- नासिक लैब की रिपोर्ट को डकार गए स्टांप घोटाले के गुनहगार, कैंट बोर्ड का स्टांप घोटाला, चोरी का खुलासा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: गाहेवगाहे भारत सरकार को राजस्व का चूना लगाने के आदि हो चुके कैंट बोर्ड के कुछ घोटालेबाज कुछ अफसर स्टांप घोटाले की जांच रिपोर्ट को भी पचा गया। नौबत केवल नासिक की फॉरेंसिक रिपोर्ट तक ही नहीं रहीं बल्कि मेरठ ट्रेजरी के एक अफसर ने जो जांच की थी, जिसमें उसमें कैंट बोर्ड के कुछ अफसरों के स्टांप चोरी की बात डंके की चोट पर कही गयी थी उसको भी दफन कर दिया गया। मंत्रालय के आग्रह पर वहीं दूसरी ओर स्टांप चोरी मामले की एक जांच भारत प्रतिभूति मुद्रणालय (इंडियन सिक्योरिटी प्रेस) नासिक महाराष्ट्र की फॉरेंसिक लैब में भी की गई थी। स्टांप चोरी मामले में जिन अफसरों की गर्दन फंसी थी
उन अफसरों ने नासिक लैब की फॉरेंसिक रिपोर्ट की भनक तक स्थानीय जांच एजेंसियों तक को लगत नहीं दी। वर्तमान में स्टांप चोरी मामले की जांच के लिए जिस एसआईटी के गठन की बात कही जा रही है, बड़ा सवाल उठता है कि क्या वो एसआईटी जांच के दायरे मेंं मेरठ कैंट बोर्ड के स्टॉप घोटाले की परत-दर-परत उधड़ने की हिम्मत जुटाएगी। इसके लिए ज्यादा कुछ नहीं करना है केवल कैंट बोर्ड पहुंचकर स्टांप चोरी के कसूरवारों से पुलिसिया अंदाजा में पूछताछ भर करनी है।
स्टांप चोरी के इस मामले को लेकर जांच के दायरे में कैंट बोर्ड के तत्कालीन अधीक्षक जयपाल तोमर आए थे। पूरी जांच उनके ही इर्दगिर्द सिमटी थी। कैंट बोर्ड के जिस स्टांप चोरी, घोटाले की जिक्र इस रिपोट में किया जा रहा है, उसकी जांच मेरठ के थाना सदर बाजार पुलिस के पास भी पहुंची थी, लेकिन आरोप है कि सदर बाजार थाना के तत्कालीन जांच अफसरों ने अपनी ड्यूटी अंजाम देने के बजाए स्टांप चोरी के गुनाहगारों से हाथ मिला लिया।
दरअसल हुआ यह था कि पुलिस के तब के जांच अधिकारियों ने इस मामले की जांच के दौरान भारत प्रतिभूति मुद्रणालय नासिक महाराष्ट्र की फॉरेंसिक लैब से जो रिपोर्ट आयी थी तथा मेरठ ट्रेजरी की जांच करने वाले अफसर की जो रिपोर्ट थी जानकारों का कहना है कि उसको देखना तो दूर पूरी पड़ताल में कहीं जिक्र भी करना मुनासिब नहीं समझा। खाता ना बही जो गुनाहकार कहे वो सही की तर्ज पर गुनाहकारों को बचाव का रास्ता बता दिया। जिनके हाथ में हथकड़ी होनी चाहिए थी आरोप है कि उनसे ही हाथ मिला लिए, जब ऐसे किसी भी मामले में हाथ मिला लिए जाते हैं तो फिर कार्रवाई की उम्मीद करना बेमाने बात होती है। ऐसा ही मेरठ के कैंट बोर्ड के स्टांप चोरी, घोटाले में किया गया।
ये था पूरा मामला
मेरठ कैंट बोर्ड ने साल 2016-17 में टोल टैक्स का ठेका अशोक गोयल पुत्र महावीर प्रसाद गोयल निवासी नटेशपुरम कंकरखेड़ा के पक्ष में छोड़ा था, जिसके अनुबंध में 6.80 लाख रुपये मूल्य के स्टॉप पर लगाए जाने थे। इसके लिए अशोक गोयल व उसके साझीदारों से 7.50 लाख रुपये के स्टांप अपने कर्मचारी से खरीदकर मंगाने एवं एग्रीमेंट तैयार करान के लिए ले लिए। यह सारा कार्य कैंट बोर्ड के राजस्व अधीक्षक जयपाल तोमर द्वारा किया गया। उस वक्त जयपाल तोमर ही राजस्व अधीक्षक थे। इस प्रकार कार्य राजस्व अधीक्षक के साइन बगैर संभव नहीं।
ऐसी की गई स्टांप की चोरी
साल 2011 में कैंट बोर्ड ने टोल वसूली का ठेका मैसर्स गौरव ट्रेडर्स को दिया था। मैसर्स गौरव ट्रेडर्स के पार्टनर कृष्णपाल सिंह निवासी बी-84 यूरोपियन एस्टेट कंकरखेड़ा से एग्रीमेंट में लगाने के लिए 6.75 लाख रुपये मूल्य के स्टांप खरीदवाकर कार्यालय में जमा करा लिए गए थे। इन स्टांपों की क्रम संख्या बी-350621 से 350647 तक थी। इन स्टांप पर बगैर अनुबंध की लिखा पढ़ी की नहीं गई
और इस दौरान ठेके के अवधि पूरी हो गई। कैंट बोर्ड के रेवेन्यू सेक्शन की सेफ में एक फाइल में कोरे स्टांफ रखे हैं। यह बात राजस्व अधीक्षक की जानकारी में थे। मैसर्स अग्रवाल ट्रेडर्स को जो टोल ठेका दिया गया उसमें लगाए गए स्टांप वो थे, जिन्हें पुराने ठेकेदार कृष्णपाल से खरीदवाया था। स्टांप खरीदे तो कृष्णपाल न और यूज किए गए मैसर्स अग्रवाल ट्रेडर्स को दिए गए टोल के ठेके में।
गोपनीय रिपोर्ट में सब बेपर्दा
कैंट बोर्ड के स्टांप घोटाले को लेकर भारत प्रतिभूति मुद्रणालय नासिक महाराष्ट्र की फॉरेंसिक लैब से कैंट बोर्ड के स्टांप घोटाले को लेकर ओम प्रकाश सहायक प्रबंधक आलसाजी एवं अनवेषण विभाग महाप्रबंधक भाप्रमु नासिक महाराष्ट्र से 29 जून, 2018 को जो गोपनीय रिपोर्ट सीधे मुख्य अधिशासी अधिकारी छावनी परिषद को भेजी गयी है, उसमें स्टांप चोरी के इस बड़े मामले की परत दर परत उधेड़ कर रख दी हैं। इस रिपोर्ट का एक-एक शब्द कुछ यू हैं…
ट्रेजरी आॅफिसर, मेरठ की रबर सील, जिसमें ईएक्स-1 से ईएक्स-27 अंकित टिकटों के आगे और पीछे की तरफ तारीख अंकित है, टेपर्ड पाई गई है। मुहर में मूल तारीख मिटा दी गई है और नई तारीख डाल दी गई है। मुहर की मूल तारीख 24 अगस्त 2011 थी। रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि जिस सीरीज के स्टांप जांच के लिए भेजे गए हैं। उस क्रम के स्टांप साल 2016 में जारी ही नहीं किए गए फिर कैंट बोर्ड के पास कहां से उस सीरीज के स्टांप आ गए। मसलन यह सीधे-सीधे स्टांप चोरी का मामला है।
निष्कर्ष
कैंट बोर्ड में अंजाम दिए गए स्टांप चोरी, घोटाले के इस प्रकरण में साल 2011 में जो स्टांप कृष्णपाल सिंह से क्रय कर मंगवाए गए थे, उनकी पीछे की मुहर व लिखावट तथा आगे लगाई सील को इरेजर से मिटाया गया। नियमानुसार यह संज्ञेय अपराध है। पद पर आसीन रहते हुए भारत सरकार के प्रति राजस्व की चोरी का अपराध है, लेकिन सब कुछ जानते हुए यह किया गया। जानकारों का कहना है कि जितने मूल्य के स्टांप क्रय कराए गए
इतने मूल्य के स्टांप आमतौर पर सीधे ट्रेजरी से क्रय किए जाते हैं। याद रहे कि जितने मूल्य के स्टांप की चोरी की गई है। उतने मूल्य के स्टांप कभी भी वेंडर से नहीं क्रय किए जाते, इतने मूल्य के स्टांप ट्रेजरी से ही क्रय किए जाते हैं। इसलिए ट्रेजरी अफसर की रिपोर्ट भी कैंट बोर्ड के स्टांप चोरी मामले में महत्वपूर्ण है जिसका संज्ञान एसआईटी के अफसर ले सकते हैं।