2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की शतरंजी बिसात बिछने लगी है सत्ता और विपक्ष दोनों ही अपने राजनैतिक समीकरण साधने में जुट चुके हैं। गत 17-18 जुलाई को बेंगलुरु में 26 विपक्षी राजनैतिक दलों की उपस्थिति में भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन का गठन किया गया। कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल आगामी लोकसभा चुनाव में जहाँ कमर तोड़ महंगाई, बढ़ती बेरोजगारी, भातीय लोकतंत्र व संविधान पर मंडराते खतरे, भ्रष्टाचार, असफल विदेश नीति, अल्पसंख्यकों, दलितों व आदिवासियों पर बढ़ते हमले, मणिपुर के हिंसक व शर्मसार करने वाले घटनाक्रम तथा भाजपा सरकार द्वारा केंद्रीय जांच एजेंसियों के भारी दुरुपयोग जैसे अनेक मुद्दों को लेकर भाजपा के विरुद्ध लामबंद हुए हैं। उधर सत्ता पक्ष यानी भारतीय जनता पार्टी भी न केवल अपने बिछड़े व रूठे सहयोगी दलों व नेताओं को पुन: अपने खेमे में शामिल करने के प्रयास में जुट चुकी है, बल्कि वह कुछ और नए सहयोगियों को भी अपने साथ शामिल करने की कोशिश में है।
इसीलिये भाजपा ने भी गत 18 जुलाई को ही एनडीए की बैठक बुलाई और दावा किया कि देश के 38 राजनैतिक दल उनके साथ हैं। 2019 में 303 सीटें जीतने वाली भाजपा को गत पांच वर्षों तक एनडीए की न तो बैठक बुलाने की जरूरत महसूस हुई थी न ही किसी साथ छोड़ने वाले दल या नेता को मनाने की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक ‘एक अकेला सब पर भारी’ के मुगालते में थे।
दरअसल भाजपा यह अच्छी तरह समझ चुकी है कि 2024 में उसके लिए जीत हासिल कर पाना आसान नहीं क्योंकि उसे इस बार विगत दस वर्षों में पैदा हुई सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा। इसीलिये भाजपा भी अपने कुनबे को बढ़ाने और रूठों को मानाने में जुट चुकी है। खासतौर पर जबसे विपक्षी दलों ने इंडिया का गठन किया है, तब से भाजपा न सिर्फ 26 दलों के गठबंधन से बल्कि उसके द्वारा रखे गये इंडिया नाम से भी बौखला उठी है।
नैतिकता, परिवारवाद और भ्रष्टाचार पर भाषण पिलाने वाले इस तथाकथित ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवादी दल’ को अपने कुनबे के विस्तार में ओम प्रकाश राजभर जैसे उन नेताओं को भी शामिल करना पड़ा है जो एनडीए से अलग होने के बाद जनसभाओं में मोदी की आलोचना करते थे। कहते फिरते थे, दुनिया में झूठ बोलने वाला सबसे बड़ा नेता कोई है तो वह नरेंद्र मोदी है।
उन्होंने (मोदी ने) कहा था सौगंध मुझे इस मिटटी की देश नहीं बिकने दूंगा। परंतु उन्होंने रेलवे बेच दिया, बैंक बेच दिया, एलआईसी बेच दिया, बीएसएनएल बेच दिया, कोयले की खदान बेच दिया, हवाई जहाज बेच दिया, दो करोड़ लोगों को रोजगार देने को कहा था। अब न जाने किस मुंह से यही भाषण देने वाले वही राजभर, भाजपा और मोदी के साथ खड़े होने जा रहे हैं?
इसी तरह जीतन राम मांझी ने तो ऐसा बयान दिया था कि यदि कांग्रेस या अन्य किसी गैर एनडीए दल के नेता ने दिया होता तो अब तक भाजपा व उसके संरक्षक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व विश्व हिंदू परिषद के लोग राष्ट्रव्यापी आंदोलन छेड़ देते। जीतन राम मांझी ने कहा था, भगवान श्रीराम ने माता शबरी के झूठे बेर खाए थे, लेकिन ऊंची जाति के लोग हमारा छुआ भी नहीं खाते हैं?
मांझी ने यह भी कहा था, हम सिर्फ महर्षि बाल्मीकि को मानते हैं, पर राम को नहीं जानते। मांझी ने तो यहां तक कह दिया था, राम कोई भगवान थोड़े ही थे, वे तो तुलसीदास और बाल्मीकि रचित रामायण के पात्र थे। इसके बाद ब्राह्मणों पर अत्यंत विवादित बयान देते हुए जीतन राम मांझी ने कहा था, जो ब्राह्मण मांस खाते और शराब पीते हैं, झूठ बोलते हैं ऐसे ब्राह्मणों से दूर रहना चाहिए।
ऐसे ब्राह्मणों से पूजा पाठ नहीं कराना चाहिए। इसके साथ ही पूजा पाठ व पूजा अर्चना पर भी उन्होंने विवादित बयान देते हुए कहा था, पूजा पाठ करने से कोई बड़ा नहीं होता। ऐसे में अनुसूचित जाति के लोगों को पूजा पाठ करना बंद कर देना चाहिए। अब राम के नाम पर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा के वही जीतन राम मांझी खेवनहार बनने जा रहे हैं?
इसी तरह प्रधानमंत्री ने अजीत पवार को जिस दिन भ्रष्ट और घोटालेबाज बताया उसके चंद ही दिनों बाद महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में उन्हें व भ्रष्टाचार के आरोपी उनके कई सहयोगियों को मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया गया। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जो इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी हैं कि राजनीति में शर्म और नैतिकता नाम की कोई चीज अब बाकी ही नहीं रही।
वैसे तो 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव से पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना जैसे देश के कई राज्यों में होने जा रहे विधानसभा के चुनाव परिणाम लोकसभा 2024 की पटकथा लिख देंगे। इसके पहले दिसंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश और कुछ समय पूर्व ही कर्नाटक में हुए चुनाव परिणामों से भी जनता के मूड का कुछ अंदाजा तो हो ही गया है।
इसीलिए भाजपा को सहयोगियों को साथ लेने की जरुरत महसूस हुई है। उधर सत्ता के सभी हथकंडों से मुकाबला करने के लिए लोकतंत्र व संविधान की रक्षा के नाम पर नया विपक्षी गठबंधन यानी इंडिया का गठन तो फिर भी काफी हद तक समय की जरूरत कही जा सकती है।
परंतु विश्व के सबसे बड़े राजनैतिक दल का दावा करने वाली पार्टी और एक अकेला सब पर भारी की हुंकार भरने और 56 इंच का सीना बताने वाले प्रधानमंत्री की पार्टी भाजपा को जिसे इस समय लोक सभा में अकेले पूर्ण बहुमत भी हासिल हो, गोया ‘सर्वशक्तिमान’ को भी ‘बैसाखियों की दरकार’ होना यह जरूर दर्शाता है कि भाजपा के लिए 2024 की राहें किसी भी सूरत में आसान नहीं हैं।
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