Friday, April 26, 2024
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अपनी ही दुकानों के किराये को तरस रही पालिका

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  • गैर कानूनी तरीके से दुकानों में जमे बैठे हैं किरायेदार
  • आज तक जमा नहीं कराया किराया और स्टांप शुल्क
  • मोटी रकम लेकर दूसरों को दे दी दुकानें, कार्रवाई की तैयारी में पालिका

जनवाणी संवाददाता |

सरधना: जिन दुकानों के निर्माण में मोटी रकम खर्च करके नगर पालिका अपनी आय बढ़ाने का सपना देख रही थी। पालिका उन्हीं दुकानों के किराये को तरस रही है। हालत यह है कि थाने की जद में बनी 21 दुकानों में अधिकांश का किराया एक दशक से जमा नहीं कराया जा रहा है। यहां तक की किरायेदारों ने स्टांप शुल्क जमा करके किरायेदारी अनुबंध भी नहीं करा रखी है।

यानी गैरकानूनी तरीके से दुकानों पर कब्जा किए हुए बैठे हैं। इतना ही नहीं मूल किरायेदार पगड़ी के रूप में मोटी रकम लेकर दूसरे लोगों को दुकानें बेच निकले हैं। करीब 13 लाख रुपये से अधिक का किराया आज तक बकाया चल रहा है। लगातार नोटिस जारी करने के बाद भी दुकानों में काबिज लोग न तो अनुबंध होने को तैयार हैं और न ही किराया जमा कराना जरूरी समझ रहे हैं।

यदि अनुबंध होते हैं तो जाहिर सी बात है कि शिकमी किरायेदारी के खेल से पर्दा उठ जाएगा। अब पालिका इन दुकानों को खाली कराने की तैयारी में है। ताकि नए सीरे से दुकानों को प्रक्रिया अनुसार आवंटित किया जा सके और पालिका को किराये के रूप में आय प्राप्त हो सके।

दरअसल, नगर पालिका द्वारा परिसर के सामने और थाने की जद में वर्ष 2010 में 21 दुकानों का निर्माण कराया गया था। लाखों रुपये खर्च करके दुकानें इसलिए बनवाई गई थी ताकि पालिका की आय के साधन खुल सकें। प्रति दुकान का कराया 550 रुपये तय किया गया था। नियमानुसार किरायेदारी के लिए निर्धारित समय का अनुबंध होता है। जिसके लिए स्टांप शुल्क भी लगता है।

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तभी जाकर किरायेदारी कानून मानी जाती है। मगर इन दुकानों को लेने वालों ने आज तक अनुबंध नहीं कराया है। यानी किरायेदार गैर कानूनी तरीके से दुकानों में जमे बैठे हैं। इतना ही नहीं अधिकांश दुकानदार करीब एक दशक से किराया जमा नहीं कर रहे हैं। करीब 13 लाख रुपये से अधिक का किराया इन दुकानों पर बकाया चल रहा है। इससे भी बड़ा खेल यह है कि मूल किरायेदारों ने पगड़ी के रूप में मोटी रकम लेकर अन्य लोगों को दुकानें सौंप दी हैं।

दुकानों में पालिका की अनुमति के बिना शिकमी किरायेदार घुसा दिए हैं। अनुबंध और किराया वसूली के लिए पालिका द्वारा इन दुकानों में काबिज लोगों को लगातार नोटिस जारी किए जा रहे हैं। मगर कोई पालिका की बात को गंभीरता से लेने के लिए तैयार नहीं है। एक फूटी कौड़ी किराया जमा कराने को तैयार नहीं है।

यानी पालिका प्रशासन खुद अपनी दुकानों के किराए के लिए तरस रही है। मगर नगर पालिका अब इन दुकानों को खाली कराने की तैयारी में है। ताकि नए सीरे से प्रक्रिया के अनुसार दुकानों को अनुबंध करके आवंटन किया जा सके। जिससे पालिका को आय प्राप्त हो सके।

कई बार बेचा जा चुका दुकानों को

वर्ष 2010 में जब यह दुकानें आवंटित की गई थी, तब कोई और ही लोग इनमें काबिज हुए थे। तब से अब तक इन दुकानों को कई बार किरायेदारों द्वारा लाखों की पगड़ी लेकर बेचा जा चुका है। उसमें भी जो दुकानों में जमे बैठे हैं, किराया जमा कराने को तैयार नहीं है। यानी दुकानें पालिका की हैं और पैसा कोई और कमा रहा है।

किराया और स्टांप दोनों का नुकसान

उस समय प्रति महीना एक दुकान का किराया 550 रुपये तय किया गया था। यानी 21 दुकानों का कराया 11550 रुपये बनता है। इस हिसाब से जोड़ा जाए तो एक साल का किराया 1 लाख 38 हजार 600 रुपये और 10 साल का किराया भी माने तो 13.86 लाख रुपये किराया जुड़ता है। इतनी मोटी रकम और दुकानों दोनों ही यह लोग दबाए बैठे हैं।

गैर कानूनी तरीके से काबिज

नियमानुसार दुकान किराये पर देने के लिए स्टांप शुल्क के साथ निर्धारित समय के लिए अनुबंध किया जाता है। एक साल का स्टांप शुल्क 800 रुपये बनता है। इस हिसाब से इन दुकानों का अब तक का स्टांप शुल्क करीब ढाई लाख रुपये बनता है। बिना अनुबंध के किरायेदारी गैर कानूनी मानी जाती है।

लंबे समय से दुकानों का कराया नहीं मिल पाया है। अधिकांश दुकानें मूल किरायेदारों ने अन्य लोगों को किरायेदार के रूप में सौंप रखी हैं। कई बार नोटिस जारी करने के बाद भी कोई अनुबंध कराने या किराया जमा कराने को तैयार नहीं है। जिसको लेकर कार्रवाई की तैयारी की जा रही है। -शशि प्रभा चौधरी, ईओ नगर पालिका सरधना

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