राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) का यह खुलासा चिंतित करने वाला है कि दुनिया में कोरोना से हुई मौत में 15 प्रतिशत का कारण वायु प्रदूषण है। उल्लेखनीय है कि न्यायमित्रों ने पटाखों पर प्रतिबंध को लेकर हुई सुनवाई के दौरान यह जानकारी एक रिपोर्ट के आधार पर दी है। न्यायमित्रों ने कहा है कि सभी पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई जाए और अगर कोई उल्लंघन करे तो एक लाख रुपए जुर्माना लगाया जाए। देखना दिलचस्प होगा कि 9 नवंबर को राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) क्या फैसला सुनाता है। वैसे उम्मीद कम ही है कि एनजीटी पटाखे छोड़ने पर प्रतिबंध लगाएगा। ऐसा इसलिए कि गत वर्ष पहले कुछ याचिकाकर्ताओं ने पटाखे छोड़ने पर प्रतिबंध लगाने के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। तब उम्मीद बंधी कि शायद बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखने हुए उच्चतम न्यायालय इस संदर्भ में कोई अहम फैसला दे। लेकिन उसने 2005 में जारी दिशा-निर्देर्शों का हवाला देते हुए न सिर्फ पटाखे छोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने से इंकार किया, बल्कि यह भी न्यायसंगत ठहराया कि त्योहारी अवसर पर पटाखे चलाना नागरिकों का मौलिक अधिकार है और उसे रोका नहीं जा सकता। हालांकि न्यायालय ने पटाखों के दुष्प्रभावों के बारे में व्यापक प्रचार-प्रसार न होने के कारण केंद्र सरकार की आलोचना भी की। गौर करें तो एक अरसे से सरकार और स्वयंसेवी संस्थाएं पटाखे चलाने के विरुद्ध जनजागरण अभियान चला रही हैं। लेकिन इस जागरुकता के बाद भी हर वर्ष दीपावली की रात करोड़ों रुपये के पटाखे चलाए जाते हैं, जिससे वायुमंडल प्रदूषण से भर जाता है।
दीपावली के आसपास सांस की बीमारी से पीड़ित लोगों की तकलीफें बढ़ जाती हैं। पटाखों के धुएं में नाइट्रोजन आॅक्साइड, सल्फर डाइ आॅक्साइड, कार्बन मोनो आॅक्साइड, ऐस्बेस्टॉस तत्वों के अलावा जहरीले गैसों के रसायनिक तत्व पाए जाते हैं, जो बेहद खतरनाक हैं। कफ, अस्थमा, ब्रोकांइटिस, न्यूमोनिया, एम्फिसिया, सिरदर्द, फेफड़ों का कैंसर, आंख में जलन, श्वास नलिका में अवरोध एवं विभिन्न तरह की एलर्जी होती है। चूंकि पटाखों में जहरीले तत्वों की मात्रा अधिक होती है इस वजह से फेफड़ों की क्षमता प्रभावित होती है। यह कोशिकाओं को समाप्त कर देता है, जिसके कारण फेफड़ों से आक्सीजन ग्रहण करने और कार्बन डाइआॅक्साइड छोड़ने में बाधा आती है। जहरीले पटाखों के कारण शरीर में बैक्टीरिया और वायरस के संक्रमण की आशंका भी बढ़ जाती है। इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण की समस्या भी बढ़ जाती है। इस दौरान आवाज का स्तर 15 डेसीबल बढ़ जाता है जिसके कारण श्रवण क्षमता प्रभावित होने, कान के पर्दे फटने, रक्तचाप बढ़ने, दिल के दौरे पड़ने जैसी समस्याएं उत्पन हो जाती हैं। अगर आमजन को पटाखों से होने वाले नुकसान और वातावरण संरक्षण अधिनियम 1986 तथा ध्वनि प्रदूषण से सुपरिचित कराया जाए तो वातारण के प्रति उनमें संवेदनशीलता बढ़ेगी।
आंकड़े बताते हैं कि मानव निर्मित वायु प्रदूषण से हर साल तकरीबन चार लाख सत्तर हजार लोग दम तोड़ते हैं। मानव निर्मित प्रदूषण की वजह से आज भारत के विभिन्न शहर प्रदूषण की चपेट में हैं। देश की राजधानी दिल्ली आज सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक है। अगर पटाखों के बजाए दीपों के जरिए दीपावली का उत्सव मनाया जाए तो वायुमंडल में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बढ़ेगा और करोड़ों रुपए भी बर्बाद होने से बचेंगे। यहां ध्यान देना होगा कि विगत वर्षों में वायुमंडल में आॅक्सीजन की मात्रा घटी है और दूषित गैसों की मात्रा बढ़ी है। कार्बन डाई आॅक्साइड की मात्रा में तकरीबन 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जिससे न केवल कई तरह की बीमारियों में इजाफा हुआ है बल्कि खतरनाक स्तर पर वातावरण भी प्रदूषित हुआ है। इसका मुख्य कारण बड़े कल-कारखानें और उद्योगधंधों में कोयले एवं खनिज तेल का उपयोग है। गौरतलब है कि इनके जलने से सल्फर डाई आॅक्साइड निकलती है जो मानव जीवन के लिए बेहद खतरनाक है। शहरों का बढ़ता दायरा, कारखानों से निकलने वाला धुआं, वाहनों की बढ़ती तादाद एवं मेट्रो का विस्तार तमाम ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से प्रदूषण बढ़ रहा है। वाहनों के धुएं के साथ सीसा, कार्बन मोनोक्साइड तथा नाइट्रोजन आॅक्साइड के कण निकलते हैं। ये दूषित कण मानव शरीर में कई तरह की बीमारियां पैदा करते हैं। मसलन सल्फर डाई आॅक्साइड से फेफड़े के रोग, कैडमियम जैसे घातक पदार्थों से हृदय रोग, और कार्बन मोनोक्साइड से कैंसर और श्वास संबंधी रोग होते हैं। कारखाने और विद्युत गृह की चिमनियों तथा स्वचालित मोटरगाड़ियों में विभिन्न र्इंधनों के पूर्ण और अपूर्ण दहन भी प्रदूषण को बढ़ावा देते हैं। वायु प्रदूषण से न केवल मानव समाज को बल्कि प्रकृति को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। प्रदूषित वायुमंडल से जब भी वर्षा होती है, प्रदूषक तत्व वर्षा जल के साथ मिलकर नदियों, तालाबों, जलाशयों और मृदा को प्रदूषित कर देते हैं। अम्लीय वर्षा वनों को भी बड़े पैमाने पर नष्ट कर रही है। ओजोन गैस की परत, जो पृथ्वी के लिए एक रक्षाकवच का कार्य करती है, में वायुमंडल के दूषित गैसों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंचा है। एक अनुसंधान के आंकड़े के मुताबिक वायु प्रदूषण से देश में औसत जीवनकाल 1.7 वर्ष घट गया है और अधिकतर मौतें प्रदूषण के कारण फेफड़ों में कैंसर, हार्ट अटैक और क्रोनिक रोगों से हो रही है। आंकड़े के मुताबिक प्रति लाख आबादी की मृत्यु में वायु प्रदूषण की हिस्सेदारी 89.9 प्रतिशत है। बेहतर होगा कि हम दीपावली के त्योहार पर पटाखे चलाने से बचें और प्रकृति और मानवता के प्रति संवेदनशील हों।