Friday, July 5, 2024
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सुनी सुनाई बातों पर मेयर को पद मुक्त कराना चाहते हैं विरोधी

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  • तथ्यों पर नहीं पॉलीटिकल प्रेशर से कार्रवाई कराने की हो रही कोशिश

  जनवाणी ब्यूरो | 

रुड़की: विरोधी पक्ष मेयर गौरव गोयल को सुनी सुनाई बातों पर पद मुक्त कराना चाहता है। यानी कि तथ्यों के बजाय पॉलीटिकल प्रेशर से कार्रवाई कराने की कोशिश हो रही है।

यहां तक की हाईकोर्ट के आदेश को भी विरोधी पक्ष अपने ढंग से परिभाषित कर रहा है। ताकि मेयर पर मानसिक दबाव बनाया जा सके और शहर में राजनीतिक माहौल उनके खिलाफ तैयार हो सके। यह सभी को मालूम है कि मेयर गौरव को कार्यभार संभालने के दिन से ही विरोधियों की साजिशों का सामना करना पड़ रहा है।

यह बात अलग है कि मेयर गौरव गोयल आज तक एक बार भी विरोधियों की तथ्यहीन शिकायतों के कारण डिफीट नहीं हुए। हां इतना जरूर है कि बीच-बीच में उन्हें परेशानियों का सामना जरूर करना पड़ा। यही विरोधी चाहते भी है कि मेयर गौरव गोयल स्वतंत्र रूप से नगर निगम क्षेत्र का न तो विकास करा सकें और न ही नगर निगम में कुछ और अच्छे के लिए सोच सके। जनता इस बात को अच्छी तरह समझ भी रही है।

अब बीटी गंज के भूखंड लीज नवीनीकरण के मामले पर ही गौर कर कीजिए। इस भूखंड के लिए एक अरसे पहले समाप्त हो चुकी है और अब जो लीज का नवीनीकरण कराने की कोशिश हो रही है वह नियम विरुद्ध है। साफ तौर पर यह कोशिश निगम की संपत्ति यानी कि शहरवासियों की बेशकीमती संपत्ति को खुर्दबुर्द करने जैसी है।

हालांकि यह मामला इसलिए राजनीतिक मोड़ ले गया क्योंकि इसमें लेनदेन जैसी बातों की ऑडियो वायरल हुई। अब यह ऑडियो सही है या फिर बातों ही बातों में किसी को फंसा लेने की साजिश का हिस्सा है। इसकी जांच अभी जारी है और जो जांच समिति बनी थी। उसने भी अपनी रिपोर्ट में यही कहा है की विवेचना अभी जारी है और मूल डिवाइस नहीं मिली है।

इस बारे में कुछ भी निष्कर्ष पर पहुंच पाना उचित नहीं है। इसके बाद मेयर गौरव गोयल को एक महिला की शिकायत पर विरोधियों ने घेरा मुकदमा दर्ज हुआ लगातार हंगामे जैसी स्थिति बनाई गई। अंतिम रिपोर्ट लगी कुछ समय बाद अंतिम रिपोर्ट खारिज कर दी गई फिर से अंतिम रिपोर्ट लगी और वह कोर्ट द्वारा स्वीकार कर ली गई। मुकदमा बंद।

यहां पर डिफीट हो जाने के बाद विरोधी खेमे ने पार्षदों व कुछ ठेकेदारों के द्वारा शिकायत भिजवाई गई। पार्षदों ने कहा है कि नगर निगम बोर्ड की कम बैठकर हुई है। पर यह सबको मालूम है कि 2 वर्ष तक कोरोना महामारी के कारण एक नहीं अधिकतर निकाय क्षेत्र में बोर्ड की कम बैठक हुई है। इसके बाद कहा कि कुछ ठेकेदारों का भुगतान रोका गया है। लिखित में भुगतान रोकने का अधिकार मेयर को है ही नहीं तो यह शिकायत प्रारंभिक तौर पर ही गलत नजर आ रही है।

दूसरे, यदि मेयर की ओर से यह कह दिया गया कि निर्माण कार्य की गुणवत्ता अच्छी हो तभी भुगतान होना चाहिए और आईआईटी से तकनीकि जांच कराई जाए इसके बाद भुगतान किए जाए तो इसमें किसी को कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए।

क्योंकि शहर के मुखिया होने के कारण घटिया निर्माण पर मेयर गौरव गोयल की चुप्पी एकदम गलत साबित होती उन पर तमाम सवाल खड़े होते। नगर आयुक्त के साथ अभद्रता होने की बात भी बेतुकी मानी जा रही है। न तो इस संबंध में कोई मीडिया रिपोर्ट सामने आई है और न ही नगर आयुक्त ने अपने उच्च अधिकारियों को इस संबंध में शिकायत की है और न ही उनके द्वारा कोई पुलिस को तहरीर दी गई है।

यह भी सुनी सुनाई बात मानी जा रही है। यह बात स्पष्ट है कि कि नगर आयुक्त रहते हुए नूपुर वर्मा पर विरोधी खेमे का पॉलीटिकल प्रेशर रहा। जिस कारण मेयर के अच्छे कार्यों को रोकने की हरसंभव कोशिश की गई। सहायक नगर आयुक्त पद पर रहते हुए चंद्र प्रकाश भट्ट भी पूरी राजनीति मे शामिल रहे। हाई कोर्ट में एक के बाद एक कर दायर की गई याचिका के बारे में आप जान लीजिए कि पहले एक याचिका दायर हुई थी जो निरस्त कर उस याचिकाकर्ता पर 50000 का जुमार्ना लगाया गया था।

इसके बाद याचिका दायर हुई और उसमें कहा गया कि मेरे द्वारा जो शिकायत की गई है उस पर कार्रवाई नहीं हुई है तो शासन को हाईकोर्ट की ओर से यही लिखा गया है कि नियमानुसार कार्रवाई कीजिए अब शासन सुनी सुनाई बातों पर तो इतना जल्द कार्रवाई करने वाला नहीं है। क्योंकि जो लोग यह मान रहे हैं कि मेयर को बर्खास्त कर दिया जाएगा।

सुनी सुनाई बातों पर बर्खास्तगी की कार्रवाई कतई संभव नहीं है। इसके लिए ऐसी प्रमाणिक तथ्य चाहिए जो कि कार्रवाई को बर्खास्तगी तक पहुंचा सके। हां यदि मेयर द्वारा कोई नगर निगम का भूखंड अपने अपने परिजन के नाम खरीद लिया गया होता या किसी भूखंड को खुर्द खुर्द करने जैसी बात होती या फिर वह अपने लिखित आदेश से किसी को नाजायज भुगतान नगर निगम से करा देते। तो कार्रवाई संभव थी।

लेकिन अब तो स्थिति यहीं साफ तौर पर नजर आ रही है कि विरोधी लोग पॉलीटिकल प्रेशर से ऐसा कुछ चाहते हैं ताकि मेयर गौरव गोयल मानसिक रूप से डिस्टर्ब रहें और वह जनता के बीच न जा सके।

अन्यथा जो नगर निगम के कर्मचारियों की यूनियन है उन्होंने भी मेयर के पक्ष में लिखकर दे रखा है और संख्या बल के लिहाज से पार्षदों के लिखित पत्र भी मेयर के समर्थन में ही काफी ज्यादा है। इस पूरे प्रकरण के बीच यह बात भी स्पष्ट की जाती है कि पूर्व में हुई जांच में प्रभारी सचिव विनोद सुमन ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि कोई वित्तीय अनियमतता सामने नहीं आई है।

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