Sunday, April 27, 2025
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मैं और मेरा मोक्ष

Amritvani


मैं शांति, आनंद और मुक्ति की बातें कर रहा हूं। जीवन की वही केंद्रीय खोज है। वह पूरी न हो तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। कल यही कह रहा था कि एक युवक ने पूछा, ‘क्या सभी को मोक्ष मिल सकता है? और यदि मिल सकता है, तो फिर मिल क्यों नहीं जाता?’ एक कहानी मैंने उससे कही।

गौतम बुद्ध के पास एक सुबह किसी व्यक्ति ने भी यही पूछा था। बुद्ध ने कहा कि जाओ और नगर में पूछकर आओ कि जीवन में कौन क्या चाहता है? वह व्यक्ति शहर के घर-घर गया। आते-जाते लोगों से पूछा। लोगों ने अपनी इच्छाओं और उम्मीदों को खंगाल खंगाल कर निकाला, बताते गए।

शाम को वह बहुत बुरी थककर एक लंबी फेहरिस्त लेकर लौटा। उस फेहरिस्त के हिसाब से कोई यश चाहता था, कोई पद चाहता था, कोई धन, वैभव, समृद्धि चाहता था, लेकिन हैरतअंगेज तौर पर मुक्ति का आकांक्षी तो कोई भी नहीं चाहता था! बुद्ध बोले कि अब बोलो, अब पूछो; मोक्ष तो प्रत्येक को मिल सकता है।

वह तो है ही, पर तुम एक बार उस ओर देखो भी तो! हम तो उस ओर पीठ किए खड़े हैं। यही उत्तर मेरा भी है। मोक्ष प्रत्येक को मिल सकता है। वह मोक्ष चाहे तो सही, जैसे कि प्रत्येक बीज पौधा हो सकता है। वह हमारी संभावना है, पर संभावना को वास्तविकता में बदलना के लिए बीज को पेड़ बनने की प्रक्रिया में ढलना होगा।

इतना मैं जानता हूं कि बीज को वृक्ष बनाने का यह काम कठिन नहीं है। यह बहुत ही सरल है। बीज मिटने को राजी हो जाए, अपने अस्तित्व को नए आकार के लिए राजी कर ले तो अंकुर उसी क्षण आ जाता है। मैं मिटने को राजी हो जाऊं, तो मुक्ति उसी क्षण आ जाती है। ‘मैं’ ही तो बंधन है। ‘मैं’ गया नहीं कि मोक्ष है। ‘मैं’ के साथ मैं संसार में हूं, ‘मैं’ नहीं कि मैं ही मोक्ष हूं।


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