वर्तमान समय मे बढती हुई आबादी की पोषण जरूरतों को पूरा करने के लिए सघन खेती के साथ -साथ मृदा स्वास्थ्य बनाऐ रखने के लिए प्राकृतिक खेती पर जोर दिया जा रहा है। प्राकृतिक खेती, खेती की वह पद्धति है, जिसमें किसी भी प्रकार का रसायन या कीटनाशक का उपयोग नही किया जाता है मानव द्वारा संश्लेषित या निर्मित हो। प्राकृतिक खेती में सिर्फ प्रकृति के द्वारा विघटन करि क्रिया से निर्मित उर्वरक और अन्य पेड़ पौधों और पत्तों के खाद, गोबर खाद उपयोग में लाया जाता है , यह एक प्रकार से कृषि प्राणली का विविधीकरण है।
जो फसलों और जीव जन्तु पेड़ो को एकीकृत करके रखती हैं। अत्याधिक उत्पादन के लिए आवस्यकता से अधिक रासायनिक खादों, कीटनाशको का प्रयोग करने से हमारी मृदा का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। इसे ध्यान मे रखते हुये वैज्ञानिको की किसान भाइयों को सलाह है कि अपनी खेती में कम लागत से अच्छी फसल की पैदावार के लिए केंचुआ खाद का उत्पादन एवं उपयोग बहुत महत्वपूर्ण व लभकारी है। जो भूमि में पोषक तत्वों की हुई क्षति को पूर्ण करने की क्षमता रखता है जो परम्परिक खेती का स्तम्भ रहा है तथा वर्तमान में प्राकृतिक खेती का भविष्य है।
केंचुआ कृषि में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान भूमि सुधार के रूप में देता है। इनकी क्रियाशीलता मृदा में स्वत: चलती रहती है। प्राचीन समय में प्राय: भूमि में केंचुए पाये जाते थे तथा वर्षा के समय भूमि पर देखे जाते थे केंचुआ मिट्टी में पाये जाने वाले जीवों में सबसे प्रमुख है।
ये अपने आहार के रूप में मिट्टी तथा कच्चे जीवांश को निगलकर अपनी पाचन नलिका से गजारते हैं जिससे वह महीन कम्पोस्ट में परिवर्तित हो जाते हैं और अपने शरीर से बाहर छोटी-छोटी कास्टिग्स के रूप में निकालते हैं। इसी कम्पोस्ट को केंचुआ खाद (वर्मीकम्पोस्ट) कहा जाता है। कम्पोस्ट मात्र 45 दिन में तैयार हो जाता है। केंचुओं का पालन ‘कृमि संवर्धन’ या ‘वर्मी कल्चर’ कहलाता है।
केंचुआ खाद कैसे बनाए
केंचुआ रोज अपने वजन के बराबर कचरा/मिट्टी खाता है और उससे मिट्टी की तरह दानेदार खाद बनाता है। भूमि की उपरी सतह पर रहनेवाले लंबे गहरे रंग के केंचुए जो अधिकतर बरसात के मौसम में दिखाई पड़ते हैं, खाद बनाने के लिए एसिनाफोटिडा नामक प्रजाती उपयुक्त हैं।
जो भोजन के रूप में कच्चा कचरा, कच्चा गोबर आदि का उपयोग है कच्चे गोबर के विघटन की प्रक्रिया के दौरान उससे गर्मी उत्पन्न होती है जो केंचुओं के लिए हानिकारक होती है। अत: हमारे खेत में उत्पन्न होने वाले कचरे एवं गोबर को अलग से 15 से 20 दिन सड़ाना आवश्यक है।
इसे ढेर के रुप में एक स्थान पर रख्ते है जिसे पुरी तरह 10 दिनो तक नमी देते रहते है जिससे विघटन के समया निकलने वाली गर्मी समाप्त हो जाये। उसकी गर्मी निकलने के बाद उसे वर्मी बेड में केंचुओ के भोजन के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है।
वर्मी बेड तैयार करने की विधि
केंचुआ खाद के उत्पादन के लिए छायादार जगह का होना आवश्यक है। केंचुआ खाद उत्पादन के लिए वर्मी बेड जिसकी लंबाई 20 फुट तक तथा चौड़ाई 2.5 से 4 फुट तक होनी चाहिए। इस बेड में पहले नीचे की तरफ र्इंट के टुकड़े फिर ऊपर रेत एवं मिट्टी का थर दिया जाता है जिससे विपरीत परिस्थिति में केंचुए इस बेड के अंदर सुरक्षित रह सकें। इस बेड के ऊपर 6 से 12 इंच तक पुराना सड़ा हुआ कचरा केंचुओं के भोजन के रूप में डाला जाता है।
40 से 50 दिन के बाद जब घास की परत अथवा टाट बोरी हटाने के बादन हल्की दानेदार खाद ऊपर दिखाई पड़े, तब खाद के बेड में पानी देना बंद कर देना चाहिए। ऊपर की खाद सूखने से केंचुए धीरे-धीरे अंदर चले जाएंगे। ऊपर की खाद के छोटे-छोटे ढेर बेड में ही बनाकर एक दिन वैसे ही रखना चाहिए। दूसरे दिन उस खाद को निकालकर बेड के नजदीक में उसका ढेर कर लें।
खाली किए गए बेड में पुन: दूसरा कचरा जो केंचुओ के भोजन हेतु तैयार किया गया हो, का उपयोग किया जाता हैे तैयार खाद के ढेर के आसपास गोल घेरे में थोड़ा पुराना गोबर के घोल को फैला कर ढंक दें। इस प्रक्रिया में खाद में जो केचुएं रह गए हैं वे धीरे-धीरे गोबर में आ जाते हैं। जिसे वर्मी बेड में डाल देते हैं। इस प्रकार निरंतर खाद बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ रहती हैे इस प्रकार एक बेड से करीब 500 से 600 किलो केंचुआ खाद 30-40 दिन में प्राप्त होती है।
केंचुओं के दुश्मन
केचुओं के कुछ प्राकृतिक दुश्मन भी हैं जो इस प्रकार हैं। लाल चींटी, मुर्गी ,मेढक, सांप, सुआर (भुंड), गिरगिट एवं कुछ मिट्टी में रहने वाले कीड़े अथवा मांसभक्षी जीव जो केंचुओं केंचुओं को खाते हैं। इन सबसे बचने के लिए वर्मी बेड को अच्छी तरह पहले घास से या फिर हल्के कांटों से ढकना चाहिए। केंचुआ खाद के शेड के चारों तरफ नाली खोदकर उसमें पानी भर देने से चींटीयों से रक्षा होती है।
शेड के चारों ओर कांटेदार बाड़ लगाने से मुर्गियां अंदर नहीं आ सकेंगी। समय-समय पर वर्मी बेड का परीक्षण करते रहना चाहिए ताकि हम उसका प्रबंधन कर सके । यदि वर्मी बेड में लाल चींटीयों हो गई हों तब 20 लीटर पानी में 100 ग्राम मिर्च पाउडर, 100 ग्राम हल्दी पाउडर, 100 ग्राम नमक एवं थोड़ा साबुन डालकर उसका हल्का-हल्का छिड़काव वर्मी बेड में किए जाने से चींटीयां भाग जाती हैं।
केंचुआ खाद तैयार करते समय प्रारंभिक खर्च अधिक रहता है, लेकिन जब किसान लगातार उसी इंफ्रास्ट्रक्चर पर वर्ष में 10-11 से बार उत्पादन लेता है तो खर्च घट जाता है क्योंकि 40 से 50 दिन में केचुवा खाद तैयार हो जाता है।
केंचुआ खाद पोषक तत्वों के दृष्टिकोण से प्राकृतिक खेती के लिए उपयुक्त है जो मृदा की बिगड़ती दशा को सुधारने में सहायक होने के साथ -साथ केंचुआ खाद उत्पादन एक लाभकारी प्रक्रिया भी है, जो कृषक को उनकी आय बढ़ाने में भी सहायक होगी।
अजय कुमार राय, रंजीत रंजन कुमार, ज्ञानेंद्र कुमार राय