- खड़ी गाड़ियों के नाम पर की जा रही खुलेआम लूट
- चलती नहीं गाड़ियां और बराबर खर्च हो रहा डीजल
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: तेल चोरी रोकने को नगर निगम के अपने वाहनों में जीपीएस लगाना भी कारगर नहीं रहा है। नगर निगम की गाड़ियों के जीपीएस को बंद कर चालक तेल गायब कर रहे हैं। डीजल चोरी रोकने के लिए निगम ने कूड़ा कलेक्शन गाड़ियों की लोकेशन ट्रेस करने के लिए जीपीएस सिस्टम लगवाये। इसके बावजूद निगम चालक हर महीने निगम को लाखों रुपये का नुकसान कर रहे हैं। ड्राइवर खुलेआम तीनों डिपो के आसपास पास ही गाड़ी खड़ी कर तेल चोरी कर रहे हैं। एक साल में लगातार तेल चोरी पकड़े जाने के बाद कर्मचारियों पर कार्रवाई भी हुई। उनको नौकरी से निकाला गया, लेकिन वह बाज नहीं आ रहे हैं।
गाड़ियों में लगे जीपीएस सिस्टम अब गाड़ी की लोकेशन को ट्रेस नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि ये जीपीएस कहीं गुम हो गए हैं। वहीं करीब 90 गाड़ियों की जिम्मेदारी नई कंपनी को सौंप दी गई है। जिनमें कंपनी द्वारा नए जीपीएस लगवाने का दावा किया जा रहा है। उधर, निगम के लिए जीपीएस से ट्रेसिंग समेत मॉनिटरिंग और मेंटिनेंस का काम देख रही कंपनी का टेंडर खत्म होने के बाद अब शहर मेंबिना जीपीएस ट्रेसिंग के कूड़ा कलेक्शन गाड़ियों को डीजल के नाम करोड़ों का भुगतान बस यूं ही कर दिया जा रहा है।
नया जीपीएस सिस्टम लगाने का आदेश करते समय अफसरों ने दावा किया था कि अब यह भी पता चलेगा कि कितनी देर गाड़ी चली, कितने किलोमीटर चली। कितनी देर इंजन चालू रहा है और कितनी देर बंद रहा। नए सिस्टम में यह भी पता चलेगा कि कितनी देर गाड़ी स्टार्ट में खड़ी रही और कितनी देर इंजन बंद होने पर। टंकी में कितना तेल भरा गया था उसमें से कितना खर्च हुआ और कितना बचा। उसकी आॅनलाइन जानकारी नगर निगम के कंट्रोल मॉनिटर पर आती रहेगी। जिससे तेल चोरी आसान नहीं रहेगी, लेकिन यह सब हवाई साबित हो रहा है।
पूर्व नगर आयुक्त ने लगवाया था सिस्टम
डीजल चोरी का मामला सामने आने पर 2017 में पूर्व नगर आयुक्त मनोज चौहान ने सभी गाड़ियों में जीपीएस लगवाए थे। ऐसे वाहनों की संख्या 220 थी। इस बाबत लाखों रुपये खर्च हुए थे। मगर शुरुआत में इस सिस्टम से निगम को लाखों की बचत भी हुई थी, तब से इन वाहनों की मेंटिनेंस, मॉनिटरिंग के नाम पर हर साल निगम के खजाने से डीजल पर करीब 12 करोड़ खर्च हो रहे हैं।
कागजी रह गया जीपीएस सिस्टम
जीपीएस का उद्देश्य था कि गाड़ी के इंजन स्टार्ट होने से दूरी तय करने तक का रिकॉर्ड जीपीएस से मिले, लेकिन वर्तमान में यह सिस्टम पूरी तरह कागजी हो गया। गत वर्ष ही निगम ने जीपीएस लगे लगभग 80 वाहनों को कंडम दर्शाया था। जबकि नई 50 कूड़ा गाड़ी, जेसीबी, ट्रैक्टर, पोर्कलेन मशीनों में जीपीएस आज तक नहीं लगाया है। स्थिति यह है कि कुल मिलाकर प्रतिमाह लगभग 90 से अधिक वाहनों के डीजल खर्च का भुगतान बिना जीपीएस ट्रेसिंग और रिपोर्ट के ही हो रहा है।
सिस्टम फेल, हर साल 12 करोड़ की चोरी
प्रतिवर्ष नगर निगम खजाने से डीजल पर 12 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। हालांकि नियमानुसार गाड़ी का भुगतान देने से पहले उसके जीपीएस सिस्टम से यह देखना आवश्यक है कि वाहन कितना चला है। क्या वास्तव में चला है या नहीं? लेकिन सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया गया है। निगम प्रशासन ने बीते साल नया जीपीएस सिस्टम गाड़ियों में लगाने का आदेश किया था।
एक निजी कंपनी को यह काम दिया गया था, लेकिन तेल चोरी करने वालों के विरोध और उनकी मजबूत पहुंच के कारण यह काम पूरा ही नहीं हो पा रहा है। कुल मिलाकर प्रतिमाह लगभग 100 वाहनों के डीजल खर्च का भुगतान बिना जीपीएस रिपोर्ट के ही हो रहा है।
बीबीजी कंपनी पर डाली जिम्मेदारी
जीपीएस के मामले में बचाव के लिए नगर निगम अपनी जिम्मेदारी बीबीजी इंडिया कंपनी के कंधों पर डाल दी है। निगम के अधिकारियों का कहना है कि कूड़ा कलेक्शन का काम मेरठ में अब बीबीजी इंडिया कंपनी कर रही है। इसके लिए निगम ने अपनी 101 के करीब गाड़ियां कंपनी को दे दी हैं, जिनमें कंपनी ने खुद का जीपीएस सिस्टम लगाया है। ऐसे में अब केवल कंपनी द्वारा संचालित गाड़ियों में ही जीपीएस से मॉनिटरिंग हो रही है। बाकि निगम की गाड़ियां बिना जीपीएस दौड़ रही हैं।
तेल चोरी में पकड़े गए कर्मचारियों को हटा दिया गया है। जिन गाड़ियों में अभी जीपीएस नहीं लग पाया है, उनमें उसे लगाने का काम जल्द पूरा कराया जाएगा। -डा. हरपाल सिंह, पशु चिकित्सक एवं कल्याण अधिकारी, नगर निगम।