर तो है नहीं? वह भी अपने तईं उसका प्रतिरोध करेगा। और वही हुआ। जब बजंरग दल और वीएचपी के लोग हथियारों के साथ मुस्लिम बहुल नूंह में प्रवेश किये तो उनके सामने सैकड़ों की संख्या में मुसलमान उनका जवाब देने के लिए खड़े थे।

जिसका नतीजा दोनों पक्षों के बीच हिंसक संघर्ष और उसमें कुछ बेकसूरों की जानें जाने के तौर पर सामने आया। लेकिन संघ का डिजाइन यहां फेल कर गया। बीजेपी को यहां उम्मीद थी कि उसे अपने आधार के अलावा जाट और गूर्जर समेत तमाम दूसरे तबकों का भी हिंदू के नाम पर खुला समर्थन मिल जाएगा और यह ध्रुवीकरण और तेज हो जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

गुर्जरों के संगठन ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि जाट भी खुलकर बीजेपी के खिलाफ आ गए। यहां तक कि जाटों और मुसलमानों की पंचायत हुई और उसमें किसी भी कीमत पर भाईचारे को नहीं बिगाड़ने का संकल्प लिया गया। इतना ही नहीं जाट समुदाय के नौजवान स्वतंत्र तौर पर सोशल मीडिया में आकर अपना-अपना वीडियो जारी कर रहे हैं।

जिसमें बजरंग दल और वीएचपी की साजिश का खुला विरोध हो रहा है। ऐसे में बीजेपी-संघ की पूरी रणनीति फेल हो गयी है। यहां तक कि उसे उसके अपने केंद्रीय मंत्री तक का समर्थन हासिल नहीं हो पाया। ऐसे में संघ-बीजेपी के घृणित मंसूबों का एक बार फिर पर्दाफाश हो गया है।


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