जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम ने शहर की जनता पर थोपे नाम परिवर्तन शुल्क के खिलाफ बगावत हो गई है। प्रत्येक दल के पार्षद परिवर्तन शुल्क के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। इसके खिलाफ सचल प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। एक वर्ष पहले नाम परिवर्तन शुल्क 100 रुपये से 500 रुपये लगता था, मगर नाम परिवर्तन शुल्क लागू होने के बाद 50 हजार रुपये शुल्क लग रहा है, जो सीधे जनता पर भार बढ़ गया है।
एक वर्ष पहले नाम परिवर्तन शुल्क का प्रस्ताव सदन में नगरायुक्त द्वारा रखा गया था। तब इस पर कोई चर्चा नहीं हुई, मगर मिनट्स में ये प्रस्ताव 16 जून 2020 में लागू कर दिया गया। शहर में जो भी मकान बेचता है, उसे खरीदने वाले को नगर निगम में नाम परिवर्तन शुल्क के रूप में 50 हजार रुपये जमा कराना होता है।
इतना भारी शुल्क लगा है, जिससे जनता परेशान हो गई है। इस शुल्क का वर्तमान में भाजपा भी विरोध कर रही है। महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा की सत्ता में ही ये नाम परिवर्तन शुल्क जनता पर लाद दिया गया, लेकिन भाजपा नेताओं को अब होश आया है कि जनता पर लगाया गया ये कर जनता के हित में नहीं है। किसी स्तर पर भी इसका विरोध नहीं हुआ। जनता इसको लेकर पार्षदों पर अपना आक्रोश व्यक्त करने लगी, तभी पार्षदों को याद आया है कि सचल प्रस्ताव तैयार कर इस प्रस्ताव को निरस्त कराया जाएगा।
इसको लेकर भाजपा पार्षद दल के नेता विपिन जिंदल ने प्रत्येक दलों के पार्षदों से संपर्क साधा तथा इसको लेकर तैयार किये गए प्रस्ताव पर पार्षदों के हस्ताक्षर कराये जा रहे हैं। 20 प्रतिशत पार्षदों के हस्ताक्षर होने चाहिए, इसके बाद सदन में प्रस्ताव गिराने के लिए बहुमत होना चाहिए।
इसके लिए भी करीब-करीब सभी पार्षद तैयार हो गए हैं। क्योंकि जनता ने अब नगर निगम में मकान बिकने के बाद भी नाम परिवर्तन कराना ही बंद कर दिया है। क्योंकि नगर निगम में नाम परिवर्तन कराने पर 50 हजार रुपये जमा करने पड़ते हैं। ये जनता पर अत्यधिक भार पड़ता है।
क्या है नाम परिवर्तन शुल्क
नाम परिवर्तन शुल्क नगर निगम में तब वसूला जाता है। जब किसी सम्पत्ति में नाम परिवर्तन की नगर निगम में एंट्री कराई जाती है। इसको ही नाम परिवर्तन शुल्क कहा गया है। जिस सम्पत्ति की निगम क्षेत्र में खरीद-फरोख्त होती है तथा नगर निगम में उसकी एंट्री कराई जाती है, तभी यह शुल्क देय होता है। शुल्क नहीं देने पर नगर निगम में सम्पत्ति में नाम नहीं चढ़ाया जाता है।
पार्षद लाएंगे सचल प्रभाव
नगर निगम में सम्पत्ति का नाम परिवर्तन का शुल्क पहले 100 रुपये होता था, फिर बढ़कर 200 रुपये हो गया था। इसके बाद 500 रुपये। वर्तमान में 50 हजार रुपये हो गया है। नाम परिवर्तन शुल्क लागू करने से पहले सदन में चर्चा तक नहीं हुई, फिर भी कैसे लगा दिया ये शुल्क बड़ा सवाल है।
इसको लेकर फिर भी पार्षद चुप क्यों बैठे हैं? जब सदन में प्रस्ताव पास नहीं हुआ, फिर भी पार्षदों ने शोर-शराब नहीं किया। नगरायुक्त को अपनी तरफ से प्रस्ताव रखने का तो अधिकार है, मगर प्रस्ताव पास करने का नहीं। ये तो सदन ही प्रस्ताव पास कर सकता है। इसके बाद ही प्रस्ताव को लागू किया जा सकता है।
नाम परिवर्तन शुल्क के नाम पर पचास हजार रुपये की वसूली गलत है। इसके लिए सभी पार्षद सचल प्रस्ताव ला रहे हैं। इसमें पार्षदों की सहमति बन गई है। इसके बाद ही यह प्रस्ताव स्वत: ही निरस्त हो जाएगा।
-विपिन जिंदल, भाजपा पार्षद दल के नेता
नाम परिवर्तन कर एक तरह से नगर निगम का जजिया कर है। इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसका पहले दिन से विरोध हो रहा है। जनता से नाम परिवर्तन शुल्क के रूप में 50 हजार रुपये की वसूली नाजायज है।
-गफ्फार, पार्षद