Saturday, April 19, 2025
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आधुनिक युग में किसान करें मिर्च की जैविक खेती

जनवाणी संवाददाता |

मोदीपुरम: जैविक खेती की विधि रासायनिक खेती की विधि की तुलना में बराबर या अधिक उत्पादन देती है, अर्थात जैविक खेती मृदा की उर्वरता एवं कृषकों की उत्पादकता बढ़ाने में पूर्णत: सहायक है। वर्षा आधारित क्षेत्रों में जैविक खेती की विधि और भी अधिक लाभदायक है।

जैविक विधि द्वारा खेती करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है, इसके साथ ही कृषक भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

आधुनिक समय में निरन्तर बढ़ती हुई जनसंख्या, पर्यावरण प्रदूषण, भूमि की उर्वरा शक्ति का संरक्षण एवं मानव स्वास्थ्य के लिए जैविक खेती की राह अत्यन्त लाभदायक है। मानव जीवन के सर्वांगीण विकास के लिए नितान्त आवश्यक है कि प्राकृतिक संसाधन प्रदूषित न हों, शुद्ध वातावरण रहे एवं पौष्टिक आहार मिलता रहे, इसके लिये हमें जैविक खेती की कृषि पद्धतियां को अपनाना होगा जोकि हमारे नैसर्गिक संसाधनों एवं मानवीय पर्यावरण को प्रदूषित किये बगैर समस्त जनमानस को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकेगी तथा हमें खुशहाल जीने की राह दिखा सकेगी।

आज के आधुनिक युग में मिर्च की जैविक खेती समय की मांग है। इसलिए किसानों को समय रहते मिर्च की जैविक खेती करनी चाहिए। मिर्च एक नकदी फसल है तथा भोजन का प्रमुख अंग है। कृषि विवि के आनुवांशिकी पादप प्रजनन विभाग के प्राध्यापक अतर सिंह का कहना है कि मिर्च की रासायनिक खेती से प्राप्त फलों से मानव शरीर में अनेक विकार जन्म लेते हैं और पर्यावरण को भी इससे नुकसान होता है। जबकि मिर्च की जैविक खेती से मानव और पर्यावरण पर कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। स्वास्थ्य की दृष्टि से मिर्च में विटामिन ए व सी पाये जाते हैं। कुछ खनिज लवण भी होते हैं।

उपयुक्त जलवायु

मिर्च गर्म तथा आर्द्र जलवायु में भली-भांति उगती है। परन्तु फलों के पकते समय शुष्क मौसम का होना आवश्यक है। गर्म मौसम की फसल होने के कारण इसे उस समय तक नहीं उगाया जा सकता। जब तक कि मिट्टी का तापमान बढ़ ना गया हो तथा पाले का प्रकोप टल न गया हो।

बीजों का अच्छा अंकुरण 18 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापामन पर होता है। यदि फूलते समय व फल बनते समय भूमि में नमी की कमी हो जाती है, तो फलियां, फूल व छोटे फल गिरने लगते हैं। मिर्च के फूल व फल आने के लिए सबसे उपयुक्त तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट है। तेज मिर्च अपेक्षाकृत अधिक गर्मी सह लेती है।

उपयुक्त भूमि

मिर्च की जैविक खेती अनेक प्रकार की मृदा में की जा सकती है, लेकिन अच्छी उपज के लिए अच्छी जल निकास व्यवस्था वाली कार्बनिक तत्वों से युक्त दोमट मिट्टी इसके लिए सर्वोतम होती हैं। जहां फसल काल छोटा है, वहां बलुई तथा बलुई दोमट मृदा को प्राथमिकता दी जाती है। बरसाती फसल भारी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में लेनी चाहिए। जिसका पीएच मान 6.0 से 7.5 होना उचित है।

नर्सरी प्रबंधन

नर्सरी के लिए मिट्टी हल्की, भुरभुरी व पानी को जल्दी सोखने वाली होनी चाहिए। पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों का होना भी जरूरी है। नर्सरी में पर्याप्त मात्रा में धूप का आना भी जरूरी है। नर्सरी को पाले से बचाने के लिए, पानी का अच्छा प्रबन्ध होना चाहिए। नर्सरी की लम्बाई 10 से 15 फीट तथा चौड़ाई 2.5 से तीन फीट से अधिक नहीं होनी चाहिए क्योंकि निराई व अन्य कार्यों में कठिनाई आती है। नर्सरी की ऊंचाई छह इंच या आधा फीट रखनी चाहिए। बीज की बुआई कतारों में करें, कतार से कतार का फासला पांच से सात सेंटीमीटर रखा जाता है। बीज को एक सेंटीमीटर की गहराई से अधिक न बोयें और बोने के बाद हजारे से हल्की सिंचाई करें।

खेत की तैयारी

मिर्च की जैविक खेती के लिए खेत की पहली गहरी जुताई कर के उसके बाद देशी हल या कल्टीवेटर से दो से तीन जुताई कर के पाटा लगाकर खेत को समतल और मिट्टी को भुरभुरा कर लिया जाता है। आवश्यक उर्वरकों और पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए गोबर की सड़ी हुई खाद 25 से 30 टन प्रति हेक्टेयर, जुताई के समय मिला देनी चाहिए। खेती की ऊपरी मिट्टी को महीन और समतल कर लिया जाना चाहिए तथा उचित आकार की क्यारियां बना लेते हैं।

फल तुड़ाई

मिर्च की जैविक खेती से हरी मिर्च रोपाई के लगभग 85 से 90 दिन बाद तोड़ने योग्य हो जाती है। इस तरह एक से दो सप्ताह के अन्तर पर पके फलों को तोड़ा जाता है। इस प्रकार आठ से नौ बार तुड़ाई की जाती है। सूखी मिर्च के लिये फलों को 140 से 145 दिन बाद जब मिर्च का रंग लाल हो जाता है तब तोड़ा जाता है, लेकिन बार बार मिर्च तोड़ने से फलन अधिक होता है।

पके फलों को आठ से 10 दिन तक धूप में सुखाया जाता है। आधा सूख जाने पर फलों की सायंकाल के समय एक ढेरी में इकट्ठा करके दबा दिया जाता है, जिससे की मिर्च चपटी हो जाए और सूखने में आसानी रहती है। बड़े पैमाने पर मिर्ची को 53 से 54 सेंटीग्रेट तापमान पर दो से तीन दिन तक सुखाया जाता है।

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