कभी किसी ने सोचा नहीं होगा कि आजादी के पचहत्तर साल होते-होते भारत अपनी सांस्कृतिक, वैचारिक विरासत छोड़कर बिल्कुल विपरित दिशा में जाने लगेगा। आज सत्ता प्राप्त करने और बनाए रखने के लिए खुले तौर पर छल, कपट की नीतियां अपनाई जा रही हैं। धार्मिक सिद्धांतों के विरुद्ध अनीति को धर्म साबित करने की कोशिश हो रही है। सत्य और अहिंसा का मार्ग छोडकर झूठ और हिंसा के रास्ते देश चलाया जा रहा है। संवैधानिक भावना के विरुद्ध सभी संवैधानिक संस्थाओं और पदों का दुरुपयोग किया जा रहा है। यह देश का दुर्भाग्य है कि इन सभी बुराइयों को श्रीराम, श्रीकृष्ण और हिंदू धर्म के नाम पर खपाया जा रहा है।
देश में धर्म, जाति और आर्थिक आधार पर भेदभाव बढ़ाने वाली नीतियां लागू की जा रही हैं, जिससे धर्म, जाति, वर्ग में शत्रुता की भावना पैदा हो रही है। धार्मिक ध्रुवीकरण करके हिंदू-मुसलमानों के बीच टकराव पैदाकर धार्मिक विद्वेष फैलाने का काम किया जा रहा है। जाति प्रथाओं के पुराने जख्मों को कुरेदकर टकराव पैदा करके समाज को तोड़ने का काम किया जा रहा है। कारपोरेट परस्त नीतियां बनाकर और देश की संपत्ति को कारपोरेट्स के हवाले कर जनता की लूट और अमीरों को छूट का काम किया जा रहा है।
राज्यसत्ता प्राप्त करने के लिए सरकार समाज में फूट डालने का काम करती दिख रही है और चाणक्य की साम, दाम, दंड, भेद नीति और सावरकर की गुरिल्ला नीति का खुलकर उपयोग कर रही है। केंद्र सरकार ने मान लिया है कि देश की विरोधी पार्टियां और राजनीतिक विरोधी उनके शत्रु हैं और उन्हें समाप्त करने के लिए चाणक्य और सावरकर नीति का इस्तेमाल कर विरोधियों को धोखे से मारना उसका कर्तव्य है। सरकार ने इसका लोकतांत्रिक तरीका ढूंढ निकाला है और उसके लिए संवैधानिक संस्थाओं और पदों का हथियार के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा है।
अब आम जनता भी मानने लगी है कि सरकार सत्ता के लिए विधायिका, चुनाव आयोग, न्यायपालिका जैसी संवैधानिक संस्थाओं और पदों का हथियार के रूप में उपयोग कर रही है। विरोधी पार्टियों की सरकारें अस्थिर करने, गिराने के लिए विधायकों, सांसदों की खरीद-फरोख्त हो रही है। संसद और विधायिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करके राज्यपाल, विधायिका के अध्यक्ष या सभापति के अधिकारों का दुरुपयोग किया जा रहा है। चुनाव आयोग और न्यायपालिका सरकार को लाभ पहुंचाने के निर्णय कर रही है। ईडी, सीबीआई, आईटी आदि विभागों का इस्तेमाल कर विरोधियों को डराया जा रहा है। विरोधी पार्टियों को तोडकर राज्य सरकारों को अस्थिर किया या गिराया जा रहा है।
विरोधी पार्टियों की सरकारों के सामने आर्थिक संकट पैदा करने के लिए उनके हक का धन ना देना, विकास के लिए डबल इंजन की सरकार जरुरी बताना, सरकार बदलने पर योजनाओं की घोषणाऐं करना आदि से केवल विरोधी पार्टियों की सरकारें ही नहीं, उन्हें वोट देने वाले मतदाताओं को भी प्रताडित किया जा रहा है। सरकार की योजनाओं, सुविधाओं का क्रियान्वयन और गैस, पेट्रोल की कीमतें, किसानों की मदद, सब्सिडी आदि में सरकार पक्षपात कर रही है। विरोधी पार्टियों की सरकार को अस्थिर करने के लिये ये कुटिल तरीके अपनाये जा रहे हैं।
भले ही राजनीतिक पार्टियां मानती हैं कि वे देश चला रही हैं, लेकिन यह सच नहीं है। देश कारपोरेट घराने चला रहे हैं। वे राजनीति में सीधा हस्तक्षेप करके कारपोरेट परस्त नीतियों को लागू करने वाली पार्टियों का खुला समर्थन कर रहे हैं। देश में कौन सी पार्टी सत्ता में आए और कौन प्रधानमंत्री बने यह कारपोरेट घराने ही तय करते हैं। सरकार जब तक इन घरानों को लाभ पहुंचाने के लिये कारपोरेट परस्त नीतियां बनाती रहेगी, तब तक वह सत्ता में बनी रहेगी। जिस दिन सरकार कारपोरेट्स को लाभ नहीं पहुंचा पाएगी, उस दिन उसे हटा दिया जाएगा।
कारपोरेट घराने उन्हें लाभ पहुंचाने वाली राजनीतिक पार्टियों को कानूनी और गैर-कानूनी तरीके से बड़े पैमाने पर चंदा देते हैं और बदले में कारपोरेटी लूट के लिए जनविरोधी और कारपोरेट परस्त नीतियां बनवाते हैं। सरकारें बनाने और गिराने में धन का दुरुपयोग करते हैं। कारपोरेट घरानों द्वारा मीडिया पर कब्जा किया गया है। ये घराने सरकार के पक्ष में प्रपोगंडा चलाने और विरोधियों के विरुद्ध वातावरण बनाने के लिए मीडिया का खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं।
केवल गैर-कानूनी पद्धति से लिया गया धन ही भ्रष्टाचार नहीं है, बल्कि कारपोरेट परस्त नीतियां बनवाने के बदले कानूनी पद्धति से लिया गया धन भी भ्रष्टाचार होता है। देश की जनता को यह जानने का अधिकार है कि इलेक्टोरल बॉन्ड से किसने कितना धन लिया है और उसके बदले में कौन सी नीतियां बनाई गई हैं। इस प्रकार देश को नुकसान पहुंचाने के लिये नीतियां बनाने वालों पर कार्रवाई जरुरी है, लेकिन सरकार अपने विरोधियों को जेल का डर दिखाकर ब्लैकमेल कर रही है।
देश की समस्याऐं बढ़ रही हैं। किसानों का संकट, कारपोरेटी लूट, आर्थिक विषमता, गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार, आरक्षण, महंगी शिक्षा, महंगी स्वास्थ्य सेवा, नशे का व्यापार आदि समस्याओं से लोग चिंतित हैं। धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण बढ़ रहा है। ईवीएम, इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे कई गंभीर सवाल खड़े हैं। केंद्र और राज्यों के संबंध में तनाव पैदा हो रहा है। किसानों की मांगें मान्य करने के बजाय खेती को कारपोरेट कंपनियों को सौंपा जा रहा है। लोगों का धर्म और संविधान, लोकतंत्र और उसके तथाकथित स्तंभों से भरोसा उठ चुका है।
दुनिया में कोई कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, जनता की मौन सहमति के बिना किसी पर अत्याचार नहीं कर सकता। अगर सरकार यह दावा कर रही है कि उसने उन्हें वोट देकर चुना है और उन्हीं के समर्थन से वह नीतियों को लागू कर रहे हैं, तो फिर अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने के आरोप से जनता को भी मुक्त नहीं किया जा सकता। इसके लिये जनता भी उतनी ही जिम्मेदार है।
भारत कारपोरेट घरानों का गुलाम बन चुका है। प्रतिशोध की राजनीति का नया दौर आरंभ हो चुका है। यह महान देश अपना रास्ता भटक चुका है। उसे सही रास्ते पर लाने की जरुरत है, लेकिन अब चुनावी राजनीति से यह बदलाव शायद संभव नहीं है। भ्रष्टाचार में डूबे लोग देश नहीं बना सकते। इन सबसे देश को मुक्ति देने के लिये देश की जनता को कारपोरेटी लूट और कारपोरेटी मीडिया का विरोध करना होगा। देश के युवाओं को अपनी सांस्कृतिक, वैचारिक विरासत के आधार पर एक महान भारत के निर्माण के लिए फिर से जन-आंदोलन करना होगा। भारत नई क्रांति का इंतजार कर रहा है।