पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान शिव महाशिवरात्रि पर आधी रात को शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। जिसके बाद सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने उनकी पूजा की। मान्यता है कि उस दिन से लेकर आज तक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा होती आ रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मां लक्ष्मी, माता सीता, मां गायत्री। माता पार्वती जैसी बहुत सी देवियों ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।
शिवरात्रि, शिव और शक्ति के संगम का एक पर्व है। हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि की तरह मासिक शिवरात्रि का भी विशेष महत्व है, जो प्रत्येक महीने कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाती है। माना जाता है कि यह पर्व न केवल उपासक को अपनी इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करता है, बल्कि उसे क्रोध, ईर्ष्या, अभिमान और लालच जैसी भावनाओं पर नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करता है।
इंद्रियों पर विजय का अर्थ ही सब दुखों का नाश और सुखों का आगमन है। यह विज्ञान सम्मत तर्क है। जहाँ शिव के भक्त साल में एक बार बड़ी ही धूमधाम से महाशिवरात्रि मनाते हैं वहीं भोलेनाथ की आराधना में मासिक शिवरात्रि मनाने की भी परंपरा हैं।
मासिक शिवरात्रि का महत्व
शिव पुराण मासिक शिवरात्रि में व्रत, उपवास रखने और भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करने से जहां एक ओर साधक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं वहीं अविवाहित कन्याओं के विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं। इस कथन में निहित विशुद्ध विज्ञान को समझना आवश्यक है।
जब साधक उपवास करता है और उपवास का लक्ष्य मस्तिष्क में निर्धारित कर लेता है, तो सोचिए, सम्पूर्ण ब्रह्मांड की ताकत उस निश्चय , उस लक्ष्य को पूरा करने में लग जाती है और यदि आपका लक्ष्य निश्चित और अडिग है तो उसे पूरे होने से कोई रोक नहीं सकता , यही ईश्वर की ताकत और प्रताप है। यह साधक की सोच की ताकत है और ईश्वर इसमें माध्यम बनते हैं। क्योंकि हम एक ऐसी ताकत पर विश्वास करके पूजा – उपवास करते है जो पूरी प्रकृति को जीवन देती है। सोचिए वो कितनी बड़ी शक्ति होगी?
मासिक शिवरात्रि व्रत विधि
उपासक मासिक शिवरात्रि वाले दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान आदि से निवृत होकर, भगवान शिव के मंदिर में जा कर भगवान शिव और उनके परिवार (पार्वती, गणेश, कार्तिक, नंदी) की पूजा करते है। शिवलिंग का रुद्राभिषेक जल, शुद्ध घी, दूध, शक़्कर, शहद, दही आदि से किया जाता है। शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा और श्रीफल चढ़ाएं जाते हैं। भगवान शिव की धुप, दीप, फल और फूल आदि से पूजा अर्चना की जाती है। उपरोक्त वर्णित सभी सामग्रियों के अपने अपने औषधीय गुण है और जब इन्हे शिवलिंग पर चढ़ाया जाता है तो हमारे हाथों के स्पर्श से हमें भी इनके चिकित्सीय गुणों से लाभ प्राप्त होता है। और जो स्वस्थ्य है वही ही सुखी है।
शिव पुराण, शिव स्तुति, शिव अष्टक, शिव चालीसा और शिव श्लोक का पाठ किया जाता है। संध्या के समय फलहार किया जाता हैं। उपवास में अन्न वर्जित आहार है। क्योंकि अन्न, शरीर और मस्तिष्क में सुस्ती लाता है। अगले दिन भगवान शिव की पूजा और दान आदि करने के बाद उपवास खोला जाता है। अर्थात सब कुछ वैज्ञानिक है , कुछ भी अंधविश्वास नही। सच्चे मन और पूरी निष्ठा से भगवान की गई आराधना और उनका स्मरण, मनोवांछित फल प्रदान करता है।
मासिक शिवरात्रि व्रत कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक, भगवान शिव महाशिवरात्रि पर आधी रात को शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। जिसके बाद सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने उनकी पूजा की। मान्यता है कि उस दिन से लेकर आज तक शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा होती आ रही है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक मां लक्ष्मी, माता सीता, मां गायत्री। माता पार्वती जैसी बहुत सी देवियों ने भी शिवरात्रि का व्रत किया था।
कहा जाता है कि मासिक शिवरात्रि के व्रत से जीवन में सुख और शांति आती है. साथ ही भगवान शिव की कृपा से भक्तों के बिगड़े काम बनते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव महाशिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि के समय शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। अत: भगवान भोले की पूजा भी रात्रि 12 बजे के बाद ही किए जाने की परंपरा है। उस दिन से लेकर आज तक इस दिन को भगवान शिव के जन्म दिवस के रूप में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है।
इस माह में मासिक शिवरात्रि तिथि
13 सितंबर 2023( बुधवार)। विशेष मूहर्त 13 सितंबर 2023 पूर्वाह्न 2:21 बजे से 14 सितंबर 2023 पूर्वाह्न 04:49 बजे के बीच रहेगा। भाद्रपद माह एक पवित्र महीना है और कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली मासिक शिवरात्रि इस लिहाज से भी विशेष स्थान रखती है।
राजेंद्र कुमार शर्मा