Saturday, February 22, 2025
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कश्मीर में लौटा उन्नीस सौ नब्बे!

 

Samvad 1


Dr Shrinaath Sahayजम्मू और कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की जान पर लगातार खतरा बना हुआ है। आतंकी चुन-चुनकर घाटी में धार्मिक अल्पसंख्यकों की हत्या कर रहे हैं। इस साल के पांच महीनों में 13 कश्मीरी पंडितों की हत्याएं। बीते मई में ही 7 हिंदुओं की जिंदगी छीन ली गई। हमलावर नाम पूछता है, पहचान की पुष्टि करता है और गोलियों की बौछार कर देता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कश्मीरी पंडित एक बार फिर भय में जीने को मजबूर हैं। आतंकी लगातार हिंदू समुदाय को निशाना बना रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ अब वही हो रहा है, जो 1990 के दशक में उनके साथ हुआ था। कश्मीर में आर्टिकल 370 हटने के बाद 4 कश्मीरी पंडितों समेत 14 हिंदू आतंकी हमलों में मारे गए। गृह मंत्रालय ने संसद में इसकी जानकारी दी थी।
बेशक आतंकवाद के खिलाफ मौजूदा प्रशासन और केंद्र की मोदी सरकार बेहद सख्त है। इस साल अभी तक करीब 90 आतंकियों को ढेर किया जा चुका है, लेकिन कश्मीर के 18 नागरिक और घाटी में ही सक्रिय 15 जांबाज भी ‘शहीद’ हुए हैं। हमारे लिए यह बेहद घातक स्थिति है, क्योंकि आतंकवाद ने भी चेहरा बदल लिया है।

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अब लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडरों की सरपरस्ती में आतंकी न तो बड़े हमलों की साजिश रचते हैं और न ही एके-47, ग्रेनेड, रॉकेट आदि हथियारों का इस्तेमाल करते हैं। स्थानीय स्तर पर आतंकी गुट बनाए जा रहे हैं। आतंकी अधिकतर पिस्टल से गोलियां चलाकर हत्याएं कर रहे हैं। बीते 5 माह के दौरान जितने भी आतंकी कश्मीर में मारे गए हैं, उनके पास से 134 पिस्टल बरामद की गई हैं।

यह आंकड़ा और हमले का तरीका चौंका देने वाला है। वे ‘टारगेट किलिंग’ करके भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, लिहाजा आतंकियों की पहचान और धरपकड़ भी मुश्किल हो रही है। दिलचस्प यह है कि स्थानीय आतंकी गुट आपस में एक-दूसरे को न तो पहचानते हैं, न उनकी रणनीति से वाकिफ हैं और न ही उनके आतंकी, आर्थिक स्रोतों की जानकारी रखते हैं। जो आतंकवादी मुठभेड़ों में मारे जा रहे हैं या कुछ जिंदा पकड़े गए हैं|

उनसे जरूर खुलासे होते रहे हैं कि वे ‘पाकिस्तानी’ हैं अथवा कश्मीर के ही स्थानीय नागरिक हैं। चूंकि उन आतंकियों की खुफिया लीड भी मिलना मुश्किल है, लिहाजा उनके संभावित हमलों की भी सूचना प्राप्त नहीं हो पाती, नतीजतन वे हमलों में कामयाब हो रहे हैं और लक्ष्य तय करके कश्मीरी पंडितों की हत्याएं कर रहे हैं।

पहली बार यह रोष सामने आया है कि यदि कश्मीर की सरकार ने कश्मीरी पंडितों को जम्मू या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर नहीं भेजा, तो वे सामूहिक तौर पर घाटी के सरकारी दफ्तरों से पलायन कर जाएंगे। हत्याओं के सिलसिले या आतंकवाद 1990 से भिन्न है, क्योंकि इस बार मुसलमान, सिख, प्रवासी भारतीय आदि सभी को मारा जा रहा है।

1990 की तरह ‘अल्लाह-हू-अकबर’ के नारे बुलंद नहीं हैं, मस्जिदों से हिंदुओं के खिलाफ ऐलान नहीं किए जा रहे कि वे घाटी छोड़ दें। अपनी औरतों और जवान बेटियों को घाटी में ही छोड़ दें। मंदिर नहीं तोड़े जा रहे। सिर्फ कश्मीरी पंडितों की चुन-चुन कर हत्याएं की जा रही हैं।

कश्मीर में तैनात हिंदू सरकारी कर्मचारियों पर लगातार जान जाने का खतरा मंडरा रहा है। अब कर्मचारियों को बचाने के लिए उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने अधिकारियों के साथ अहम बैठक की। बैठक में घाटी में सुरक्षा के लिए कुछ अहम इंतजामों पर चर्चा हुई है। प्रधानमंत्री पैकेज के तहत सरकारी नौकरी करने के लिए कश्मीर घाटी लौटे हिंदुओं को अब जिला मुख्यालयों पर तैनात किया जाएगा|

वहां पर उन कर्मचारियों की सुरक्षा के व्यापक प्रबंध किए जाएंगे। उनके रहने के इंतजाम भी अलग किए जाएंगे और वहां पर फुलप्रूफ सुरक्षा व्यवस्था की जाएगी। हिंदू कर्मचारियों को अब तहसीलों या रिमोट इलाकों में ड्यूटी से हटा लिया जाएगा।

पहली बार कश्मीरी पंडित इतने रोष, आक्रोश और गुस्से के साथ सड़कों पर बैठे हैं। वे सामूहिक इस्तीफा भी देने के मूड में हैं। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा उन्हें समझाने में जुटे हैं, लेकिन इस बार आतंकवाद ने सभी को दहशत में डाल दिया है। घाटी में ये नियुक्तियां मोदी सरकार की पुनर्वास नीति के तहत की गई थीं। दलितों को आरक्षण देकर पहली बार नियुक्तियां की गई थीं|

लेकिन प्रधानमंत्री मोदी कश्मीर के नौजवानों का भरोसा नहीं जीत पाए, लिहाजा ढेरों कार्यक्रम चलाने और 50,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का निवेश आने के बावजूद कश्मीरी पंडित ही प्रधानमंत्री और भाजपा का मुदार्बाद कर रहे हैं। कारण यही है कि सरकार औसत कश्मीरी की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पाई और आतंकी ह्यटारगेट किलिंगह्ण करते जा रहे हैं। रक्षा और पुलिस विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि आतंकी हमले के बाद पिस्टल फेंक देते हैं।
आपराधिक रिकॉर्ड न होने से आतंकियों के सुराग भी बहुत मुश्किल हैं। एक ही रास्ता है कि सुरक्षा बंदोबस्त कड़े किए जाएं। जब आतंकी की धरपकड़ होती है|

तो उसे मार दिया जाए या मुठभेड़ में ढेर किया जाए। स्थानीय स्तर पर जो भर्तियां की जाती रही हैं, उनके नेटवर्क को तोड़ कर उन्हें जेल में बंद किया जाए और खुफिया तंत्र को कुछ और मजबूत बनाया जाए। ऐसी रणनीति से नए आतंकवाद की नई शैली को तोड़ा जा सकेगा। अलबत्ता सरकार को हरेक स्तर पर लोगों को संतुष्ट और शांत तो करना पड़ेगा, नहीं तो नए पलायन को देखने की तैयारी भी कर लेनी चाहिए। कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने की भी जरूरत है।

आतंकवादी क्या योजनाएं बना रहे हैं, इसका पहले से खुफिया सूत्रों को पता होना चाहिए। अगर उनकी योजनाओं की पूर्व जानकारी मिल जाए तो उन्हें टारगेट किलिंग करने से रोका जा सकता है। जिन लोगों को आतंकवादी निशाना बना रहे हैं, उनके परिजनों को समझाने-बुझाने में भी सरकार को काफी प्रयास करने होंगे। घाटी में सुरक्षा बलों की सख्ती और आतंकियों के हो रहे सफाए से उनमें बौखलाहट नजर आती है।

कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी रोकने के लिए उन्हें निशाना बनाकर भय पैदा किया जा रहा है। सरकार के आश्वासन पर विश्वास करके पंडित राज्य में वापस तो जा रहे हैं मगर पूर्ण सुरक्षा के अभाव में हो रही हिंसक घटनाएं वापसी करने वालों के हौसले पस्त कर सकती हैं। उन्हें आतंक से मुक्त माहौल दिए जाने की जरूरत है ताकि पर्यटन, उद्योग जैसी संभावनाओं से राज्य के विकास का नया मॉडल विकसित किया जा सके।


janwani address 8

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