Monday, May 12, 2025
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कमजोर जम्हूरियत के जाल में पाकिस्तान

Samvad 1


03 4पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर लॉन्ग मार्च के दौरान जानलेवा हमला महज एक शख्स की कारस्तानी भर नहीं है, बल्कि यह एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा भी हो सकता है। बहरहाल इमरान खान सुरक्षित हैं और हमलावर पकड़ा गया है। हमलावर ने स्वीकार किया है कि वह इमरान खान की जान लेना चाहता था क्योंकि वह लोगों को गुमराह कर रहे हैं। पाकिस्तान के अखबारों की मानें तो पंजाब प्रांत के आईजी ने इमरान के मार्च के दौरान उन्हें फुलप्रूफ सुरक्षा सुनिश्चित करने का आदेश दिया था। लेकिन जब इमरान पर हमला हुआ उस दरम्यान उनकी सुरक्षा के लिए न तो बुलेटप्रूफ ग्लास लगा था और न ही पुलिस की कोई लेयर थी। मतलब साफ है कि पाकिस्तानी हुकूमत के लिए इमरान की सुरक्षा शीर्ष प्राथमिकता में नहीं थी। फिलहाल इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ यानी पीटीआइ ने इस हमले के लिए मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ, गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह और मेजर जनरल फैसल नसीर को जिम्मेदार ठहराया है। इमरान खान कीे मानें तो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अमेरिका से मिलकर उन्हें मिटाने की साजिश रच रहे हैं। उल्लेखनीय है कि गत अप्रैल महीने में अविश्वास प्रस्ताव के जरिए इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटा दिया गया था।

तभी से वो प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सरकार के खिलाफ सामुहिक रैली निकालकर विरोध जता रहे हैं। पाकिस्तान की सेना ने इमरान खान पर हुए हमले की कड़ी निंदा की है। सेना ने कहा है कि लॉन्ग मार्च के दौरान हमला बेहद निंदनीय है। कहा तो यह भी जा रहा है कि सेना एक धड़ा इमरान खान के साथ है। उनकी सामूहिक रैली का समर्थन कर रहा है।

यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में किसी शीर्ष नेता को निशाना बनाया गया है। 16 अक्टुबर, 1951 को देश के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की रावलपींडिस कंपनी गार्डन में एक सार्वजनिक रैली के दौरान गोली मारकर हत्या कर दी गयी।

पिछले सात दशकों में कई नेता जान से हाथ धो बैठे हैं। इन नेताओं में पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो से लेकर उनके भाई मीर मुर्तजा भुट्टो, चौधरी जहूर इलाही, पंजाब प्रांत के पूर्व गृहमंत्री शुजा खानजादा और पूर्व अल्पसंख्यक मंत्री शहबाज भट्टी इत्यादि कई नाम शामिल हैं। सच कहें तो महज सात दशक में ही पाकिस्तानी जम्हूरियत के पांव लड़खड़ाने लगे हैं।

दो दशक पहले प्रसिद्ध पत्रकार और फ्राइडे टाइम्स के संपादक नजम सेठी ने कहा था कि पचास वर्ष बाद भी पाकिस्तानी यह तय नहीं कर पाए हैं कि एक राष्ट्र के रुप में वे कौन हैं, किसमें विश्वास रखते हैं और किस दिशा में जाना चाहते हैं। वे यह तय नहीं कर पाए हैं कि दक्षिण एशिया के अंग हैं या मध्य-पूर्व के। सऊदी अरब और ईरान जैसे कट्टर इस्लामी हैं या जार्डन व मिस्र जैसे उदार राज्य।

उसके हुक्मरान पाकिस्तान को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं, उन्हें खुद नहीं पता। नतीजा सामने है। पाकिस्तान में जम्हूरियत इतनी कमजोर है कि अपनी आजादी के 9 साल बाद तक वह संविधान नहीं बना पाया था।

तब तक चार प्रधानमंत्री, चार गवर्नर जनरल और एक राष्ट्रपति देश पर शासन कर चुके थे। 1956 में पाकिस्तान गणतंत्र बना और राष्ट्रपति पद का आविष्कार हुआ। रिपब्लिकन पार्टी के इस्कंदर मिर्जा पहले राष्ट्रपति बने और उन्होंने अयूब खान को चीफ आॅफ आर्मी नियुक्त किया। यहीं से सेना ने तख्ता पलट का खेल शुरू हो गया।

7 अक्टुबर, 1958 को जनरल अयूब खान ने राष्ट्रपति मेजर जनरल इस्कंदर मिर्जा की सरकार का तख्ता पलट कर देश में मॉर्शल लॉ लागू कर दिया। तथ्य यह भी कि इससे पहले राष्ट्रपति इस्कंदर मिर्जा ने प्रधानमंत्री फिरोज खान नून को गद्दी से उतारा था और ठीक 13 दिन बाद अयूब खान ने मिर्जा की गद्दी से उतार दिया। जब अयूब खान ने सैन्य विद्रोह किया जुल्फिकार अली भुट्टो ने अयूब खान का साथ दिया।

ईनाम के तौर पर अयूब खान ने जुल्फिीकार अली भुट्टो को देश का विदेशमंत्री बना दिया। लेकिन दोनों के बीच इसकदर विवाद बढ़ा कि जुल्फिकार अली भुटटो को 1966 में इस्तीफा देना पड़ा। अयूब खान ने पाकिस्तान पर 9 साल शासन किया और सेना को इसकदर ताकतवर बना दिया कि वह जब चाहे जम्हूरियत को रौंद सकती है। सेना की बढ़ती ताकत का खामियाजा खुद अयूब खान को भी भुगतना पड़ा। 1969 में याहया खान ने तख्तापलट कर अयूब खान को सत्ता से बेदखल कर दिया।

1973 में पाकिस्तानी कानून के तहत जब देश एक संसदीय गणतंत्र बना तो तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने प्रधानमंत्री बनने के लिए राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया। लेकिन चार साल बाद ही 4 जुलाई, 1977 को सेनाध्यक्ष जियाउल हक ने जुल्फिकार अली भुट्टो की सरकार का तख्ता पलट दिया।

उसने देश में मार्शल लागू कर भुट्टो को फांसी पर चढ़ा दिया। 1988 में जियाउल हक की एक विमान हादसे में मौत हो गई। 1997 के आमचुनाव में नवाज शरीफ की जीत हुई और वे प्रधानमंत्री बने। 1998 में नवाज शरीफ ने सेना की कमान संभालने के लिए दो वरिष्ठ जनरलों की वरिष्ठता को नजरअंदाज परवेज मुशर्रफ को आगे किया।

परवेज मुशर्रफ की महत्वकांक्षा नवाज शरीफ और पाकिस्तान दोनों पर भारी पड़ी। मुशर्रफ ने सत्ता पर कब्जा के लिए कारगिल युद्ध का दांव खेला और 1999 में तख्तापलट कर नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया। मौजूदा समय में देश में शहबाज शरीफ की सरकार है और इमरान खान उनकी सरकार के खिलाफ आंदोलन पर हैं। इमरान पर हमले के बाद इस आंदोलन का जोर पकड़ना तय है। ऐसे में पाकिस्तान का भविष्य अल्लाह भरोसे ही है।


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